श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  द्वारा लिखित एक विचारणीय कविता  ‘सृजन की कोख’ । इस विचारणीय रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 140 ☆

? कविता – सृजन की कोख ?

वाह, काश, उफ, ओह

वे शब्द हैं

जो

अपने आकार से

ज्यादा, बहुत ज्यादा कह डालते हैं !

 

हूक, आह, पीड़ा, टीस

वे भाव हैं

जो

अपने आकार से

ज्यादा, बहुत ज्यादा समेटे हुये हैं दर्द !

 

मैं तो यही चाहूँगा कि

काश! किसी

को

भी, कभी टीस न हो

सर्वत्र सदा सुख ही सुख हो !

 

शायद, ऐसा होने नहीं देगा

नियंता पर

क्योंकि

विरह का अहसास

चुभन, कसक, टीस !

कोख है सृजन की.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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