डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘राजधानी में अटका नेता’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 136 ☆

☆ व्यंग्य – राजधानी में अटका नेता  

बिल्लू परेशान हैं।दस बारह साल पार्टी में दरी उठाते और नेताओं की जय बोलते हो गये, लेकिन हाथ कुछ नहीं आया।हाथ खाली का खाली है।आखिरकार बिल्लू के सब्र का बाँध टूट गया।एक दिन मुख्यमंत्री से हाथ जोड़कर बोले, ‘भैया, आप लोगों के हुकुम पर विरोधी पार्टी को गरियाते और लाठी भाँजते सिर के बाल सफेद होने लगे।अब कुछ हम पर भी मेहरबानी हो जाए।’

मुख्यमंत्री जी विष्णु भगवान की तरह वरदान की मुद्रा में बोले, ‘क्या कष्ट है बिल्लू? क्या चाहिए?’

बिल्लू बोले, ‘अब हमें भी कहीं हिल्ले से लगा दो। कुछ इज्जत मिल जाए और कुछ खाने पीने का जुगाड़ हो जाए।’

मुख्यमंत्री जी ने अभय में हाथ उठाया, कहा, ‘चलो तुम्हें भ्रष्टाचार विकास निगम का अध्यक्ष बना देते हैं। खाओ, पियो और भ्रष्टाचार का संरक्षण करो।’

बिल्लू गदगद हुए, चरण छू कर बोले, ‘भैया की जय हो। भ्रस्टाचार के अध्यच्छ का काम क्या होगा?’

मुख्यमंत्री जी बोले, ‘काम क्या है। जो भ्रष्टाचार का विरोध करें उनके खिलाफ कार्रवाई करना है।’

बिल्लू बोले, ‘ठीक है। लाल बत्ती वाली गाड़ी तो मिलेगी न?’

मुख्यमंत्री ने जवाब दिया, ‘मिलेगी। बंगला भी मिलेगा।’

बिल्लू खुश होकर बोले, ‘जय हो। सुरच्छा मिलेगी?’

मुख्यमंत्री ने पूछा, ‘सुरक्षा का क्या करोगे? तुम्हें किस से खतरा है?’

बिल्लू बोले, ‘सुरच्छा का खतरे से क्या ताल्लुक? सुरच्छा गारद तो इज्जत के लिए होती है। ताम-झाम पूरा होना चाहिए।’

मुख्यमंत्री बोले, ‘चलो एक दो पुलिस वाले तुम्हारे साथ लगा देंगे। और बोलो।’

बिल्लू अभिभूत होकर बोले, ‘अब क्या बोलना है? आपने तो सब कुछ दे दिया। जल्दी आडर जारी कर दिया जाए।’

मुख्यमंत्री बोले, ‘आर्डर कल जारी हो जाएगा। जाओ, नये पद पर बैठने की तैयारी करो।’

बिल्लू मुख्यमंत्री जी की चरण- धूल माथे से लगाकर भागे। अपने शहर में अपने दोस्त मल्लू को फोन लगाया। चहक कर बोले, ‘गुरू, अपनी तो लाटरी खुल गई।’

मल्लू ने पूछा, ‘क्या हुआ? पेट्रोल पंप का एलॉटमेंट हो गया क्या?’

बिल्लू बोले, ‘नईं, मुख्यमंत्री जी ने भ्रस्टाचार बिकास निगम का अध्यच्छ बना दिया है। लाल बत्ती की गाड़ी मिलेगी और सुरच्छा गारद भी।’

मल्लू हँसे,बोले, ‘वा बेट्टा, घूरे के दिन भी फिर गए।ठाठ हो गए तुम्हारे। तो अपने शहर कब आ रहे हो?’

बिल्लू बोले, ‘इसीलिए तो फोन किया। बिना स्वागत की तैयारी के कैसे आयें? जुलूस का इंतजाम कर दो।चार पाँच ट्रक और दस बीस कारें हों। नारे लगाने के लिए कालेजों के सौ,दो सौ लड़के पकड़ लो। पहनाने के लिए दो तीन सौ माला जरूर मँगवा लेना। हमारी तरफ से दो तीन बड़े नेताओं से निबेदन कर देना कि सोभा बढ़ाने के लिए स्टेसन पर पहुँच जाएँ।सब युबा नेताओं से कहना कि लोकल अखबारों में बिज्ञप्ति दे दें।तीन चार स्वागत-द्वार बन जाएँ तो और अच्छा। रंग गुलाल मँगा लेना। जलवा हो जाएगा।’

मल्लू बोले, ‘गुरू, झंझट का काम है और खरचे का भी। कम से कम पचास हजार निपट जाएँगे।’

बिल्लू घबरा कर बोले, ‘क्या कह रहे हो? इतना पैसा कहाँ से आएगा?’

मल्लू बोले, ‘तो फिर जुलूस कैसे निकलेगा?’

बिल्लू गिड़गिड़ाकर बोले, ‘ऐसा जुलुम मत करो गुरू। हम गुल्लू को फोन कर देते हैं। उससे पंद्रह हजार ले लेना। बाकी उधार कर लेना। हम जल्दी चुका देंगे। स्वागत-द्वार छोड़ दो। बाकी काम कर लो। जरा कुर्सी पर ठीक से बैठ जाएँ तो पैसा भी आने लगेगा। अखबार में आ जाए कि हम निगम के अध्यच्छ हो गये हैं तो पैसे का रास्ता बनने लगेगा।’

मल्लू बोले, ‘हम देखते हैं। तुम दो तीन दिन बाद फोन करना।’

तीन दिन बाद फिर बिल्लू भाई का फोन आया— ‘क्यों भाई, आ जाएँ क्या? इंतजाम हो गया?’

उधर से जवाब आया, ‘कुछ नहीं हुआ भैया। अखबार वाले ऊटपटाँग पैसे माँग रहे हैं। कॉलेज के लड़के भी बहुत चालू हो गए हैं। नारे लगाने के लिए प्रति लड़का पाँच सौ रुपये मजूरी माँगते हैं।’

बिल्लू भाई दुखी होकर बोले, ‘यह नई पीढ़ी बिल्कुल बरबाद हो गयी है। पहले यह काम एक प्लेट नास्ते में हो जाता था। अब के लड़कों में देससेवा की भावना नहीं रही।नईं हो तो स्कूल के ग्यारहवीं बारहवीं के लड़के पकड़ लो।कोसिस करो भैया।’

मल्लू बोले, ‘देखते हैं। एक तो कोई बड़ा नेता तुम्हारे स्वागत के लिए स्टेशन आने को राजी नहीं है। कहते हैं बिल्लू का स्वागत करने से हमारा स्टैंडर्ड गिर जाएगा।’

बिल्लू फिर दुखी हो गए, बोले, ‘ये नेता लोग किसी के सगे नहीं होते भैया। अब हमारा स्टैंडर्ड बनना सुरू हो गया है। थोड़े दिन की बात और है। तुम और कोसिस कर लो।

हम कब तक यहाँ अटके रहें? जी फड़फड़ाता है। दो दिन और रुक जाते हैं।’

दो दिन बाद बिल्लू भाई का फिर फोन आया, ‘भैया, अब सबर टूट रहा है। हो गया इंतजाम?’

जवाब मिला, ‘नईं भैया! हमने आपके स्वागत के लिए धरमदास जी से बात कर ली थी, लेकिन वे कल भ्रष्टाचार के एक केस में जेल चले गये। मामला फिर उलझ गया है। लड़कों का इंतजाम करने में भी मुश्किल आ रही है। आजकल सब हुशियार हो गये हैं।’

बिल्लू भाई रुआँसे स्वर में बोले, ‘हम यहां कब तक अटके रहें भैया? जुलूस निकल जाता तो कुछ काम धाम सुरू करते। तुम्हें बताएँ कि हम रात भर के लिए ट्रेन से घर हो आये। चुप्पे चुप्पे गये और चुप्पे चुप्पे लौट आये।  कब तक धीरज रखते?’

मल्लू पुचकार कर बोले, ‘अब इतने दिन अटके रहे तो थोड़ा और अटके रहो। इंतजाम कर रहे हैं। भरोसा रखो। तुम्हारा जुलूस जरूर निकलेगा।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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