सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।  साप्ताहिक  स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज तीसरी कड़ी में प्रस्तुत है “जीवन भी क्रिकेट ही है”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

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☆ सकारात्मक सपने  #-3 ☆

 

☆ जीवन भी क्रिकेट ही है ☆

 

२० .. २०  क्रिकेट की तेजी ही उसकी रोचक रोमांचकता है, जिसके कारण वह लोकप्रिय हुआ है. आज के व्यस्त युग में हमारा जीवन भी बहुत तेज हो चुका है, लोगो के पास सब कुछ है, बस समय नही है, बहुत कुछ साम्य है जीवन और २० ..२० क्रिकेट में. सीमित गेंदो में अधिकतम रन बनाने हैं और जब फील्डिंग का मौका आये तो क्रीज के खिलाड़ी को अपनी स्पिन गेंद से या बेहतरीन मैदानी पकड़ से जल्दी से जल्दी आउट करना होता है.  जिस तरह बल्लेबाज नही जानता कि कौन सी गेंद उसके लिये अंतिम गेंद हो सकती है, ठीक उसी तरह हम नही जानते कि कौन सा पल हमारे लिये अंतिम पल हो सकता है. धरती की विराट पिच पर परिस्थितियां व समय बॉलिंग कर रहे है, शरीर बल्लेबाज है, परमात्मा के इस आयोजन में धर्मराज अम्पायर की भूमिका निभा रहे हैं, विषम परिस्थितियां, बीमारियाँ फील्डिंग कर रही हैं, विकेट कीपर यमराज हैं, ये सब हर क्षण हमें हरा देने के लिये तत्पर हैं.  प्राण हमारा विकेट है. प्राण पखेरू उड़े तो हमारी बल्लेबाजी समाप्त हुई.  जीवन एक २०  .. २० क्रिकेट ही तो है, हमें निश्चित समय और निर्धारित गेंदो में अधिकाधिक रन बटोरने हैं. धनार्जन के रन सिंगल्स हो सकते हैं, यश अर्जन के चौके, समाज व परिवार के प्रति हमारी जिम्मेदारियो के निर्वहन के रूप में दो दो रन बटोरना हमारी विवशता है. अचानक सफलता के छक्के कम ही लगते हैं. कभी-कभी कुछ आक्रामक खिलाड़ी जल्दी ही पैवेलियन लौट जाते हैं, लेकिन पारी ऐसी खेलते हैं कि कीर्तिमान बना जाते हैं, सबका अपना-अपना रन बनाने का तरीका है.

जीवन के क्रिकेट में हम ही कभी क्रीज पर रन बटोर रहे होते हैं तो कभी फील्डिंग करते नजर आते हैं, कभी हम किसी और के लिये गेंदबाजी करते हैं तो कभी विकेट कीपिंग, कभी किसी का कैच ले लेते हैं तो कभी हमसे कोई गेंद छूट जाती है और सारा स्टेडियम  हम पर हंसता है. हम अपने आप पर झल्ला उठते हैं. जब हम इस जीवन क्रिकेट के मैदान पर कुछ अद्भुत कर गुजरते हैं तो खेलते हुये और खेल के बाद भी  हमारी वाहवाही होती है, रिकार्ड बुक में हमारा नाम स्थापित हो जाता है. सफल खिलाड़ी के आटोग्राफ लेने के लिये हर कोई लालायित रहता है. जो खिलाड़ी इस जीवन क्रिकेट में असफल होते हैं उन्हें जल्दी ही लोग भुला भी देते हैं.

अतः जरूरी है कि हम अपनी पारी श्रेष्ठतम तरीके से खेलें. क्रीज पर जितना भी समय हमें परमात्मा ने दिया है उसका परिस्थिति के अनुसार तथा टीम की जरूरत के अनुसार अच्छे से अच्छा उपयोग किया जावे. कभी आपको तेज गति से रनो की दरकार हो सकती है तो कभी बिना आउट हुये क्रीज पर बने रहने की आवश्यकता हो सकती है. जीवन की क्रीज पर  हम स्वयं ही अपने कप्तान और खिलाड़ी होते हैं. हमें ही तय करना होता है कि हमारे लिये क्या बेहतर है? हम जैसे शाट लगाते हैं गेंद वैसी और उसी दिशा में भागती है, जिस दिशा में हम उसे मारते हैं. जिस तरह एक सफल खिलाड़ी मैच के बाद भी निरंतर अभ्यास के द्वारा स्वयं को सक्रिय बनाये रखता है, उसी तरह हमें जीवन में भी सतत सक्रिय बने रहने की आवश्यकता है. हमारी सक्रियता ही हमें स्थापित करती है, जब हम स्थापित हो जाते हैं तो हमें नाम, दाम और काम सब अपने आप मिलता जाता है. जीवन आदर्श स्थापित करके ही हम दर्शको की तालियां बटोर सकते हैं.

© अनुभा श्रीवास्तव

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सुरेश कुशवाहा तन्मय

जीवन ई अस्थिरता व अनिश्चितता को लेकरआज के लोकप्रिय खेल क्रिकेट से तुलनात्मक इस सुंदर, शानदार प्रेरक आलेख के लिए सम्माननीय लेखिका को हार्दिक साधुवाद, बधाई