श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं एक विचारणीय गीतिका “रोटियाँ….”)

☆  तन्मय साहित्य  #113 ☆

☆ गीतिका – रोटियाँ….

कितना अहम सवाल हो गई है रोटियाँ

सुबहो शरण दी पेट में फिर शाम रोटियाँ।

 

जंगल में इसी बात पे पंचायतें जुटी

क्यों शहर में ही सिर्फ बिक रही है रोटियाँ।

 

फुटपाथ के फकीर ने उठते ही दुआ की

अल्लाह आज भी दिला दो चार रोटियाँ।

 

मजदूरनी के पूत ने रोते हुए कहा

छाती में नहीं दूध माँ कुछ खा ले रोटियाँ।

 

कचरे में ढूँढते हुए भारत का वो भविष्य

उछला खुशी से फेंकी हुई देख रोटियाँ।

 

संसद में मानहानि का गंभीर था सवाल

क्यों व्यर्थ ही चिल्ला रहे कुछ लोग रोटियाँ।

 

देहलीज से निकल के कहाँ लापता हुई

है संविधान ला दे मुझे मेरी रोटियाँ।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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Mukta Mukta

बहुत मार्मिक.