श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “सौगंध खाई निभाने की खूब मगर… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 30 – सजल – सौगंध खाई निभाने की खूब मगर… 

समांत -आने

पदांत -लगे हैं

मात्रा भार -२२

 

दोस्त देखकर आँखें चुराने लगे हैं ।

मित्रता की तराजू झुकाने लगे हैं।।

 

सौगंध खाई निभाने की खूब मगर,

सीढ़ियांँ जब चढ़ीं तो गिराने लगे हैं।

 

खाए कभी सुदामा ने छिपाकर चने,

गरीब को चुभे दंश रुलाने लगे हैं।

 

कन्हैया सा दोस्त,अब मिलेगा कहाँ,

प्रतीकों में बनकर लुभाने लगे हैं।

 

भूल जाने की आदत सदियों से रही ,

आज फिर नेक सपने सुहाने लगे हैं ।

 

स्वार्थ की बेड़ियों में बँथे हैं सभी,

खोटे-सिक्कों को सब भुनाने लगे हैं।

 

तस्वीरें बदली हैं इस तरह देखिए,

चासनी लगा बातें, सुनाने लगे हैं ।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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