श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी  भगवान् श्रीकृष्ण जी पर आधारित भक्ति रचना “कान्हा ने जन्म लिया…”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 135 ☆

☆ कविता  🌿 कान्हा ने जन्म लिया… 🙏

मथुरा में जन्म लियो, गोकुल पधारे,

भोली मुस्कान लिए, नैना कजरारे ।

 

पालने में कान्हा, झूल रहे प्यारे,

माता ले बलैया, नंद के दूलारे।

 

पांवों में पायलियां, मोर मुकुट धारे,

ग्वाल बाल मगन होके, देख रहे सारे।

 

बजे आज बधैया, सजे चाँद तारे,

ढोल ताश बजने लगे, नंद के दुआरे।

 

दूध दही बाँट रहे, मथुरा में सारे,

कान्हा ने जन्म लिया, भाग को सहारे।

 

पुष्प लता खिल उठे, वन उपवन सारे,

चंदन सी महक उठी, मथुरा गली न्यारे।

 

कोयल भी कूक उठीं, नाच उठा मोर,

धूप दीप जलने लगी, मंदिर में भोर।

 

गली-गली फैल गई, बात बढ़ी जोर,

नंद के आंनद भयों, आया नंद किशोर।

 

सखियां भी झूम उठी, गाने लगी सोहरे,

माँ यशोदा बाँट रही, कनक थार मोहरें।

 

अनुपम इनकी लीला, पूतना को तारे,

अत्याचार भर उठा, कंस मामा मारे।

 

गोपियों की मटकी फोड़े, गोकुल पधारे,

राधा संग रास रचें, सखियां बीच सारे।

 

प्रेम भाव बांटते, गोवर्धन धारे,

कालिया के कोप से, यमुना सुधारें।

 

सुदामा सखा भेंट किए, अँसुअन जल ढारे,

तीन लोक सौंप दिये, सखा के दूआरे।

 

मीरा की भक्ति देख, कान्हा जी हारे,

मूरत में बोल उठी, प्राणनाथ प्यारे।

 

ग्वाल बाल संग लेकर, बने माखनचोर,

छलिया सब कहने लगे, नैनों के तारे।

 

गीता का ज्ञान दिये, बने रण छोर,

द्वारकाधीश बन बैठे, लगाये पंख मोर।

 

प्रभु मेरे तार लेना, जीवन की डोर,

राधे राधे नाम जपु, कृष्ण संग भोर।

 

जन्मों के पाप कटे, आनंद छाये चहुँ छोर,

तरस  रही नैना, अब निहारो मेरी ओर।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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