श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 144 ☆

☆ ‌आलेख – आशंका ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

आशंका शब्द मन की नकारात्मकता की कोख से जन्म लेता है। यह बहुधा संशय, दुविधा, हताशा, निराशाजन्य परिस्थिति की देन है। यह वर्तमान में जन्म लेकर भविष्य में पृष्ठ पोषित होती है। आशंकाएं ज्यादातर निर्मूल होती है, लेकिन कभी कभी लाक्षणिक आधार पर सच भी साबित होती है। आशंकित मानव अनेक प्रकार के मानसिक तनाव झेलता है और यही तनाव एक समय  के बाद अवसाद का रूप ले लेता है तथा मानव अवसाद की बीमारी के चलते आत्महत्या भी कर लेता है। आशंका मानव का स्वभाव बन जाता है वह व्यक्ति के आत्म विश्वास की जड़ें हिला देता है। आशंकित व्यक्ति का खुद पर भी भरोसा उठ जाता है।  वह सकारात्मक सोच नहीं सकता नकारात्मकता मानव के मन पर बहुत बुरी तरह हावी हो जाती है। आशंकित इंसान प्राय: अकेला रहना चाहता है व अपने आप में घुटता रहता है,वह किसी पर भरोसा नहीं करता। उसकी आंखों की नींद उड़ जाती है और वह प्राय: नकारात्मक विचारों के चलते भयाक्रांत रहता है। सही निर्णय नहीं ले पाता अपना निर्णय बार बार बदलता रहता जिससे हानि उठानी पड़ती है

ऐसे व्यक्ति कुंठा का शिकार होते हैं, लोगों के लिए ऐसे व्यक्ति उपहास का पात्र बन जाते हैं। जबकि उन्हें दया नहीं सहानुभूति चाहिए उनका मानसिक इलाज होना चाहिए, और उन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जाना चाहिए। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आशंकित स्वभाव मनोरोग है समय से हम रोगी के आचार विचार व्यवहार को समझ कर उसे नया जीवन शुरू करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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