श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है  एक विचारणीय व्यंग्य  ‘ मोहल्ला और मंदिर ….!’ )  

☆ कविता # 114 ☆ मोहल्ला और मंदिर….! ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

जब उन्होंने इस मोहल्ले में प्लाट खरीदा, तो कुछ लोगों ने खुशी जाहिर की, कुछ लोगों ने ध्यान नहीं दिया और कुछ लोगों के व्यवहार और बाडी लेंग्वेज ने बता दिया कि प्लाट के साथ फ्री में मिली सड़क उनके अंदर खुचड़ करने की भावना पैदा कर रही है। दरअसल इस प्लाट को लेने मोहल्ले के कई लोग इच्छुक थे।  इच्छुक इसलिए भी थे क्योंकि इसी प्लाट के आखिरी छोर पर सड़क आकर खतम हो जाती है।  हर किसी को फायदेमंद बात इसीलिए लग रही थी कि जिस साइज का प्लाट था उसके सामने की सड़क की जगह उस प्लाट मालिक को मुफ्त में मिल जायेगी, इस कारण से भी मोहल्ले के लोगों में खींचतान और बैर भाव पनप रहा था।प्लाट लेने वालों की संख्या को देखते हुए संबंधित विभाग ने प्लाट को ऑक्शन के नियमों के अनुसार बेचने का फैसला किया, बंद लिफाफे में ड्राफ्ट के साथ आवेदन मंगाए गए, सबके सामने लाटरी खोली गई और मधुकर महराज को प्लाट मिल गया। मधुकर महराज सीधे सादे इंसान थे, बंद गली का आखिरी मकान के मकान मालिक बनने की खुशी में जल्दी मकान बनाने लगे तो मोहल्ले में कुछ खुचड़बाजों ने राजनीति चालू कर दी। कुछ लोगों के अंदर आस्था का सैलाब उमड़ने लगा, मोहल्ले में मंदिर बनना चाहिए ऐसी बातें दबी जुबान चालू हो गईं।

गुप्ता जी की व्याकुलता बढ़ गई है  रोज उनके सपने में  रामचंद्र जी और बजरंगबली आने लगे, वे सुबह उठते और मोहल्ले वालों से कहते हैं कि बंद गली के आखिरी मकान के सामने की सड़क पर रातों-रात मंदिर बनना चाहिए। सपने की बात उन्होंने अपने गुट के लोगों को बताई, यह बात मोहल्ले में फैल गई। मधुकर जी का मकान तेजी से बनकर खड़ा हो गया, सामने की खाली जगह को देखकर लोगों की छाती में सांप लोटने लगता …..

मंदिर बनाने के बहाने कब्जा करने की नीति का खूब प्रचलन है यही कारण है कि गली गली, मोहल्ले मोहल्ले, सड़क के किनारे, दुकानों के बगल में खूब बजरंगबली और दुर्गा जी बैठे दिखाई देते हैं।

तो जबसे मधुकर जी का दो मंजिला मकान बनकर खड़ा हुआ है तब से मोहल्ले में पड़ोसियों के बीच बजरंगबली और दुर्गा जी के दो गुट बन गये , दुर्गा जी गुट के वर्मा जी मोहल्ले में उमड़ी अध्यात्मिक राजनीति की खबर मधुकर महराज तक पहुंचाते रहते । मधुकर जी सीधे सादे हैं पर इस खबर से विचलित रहते कि उनके घर के सामने की खाली जगह पर कुछ लोग रातों-रात मंदिर बनाना चाह रहे हैं।

मंदिर के नाम पर मोहल्ले में अचानक एकजुटता देखने मिलने लगी। पहले आपस में इंच इंच के लिए झगड़े होते थे।

बजरंगबली समर्थक गुट बजरंगबली की मूर्ति देख आया था, और कुछ लोग दुर्गा जी की मूर्ति देख आये थे।

चतुर्वेदी जी के घर में हुई मीटिंग से पता चला कि आजकल बने बनाए रेडीमेड मंदिर बाजार में मिलते हैं, पर कीमत थोड़े ज्यादा है, चंदे की बात में झगड़ा हो गया, झगड़ा इतना बढ़ा कि मामला पुलिस तक पहुंच गया, पुलिस मोहल्ले पहुंच गई, मोहल्ले में खुसर-पुसर मच गई, मधुकर महराज घोर संकोच में फंस गए, उगलत लीलत पीर घनेरी।

गृह प्रवेश की तिथि और ऊपर से थाने में पेशी। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। पुलिस वाला बोला- इतनी मंहगाई में मकान बनाने की क्या जरूरत आ गई, इतनी मंहगाई में इतना सारा पैसा कहां से आ गया, बजरंगबली से क्यों पंगा ले रहे हो। पुलिस के ऐसे घातक सवालों और धमकियों से मधुकर जी का मन दुखी हो गया। वे नारियल फोड़कर रातों-रात अपने घर में घुस गये। मोहल्ले में घूरती निगाहों का वे सामना करते रहे, दिन बीतते गए, मंदिर बनने की घुकघुकी में मन उद्वेलित रहता।

मोहल्ले में धीरे धीरे आस्था का सैलाब ठंडा पड़ने लगा, जिनके सपनों में बजरंगबली और दुर्गा जी आ रहे थे, उनकी नजरें झुकी झुकी रहने लगीं, गुप्ता जी दिल के दौरे से चले गए, मधुकर जी ने सामने की जगह घेर ली, कुछ लोगों को जलाने के लिए सामने गेट लगा दिया,

मंदिर की बात धीरे धीरे लोग भूल गए…

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बीस साल बाद मधुकर जी ने उस जमीन पर मंदिर बना दिया, मोहल्ले में इर्ष्या जलन की हवा चलने लगी, दो गुट आपस में लड़ने लगे, कटुता फैल गई, पड़ोसियों ने आपत्ति उठाई कि मंदिर की छाया उनके घर के सामने नहीं पड़नी चाहिए नहीं तो पुलिस केस कर देंगे। बात आई और गई…. मधुकर महराज ने महसूस किया कि जब से मंदिर बना है तब से आज तक मोहल्ले का कोई भी व्यक्ति मंदिर में पूजा करने या दर्शन करने नहीं आया, मधुकर महराज को इसी बात का दुख है। बजरंगबली खुशी खुशी चोला बदलते रहते हैं, मोहल्ले वालों को इसकी कोई खबर नहीं रहती। आस्था लोभ मोह में भटकती रहती, इसीलिए मधुकर जी ने मंदिर में एक बड़ा घंटा भी लगवा दिया है, जो सुबह-शाम बजने लगता है, पर मोहल्ले वालोंं को कोई फर्क नहीं पड़ता……

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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डॉ भावना शुक्ल

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