श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “रंग ”)

? ग़ज़ल # 8 – “रंग ” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

सामने आते ही दिल में उतर जाते हैं,

इश्क़ज़दा चेहरों के रंग बदल जाते हैं।

 

माशूक़ का चेहरा खिला सुर्ख़ ग़ुलाब,

ख़ाली बटुआ देख के रंग बदल जाते हैं।

 

जो क़समें खाते सदियों साथ चलने की,

पहली फ़ुर्सत उनके ढंग बदल जाते हैं।

 

समा जाना चाहते थे जो एक दूसरे में,

बासी ख़ुशबू उनके अंग बदल जाते हैं।

 

एक सा नहीं रहता समय का मिज़ाज,

वक़्त के साथ सबके ढंग बदल जाते हैं।

 

ज़िंदगी में पत्थर तो हम सभी उठाते हैं,

मुलज़िम सामने पा के संग बदल जाते हैं।

 

मौत की सज़ायाफ़्ता क़ैद में सब ज़िंदगी,

कुव्वत हिसाब कूच के ढंग बदल जाते हैं।

 

सियासती चेहरों के रंग को क्या कहिए,

चाल के हिसाब उनके ढंग बदल जाते हैं।

 

कई मुखौटा लगाकर चलते हैं हम सब,

क़ज़ा की चौखट सबके रंग बदल जाते हैं।

 

मुहब्बत सियासत में सब जायज़ ‘आतिश’

दाँव लगता देख सबके ढंग बदल जाते हैं।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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