श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “कैसी यह लाचारी है… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 15 – सजल – कैसी यह लाचारी है…  ☆ 

समांत- आरी

पदांत- है

मात्राभार- 14

 

कैसी यह लाचारी है।

विकट समस्या भारी है।।

 

फिदा पड़ोसी पर होते ,

मजहब से ही यारी है।

 

आतंकी सब सखा बने,

मानवता भी हारी है ।

 

काश्मीर में शांति आई,

खिली वहांँ फुलवारी है।

 

लोकतंत्र में भ्रष्टाचार,

जनता से मक्कारी है।

 

गहरी जड़ें वंशवाद की,

नेता की बलिहारी है।

 

जन सेवक कहलाते जो,

गाड़ी-घर सरकारी है।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

01-01- 2022

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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