डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – ओ, मेरे हमराज।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 90 –  गीत – ओ, मेरे हमराज…✍

जरा जोर से बोल दिया तो

हो बैठे नाराज

ओ, मेरे हमराज।

 

माना मन की बहुत पास हो, लेकिन योजन दूरी है

दुविधाओं के व्यस्त मार्ग पर, चलना भी मजबूरी है कोलाहल के बीच खड़े हम चारों ओर समाज।

ओ मेरे हमराज..

 

यादों के आंगन में बिखरी, छवियों की रांगोली है

शायद तुमने केश सुखाकर, गंध हवा में घोली है

चुप्पी की चादर के नीचे, सोई हैआवाज।

ओ मेरे हमराज ओ मेरे…

 

कितना तुम्हें मनाऊं मानिनि पैसे क्या मैं समझाऊं

जिसने मुझको गीत बनाया, उसको मैं कैसे गाऊं

सब कुछ तो कह डाला तुमसे,

कैसा लाज लिहाज।

जरा जोर से बोल दिया तो हो बैठे नाराज।

ओ मेरे हमराज।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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डॉ भावना शुक्ल

शानदार अभिव्यक्ति