श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक ज्ञानवर्धक बाल कथा – “घमंडी के दांत घिस गए।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 122 ☆

☆ बाल कथा – घमंडी के दांत घिस गए ☆ 

(चंपक मार्च (प्रथम) 2009)

रस्सी पत्थर पर आहिस्ता आहिस्ता स्पर्श करते हुए जा रही थी. मगर घमंडी पत्थर को उस का मुलायम स्पर्श अच्छा नहीं लगा. वह तुनक कर बोला, “ओ सुतली, अपनी औकात में रह.”

रस्सी को पत्थर के बोलने का ढंग अच्छा न लगा. मगर फिर भी वह बड़े प्यार से बोली, “क्या हुआ भैया ?”

“क्या भैयावैया लगा रखी है. तुझे मालूम नहीं कि यह मेरे सोने का समय है और तू है कि मेरी नींद खराब कर रही है?” पत्थर ने अकड़ कर कहा, “चुपचाप यहां से चली जा. नहीं तो मैं तुझे काट कर कुएं में फेंक दूंगा.”

रस्सी क्या बोलती, वह चुप रही. पत्थर ने समझा कि रस्सी डर गई. इसलिए वह ज्यादा अकड़ कर बोला, “क्यों री, बहरी हो गई है क्या ?”

“नहीं भैया, मैं तो आप को सहलासहला कर मालिश कर रही थी. आप ने मेरे स्पर्श को मेरी छेड़खानी समझ लिया. 

आप समझ रहे हैं कि मैं आप को जगा कर आप की नींद खराब कर रही हूं. यह गलत है.” 

“अच्छा. तू मुझे सिखाएगी कि गलत क्या है और सही क्या है ?” पत्थर अपने तीखे दांत दिखा कर बोला, “तुझे मजा चखाना पड़ेगा,” कहते हुए पत्थर ने अपने दांत से रस्सी को काट लिया.

पत्थर ने जहां दांत लगाए थे वहां से रस्सी कमजोर हो गई. उस पर गांठ लगा दी गई.

यह देख कर रस्सी को अच्छा नहीं लगा. उस ने अन्य रस्सियों से शिकायत की. अन्य रस्सियां भी कुएं के पत्थर से परेशान थीं. उन्होंने तय किया कि वे पत्थर को सबक सिखाएंगी, ज्यादा घमंड अच्छा नहीं होता है.

यह तय कर रस्सियों की बैठक खत्म हुई, “आज के बाद सभी रस्सियां पत्थर की बीच वाले दांत पर से ऊपरनीचे आएंगीजाएंगी.”

“ठीक है,” सभी रस्सियों ने समर्थन किया.

इस घटना के बाद से सभी रस्सियां बारीबारी से पत्थर के तीखे दांत से ऊपरनीचे आनेजाने लगीं.

इधर पत्थर भी कम नहीं था. वह तीखेतीखे दांत लगालगा कर रस्सियां काटने लगा. मगर रस्सियों के आनेजाने से उस के दांत घिसने लगे थे.

एक दिन ऐसा आया कि पत्थर के दांत में रस्सियों के बड़ेबड़े निशान पड़ गए. अब उस में इतनी ताकत नहीं थी कि वह रस्सियों को काट सके.

पत्थर अपना घमंड भूल गया था. वह समझ गया था कि अब वह पहले की तरह ताकतवर नहीं रहा. इसलिए वह बातबात पर अकड़ता नहीं था.

“क्यों भाई, क्या हाल है?” एक दिन रस्सी ने पत्थर से पूछ लिया.

पत्थर क्या बोलता, उस के सभी दांत खराब हो चुके थे. रस्सी ने दोबारा उस से पूछा, “अरे भैया, क्या दांत के साथसाथ जवान भी घिस गई है, जो आप बोलते नहीं हो ?” 

“क्या करूं, बहन, ” पत्थर नम्रता से बोला, “मुझे उस वक्त पता नहीं था कि नम्रता भी एक गुण है. मैं तो समझता था कि कठोरता में ही ताकत है. इसी से सब काम होते हैं.”

रस्सी को पत्थर का स्वभाव बिलकुल बदलाबदला लगा था. वह कुछ मायूस भी था. इसलिए रस्सी ने पूछा,” मैं आप की बात समझी नहीं. आप क्या कहना चाहते हैं ?”

“यही कि तुम कितनी कोमल हो. मुझ से नम्रता से बात कर रही थी. मैं ने तुम्हें कठोर वचन कहे, तुम ने बुरा नहीं माना. अपना काम करती रही. मैं घमंड में था.” 

पत्थर अपनी रौ में कहे जा रहा था, “मगर तुम ने अपना काम जारी रखा. अब यह देखो, मेरे दांत, यह भी तुम्हारा मुलायममुलायम स्पर्श पा कर घिस गए हैं.”

वह बड़ी मुश्किल से बोल पा रहा था, “इसलिए मेरी कठोरता कहां काम आई. मेरे दांत बेकार होने से मुझे बोलने में परेशानी हो रही है, “कहते हुए वह चुप हो गया. 

पत्थर की आंखों में आंसू आ गए थे. इधर रस्सी उस के पश्चात्ताप पर दुखी थी. मगर अब क्या हो सकता था. पत्थर के दांत पर पड़े रगड़ के निशान मिट नहीं सकते थे.

इसलिए रस्सी को कहना पड़ा, “भाई, जो पैदा हुआ है, वह एक दिन तो नष्ट होगा ही. यह प्रकृति का नियम है, इसे हमें स्वीकार करना पड़ेगा.” 

“ठीक कहती हो, बहन, “पत्थर ने कहा तो रस्सी भी चुप हो गई. उसे मालूम हो गया था कि घमंडी का सिर कभी न कभी नीचा होता है.

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments