डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 63 –  दोहे 

शकुंतला की वेदना,पीड़ा पृष्ठ अनंत।

एक अश्रु की नसीहत, परिवर्तित दुष्यंत।।

 

अश्रु,अश्क, आँसू कहे, याकि नयन का नीर।।

हतभागों के पास है, सिर्फ यही जागीर।।

 

अश्रु नहीं कुछ और ये, दर्दों की संतान।

कवि ने उसको दे दिया, शब्दों का परिधान।।

 

आँसू दुख में निकलते, याकि रहे अनुराग ।

अश्रु बर्फ मानिंद हों, शीतलता में आग।।

 

विरह मिलन आँसू झरें, करें नयन उत्पाद।

बिना कहे ही समझ लें, ह्रदय हृदय की बात।।

 

ईश्वर रोया एक दिन, आँसू गिरा अमोल ।

इसीलिए दुनिया दिखे, आँसू जैसी गोल।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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डॉ भावना शुक्ल

शानदार अभिव्यक्ति