श्री श्याम संकत

(श्री श्याम संकत जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। स्वान्त: सुखाय कविता, ललित निबंध, व्यंग एवं बाल साहित्य में लेखन।  विभिन्न पत्र पत्रिकाओं व आकाशवाणी पर प्रसारण/प्रकाशन। रेखांकन व फोटोग्राफी में रुचि। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  कविता ‘जांच कमेटी का बैठना’

☆ कविता ☆ जांच कमेटी का बैठना ☆ श्री श्याम संकत ☆ 

जैसे बुधिया की भैंस

बैठ जाती है धम्म से

जैसे राम आसरे की कच्ची दीवार

बैठ गई इस बारिश में

वैसे ही, फिर बैठ गई है जांच कमेटी बीते साल बैठ गई थी

दुलारे की किराना दुकान की तरह

अब होगी जांच पड़ताल

कौन कसूरवार रहा, कौन चूका

किसने किया अपराध, गड़बड़ घोटाला देखेगी, परखेगी, जांचेगी

करेगी दूध पानी अलग-अलग

जो बैठ गई है जांच कमेटी

इसका बैठ जाना सबको पता चलता है

यह उठती कब है?

क्या लेकर, कोई नहीं जानता

बस ताजी खबर यही है कि 

फिर बैठ गई है जांच कमेटी

बुधिया की भैंस की तरह।

 

© श्री श्याम संकत 

सम्पर्क: 607, DK-24 केरेट, गुजराती कालोनी, बावड़िया कलां भोपाल 462026

मोबाइल 9425113018, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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अरुण कुमार डनायक

सही कहा आपने। कविता में छिपे व्यंग्य को हमने भी महसूस किया। पात्रों के नामों का चयन अद्भुत है। उनके नाम पढ़कर ही समझ में आ जाता है कि कविता शोषितों वंचितों के बारे में है। फिर धीरे-धीरे कविता आगे बढ़ती है और पाठक को यह अहसास कराती है कि आम आदमी का जीवन कितना कठिन है और उसे भरमाए रखने में जांच कमेटी का किरदार कैसे सत्ता उपयोग करती है। कवि श्री श्याम संकट को साधुवाद