श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है  डा हरेराम समीप जी के काव्य संग्रह  “बूढा सूरज (हाइकू कवितायें)” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 104 – “बूढा सूरज (हाइकू कवितायें)” – डा हरेराम समीप ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

 पुस्तक चर्चा

कृति – बूढा सूरज (हाइकू कवितायें)

कवि – हरेराम समीप

प्रकाशक – पुस्तक बैंक, फरीदाबाद

पृष्ठ  – 104

मूल्य – 195/-

देखन मे छोटे लगे घाव करें गंभीर- हरेराम समीप के हाइकू – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

न्यूनतम शब्दो मे अधिकमत बात कहने की दक्षता ही कविता की परिभाषा है। विशेष रूप से जब वह कविता जापान जैसे देश से हो जहाँ वृक्षो के भी बोन्साई बनाये जाते है तो हाइकू शैली मे कविता को  अभिव्यक्ति मिलती है। साहित्य विश्वव्यापी होता है। वह किसी एक देश या भाषा की धरोहर मात्र हो ही नही सकता। जापानी भाषा की विधा हाइकू की वैश्विक लोकप्रियता ने यह तथ्य सि़द्ध कर दिया है। भारतीय भाषाओ मे सर्वप्रथम 1919 मे गुरूवर रवीन्द्र नाथ टैगौर ने हाइकू का परिचय करवाया था। फिर 1959 मे हिंदी हाइकू की चर्चा का श्रेय अज्ञेय को जाता है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के जापानी भाषा के प्राध्यापक सत्यभूषण वर्मा ने भारत मे हाइकू सृजन को वैश्विक साहितियक प्रतिष्ठा दिलवाई।

जिस प्रकार गजल के मूल मे परवर दिगार के प्रति रूमानियत की अभिव्यकित है। ठीक उसी के समानान्तर हाइकू मे बौद्ध दर्शन तथा प्रकृति के प्रति सौदंर्य चेतना का प्रवाह रहा है। समय के साथ-साथ एवं रचनाकारो की प्रयोग धर्मिता के चलते हाइकू की भाव पक्ष की यह अनिवार्यता पीछे छूटती गई। किंतु तीन पंक्तियों मे पांच सात पांच मात्राओ का स्थूल अनुशासन आज भी हाइकू की विशेषता है।

डॉ हरे राम समीप जनवादी रचनाकार है। वे विगत लंबे समय से जवाहर लाल नेहरू स्मारक निधि तीन मूर्ति भवन मे सेवारत है। उन्हें संत कबीर राष्ट्रीय शिखर सम्मान, हरियाणा साहित्य अकादमी पुस्तक पुरस्कार, फिराक गोरखपुरी सम्मान जैसे अनेक सृजन सम्मान प्राप्त हो चुके है। स्वाभाविक ही है कि उनके वैश्विक परिदृश्य एवं राष्ट्रीय चिंतन का परिवेश उनकी कविताओ मे भी परिलक्षित होगा। उदाहरण स्वरूप यह हाइकू देखे-

किताबें रख

बस इतना कर

पढ ले दिल

वसुधैव कुटुम्बक का भारतीय ध्येय और भला क्या है, या फिर,

गलीचे बुने

फिर भी मिले उन्हे

नंगी जमीन

हिंदी एवं उर्दू भाषाओ पर हरे राम समीप का समान अधिकार है। अत: उनके हाइकू मे उर्दू भाषा के शब्दो का प्रयोग सहज ही मिलता है।

पहने फिरे

फरेब के लिबास

कीमती लोग

     या

शराफत ने

कर रखा है मेरा

जीना हराम

कबीर से प्रभावित समीप जी लिखते है

चाक पे रखे

गिली मिटटी, सोचू मैं

गढूं आज क्या

    और

कैसा सफर

जीवन भर चला

घर न मिला

अंग्रेजी को देवनागरी मे अपनाते हुये भी उनके अनेक हाइकू बहुत प्रभावोत्पादक है।

हो गए रिश्ते  

पेपर नेपकिन

यूज एंड थ्रो

     या

निगल गया

मोबाइल टावर

प्यारी गौरैया

कुल मिलाकर बूढा सूरज मे संकलित हरेराम समीप के हाइकू उनकी सहज अभिव्यकित से उपजे है। वे ऐसे चित्र है जिन्हें हम सब रोज सुबह के अखबार मे या टीवी न्यूज चैनलो मे रोज पढते और देखते है किंतु कवि के अनदेखा कर देते है। किंतु उनके संवदेनशील मन ने परिवेष के इन विविध विषयो को सूक्ष्म शब्दो मे अभिव्यक्त किया है। संकलन मे कुल 450 हाइकू संग्रहित है। सभी एक दूसरे से श्रेष्ठ है। पुस्तक का शीर्षक बूढा सूरज जिस हाइकू पर केनिद्रत है वह इस तरह है।

बूढा सूरज

खदेडे अंधियारे

अन्ना हजारे

वर्तमान सामाजिक सिथति मे अन्ना हजारे के लिये इससे बेहतर भला और क्या उपमा दी जा सकती है। कवि से और भी अनेक सूत्र स्वरूप हाइकू की अपेक्षा हिंदी जगत करता है। समीप जी ने गजले, कहानिया और कवितायें भी लिखी है पर हाइकू मे उन्होने जो कर दिखाया है उसके लिये यही कहा जा सकता है कि देखन मे छोटे लगे घाव करें गंभीर. समीप जी ने अपने अनुभवो के सागर को हाइकू के छोटे से गागर में सफलता पूर्वक ढ़ाल दिया है .

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’, भोपाल

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Mukta Mukta

बहुत सार्थक समीक्षा।समीप जी को सुंदर व सार्थक सृजन के लिए हार्दिक बधाई।