श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# धूप-छांव #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 84 ☆

☆ # धूप-छांव # ☆ 

तुम्हारी मुस्कान के पीछे

कितने ग़म है

लबों पर हंसी

पर आंखें कितनी नम है

 

पलकों में छिपे समंदर को

मन कैसे रोक पाएगा

जरा सी ठेस पहुंचेगी

तो सैलाब आ जाएगा

 

तुम इन आंसुओं को

खुलकर बहने दो

सीने मे छिपे दर्द को

बहते बहते कहने दो

 

इस गुलशन में

फूल भी है, भंवरे भी है

महकते पराग के संग

कलियों के पहरे भी हैं

 

तुम्हारे आँसू पोछकर

तुम्हें सब हंसना सिखाएँगे

बालों में सजेंगे जब गजरे

सारे दुःख भूल जाएंगे

 

कलियों की तरह खिलखिलाएं

फूलों की तरह महकों

भंवरों के संग संग

प्रेम रस में बहकों

 

जीवन में दु:ख-सुख

धूप और छांव  है

जीवन के डोर से बंधे

हम सब कें पांव है /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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