प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  “अटपटी दुनियॉं”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # काव्य धारा 62 ☆ गजल – अटपटी दुनियॉं ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

साथ रहते हुये भी घर एक ही परिवार में

भिन्नता दिखती बहुत है व्यक्ति के व्यवहार में।।

एक ही पौधे में पलते फूल-कॉटे साथ-साथ

होता पर अन्तर बहुत आचार और विचार मे।।

आदमी हो कोई सबके खून का रंग लाल है

भाव की पर भिन्नता दिखती बड़ी संसार में।।

हर जगह पर स्वार्थश टकराव औ’ बिखराव है

एकता की भावना पलती है केवल प्यार में।।

मेल की बातें तो कम, अधिकांश मन मे मैल है

भाईचारे का चलन है सिर्फ लोकाचार में।।

नाम के है नाते-रिश्ते, सच, किसी का कौन है ?

निभाई जाती है रस्में सभी बस उपचार में।।

भुला सुख-सुविधायें अपनी जो हमेशा साथ दे

राम-लक्ष्मण-भरत से भाई कहाँ संसार में।।

दुनियाँ की गति अटपटी है साफ दिखती हर तरफ

फर्क होता आदमी की बात औ’ व्यवहार में।।

कभी भी घुल मिल किसी को अपना कहना व्यर्थ है

रंग बदल जाते है अपनों के भी तो अधिकार में।।        

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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