श्री विजय कुमार

(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी  की एक विचारणीय लघुकथा  “अफ़सोस)

☆ लघुकथा – अफ़सोस ☆

“क्या बात है विष्णु, इतना परेशान-सा क्यों है यार?” रविंदर ने पूछा।

“परेशान नहीं यार, पर गुस्सा आ रहा है।” विष्णु बोला।

“किस बात का, बता तो?” रविंद्र ने फिर पूछा।

“मुझे मलेशिया में हो रही अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय खेल प्रतियोगिताओं के लिए अलग-अलग विश्वविद्यालयों से खिलाड़ियों का चयन करके ले जाना है।” विष्णु ने कहा, जो चयन करने वाली कमेटी का प्रधान था।

“तो इसमें परेशानी क्या है? वह तो तुम परफॉर्मेंस के आधार पर चयन कर लो सीधा-सीधा।” रविंद्र ने कंधे उचकाते हुए कहा।

“क्या खाक चयन कर लूं? दो-चार को छोड़कर लगभग सभी उन खिलाड़ियों के नाम विश्वविद्यालयों द्वारा भेजे गए हैं, जिनकी बड़े-बड़े लोगों की सिफारिशें हैं। बाहर जाने का मौका कोई नहीं छोड़ना चाहता, पदक आए या ना आए, उनकी बला से,” विष्णु ने खीझ कर कहा, “और जो सही में प्रतिभावान हैं और पदक ला सकते हैं, उनका नाम ही नहीं है।”

“यार तुम्हारी बात से बचपन की एक बात याद आ गई,” रविंद्र ने हंसते हुए कहा, “जब भी घर में कोई चीज जैसे मिठाई वगैरह आती थी, तो हम सभी भाई बहन अलग-अलग से चोरी-चोरी, चुपके-चुपके एक-एक टुकड़ा उठा-उठा कर, यह सोचकर खाते रहते थे कि किसी को क्या पता चलेगा, एक ही टुकड़ा तो लिया है, और इस तरह सारा डब्बा खाली हो जाया करता था। बाद में मां-बाबूजी से डांट भी खानी पड़ती थी।”

“यही तो चिंता का विषय है मेरे लिए। मेरे देश का भी यही हाल हो रहा है। थोड़ा-थोड़ा करके सभी लोग भ्रष्टाचार करते जा रहे हैं, और सोच रहे हैं कि क्या फर्क पड़ेगा, और इधर पूरा देश भ्रष्टाचारी और खोखला होता जा रहा है,” विष्णु कह रहा था, “और अफसोस इस बात का है कि यहां कोई मां-बाबूजी भी नहीं हैं, रोकने या डांटने-फटकारने वाले…।”

©  श्री विजय कुमार

सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)

संपर्क – # 103-सी, अशोक नगर, नज़दीक शिव मंदिर, अम्बाला छावनी- 133001 (हरियाणा)
ई मेल- [email protected] मोबाइल : 9813130512

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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रश्मि लहर

सटीक लेखन!