श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण कविता लेना है तो देना सीखो । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 92 ☆

☆ लेना है तो देना सीखो ☆

लेना है तो देना सीखो

साथ सत्य के रहना सीखो

लेना है तो देना सीखो

 

स्वार्थ भरा है रग रग में

खड़ी है लालसा पग पग में

त्याग कभी कुछ करना सीखो

लेना है तो देना सीखो

 

लोभ मोह ने आके घेरा

दिल में है बस तेरा मेरा

दान-धरम भी करना सीखो

लेना है तो देना सीखो

 

दिल में प्रेम बसेरा कर लो

तम को मार सबेरा कर लो

दुख औरों के हरना सीखो

लेना है तो देना सीखो

 

दीन-दुखी की सेवा करिये

मानवता ना कभी बिसरिये

दिल में धीरज धरना सीखो

लेना है तो देना सीखो

 

जीना है तो मरना सीखो

कदम कदम पर लड़ना सीखो

साथ सत्य के चलना सीखो

लेना है तो देना सीखो

 

दिल में गर “सतोष” रहेगा

सुख-शांति का कोष रहेगा

राह धर्म की चलना सीखो

लेना है तो देना सीखो

साथ सत्य के चलना सीखो

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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