डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘अन्तरात्मा की ख़तरनाक आवाज़’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 121 ☆

☆ व्यंग्य – अन्तरात्मा की ख़तरनाक आवाज़ 

एक हफ्ते से मुख्यमंत्री जी की नींद हराम है। रात करवटें बदलते गुज़रती है। कारण यह है कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है और तीन दिन बाद प्रस्ताव पर वोटिंग होनी है। चिन्ता का कारण यह है कि मुख्यमंत्री जी की सरकार दो और पार्टियों के सहयोग से बनी है और उनमें से एक, देशप्रेमी पार्टी  के नेता देशभक्त जी ने एक अखबार को इंटरव्यू में बयान दिया है कि उनकी पार्टी अन्तरात्मा की आवाज़ पर वोट देगी। तभी से मुख्यमंत्री जी को चैन नहीं है। बार बार अपने सरकारी आवास को हसरत से देखते हैं कि यह वैभव रहेगा या छूट जाएगा?

उन्होंने अपने विश्वस्त मंत्री त्यागी जी को बुलाया। आदेश दिया कि दोनों पार्टियों के नेताओं से मिलें और वस्तुस्थिति का ठीक ठीक पता लगाकर उन्हें तुरन्त जानकारी दें। त्यागी जी तत्काल पवनपुत्र की तरह पवन-वेग से रवाना हुए। मुख्यमंत्री जी बेचैनी से कमरे में टहलते रहे। त्यागी जी लौटे तो चेहरे पर चिन्ता विराजमान थी। मुख्यमंत्री जी को बताया, ‘जनसेवक पार्टी से तो कोई खतरा नहीं है, उनका सपोर्ट तो पक्का मिलेगा, लेकिन देशभक्त जी के मन में खोट है। साफ मना भी नहीं करते, लेकिन कहते हैं कि पार्टी के लोग अन्तरात्मा की आवाज़ पर वोट देना चाहते हैं। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन साफ साफ बताने से बचते रहे।’

सुनकर मुख्यमंत्री जी का मुँह उतर गया,बोले, ‘इनकी अन्तरात्मा वोटिंग के टाइम ही जागती है। हम सब समझते हैं। अब वोटिंग से पहले इनकी अन्तरात्मा की आवाज़ को शान्त करना पड़ेगा। राजनीति में किसी का भरोसा नहीं है। उधर से मलाईदार कटोरा रख दिया जाएगा तो अन्तरात्मा की आवाज़ पर पल्टी मार जाएँगे। समय रहते इनका इलाज करना पड़ेगा। मंत्रिमंडल में कोई फायदेवाला पोर्टफोलियो चाहते होंगे,इसीलिए अन्तरात्मा अचानक आवाज़ देने लगी है। देशभक्त जी को फोन करके बुलाओ। बात करनी पड़ेगी।’

थोड़ी देर में. देशभक्त जी हाज़िर हो गये। हँसकर मुख्यमंत्री जी से बोले, ‘हम तो सोलहों आने आपके साथ हैं, लेकिन पार्टी के कुछ लोग खामखाँ अन्तरात्मा की आवाज़ की रट लगाये हैं। क्या करें?’

मुख्यमंत्री जी उन्हें कमरे में ले गये। त्यागी जी की उपस्थिति में गोपनीय बात हुई। एक घंटे तक बात चली। देशभक्त जी बाहर निकले तो तो उनका चेहरा खुशी से चमक रहा था। चलते चलते हाथ उठाकर मुख्यमंत्री जी से बोले, ‘आप बिलकुल निश्चिन्त रहें। हम प्रान जाएं पर वचन न जाई के उसूल पर चलने वाले हैं। पार्टी के लोगों को समझाने का जिम्मा हमारा है। कोई गड़बड़ नहीं होगी।’

उनके जाने के बाद मुख्यमंत्री जी त्यागी जी से बोले, ‘त्यागी जी, पॉलिटिक्स में अन्तरात्मा की आवाज़ से बड़ा हौआ कोई नहीं होता। यह अन्तरात्मा की आवाज़ अच्छों अच्छों की नींद हराम कर देती है। इस पर तुरन्त साइलेंसर न लगाया जाए तो बड़ा नुकसान हो सकता है। हमने अभी तो साइलेंसर लगा दिया है, लेकिन आगे सावधान रहना पड़ेगा।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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