श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 122 ☆

☆ ‌कविता – अरमान ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

मैं बचपन ‌हूं मेरी आंखों में सपने ‌पलते‌ है,

मै‌ पलता हूं सड़कों पे दिल में अरमान ‌मचलते हैं ।

मैं ‌बचपन ‌नही अमीरों का जो‌ महलों में पलते हैं,

जिनका‌ जीवन सुख में बीता‌ कालीन‌ पे‌‌ चलते है।

मैं खेतों में ‌मजदूरी करता सड़कों पे ‌पत्थर ढोता,

भठ्ठों‌ पर ईंटें ढ़ोता और ढाबों पर ‌प्लेटें धोता।

फिर भी भूखा ‌पेट‌ मै ‌सोता अपनी क़िस्मत पर‌ रोता,

भूखा बचपन मुरझाया तन कोई दया की भीख ना देता।

आंखों के आंसू सूख चले आशाओं में दिन ढ़लते हैं ,

मैं बचपन ‌हूं मेरी आंखों में भी सपने ‌पलते‌ है ।।1।।

 

मैंने भी सपना देखा सच उसको पूरा करने दो,

आगे बढ़ने कुछ करने का‌ अरमान मचलने दो।

मत रोको मुझको पढ़ने दो आगे बढ़ने दो,

जीवन की कठिन डगर है फिर भी चलने दो।

गिरते गिरते मैं उठता हूं मुझे संभलने दो,

उम्मीदों ‌की डोर पकड़ कर आगे बढ़ने दो।

कठिनाइयों से  जूझ रहा हूं जीवन को सँवरने दो।

मैं बचपन ‌हूं मेरी आंखों में भी सपने ‌पलते‌ है।।2।।

 

मैं भविष्य हूं भारत का‌ मुझे कर्ज चुकाना है,

कुर्बानी वतन की खातिर दे सर को कटाना है।

अपने देश समाज के प्रति मुझे फर्ज निभाना है,

अशिक्षा की तोड़ बेड़ियां उसे आजाद कराना है।

मुझमें सुभाष गांधी पलते हैं उनको पलने दो,

मैं बचपन ‌हूं मेरी आंखों में भी सपने ‌पलते‌ है।।3।।

 

हम‌ सभी ‌पढे़ हम सभी बढ़े, उम्मीद का नारा है,

हम सब‌ में बचपन खिलता है जीवन धन प्यारा है।

हम समाज की आशायें है यही तो जीवन धारा है ,

उन्मुक्त गगन में उड़ने को अब पंख पसारा है।

परवाज़ गगन में करने दो पंछी सा उड़ने दो,

अरमान उमड़ते बादल से अब उन्हें घहरनें दो ।

मैं बचपन ‌हूं मेरी आंखों में भी सपने ‌पलते‌ है।।4।।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

२३–५—२०२०

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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