श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावप्रवण कविता  “#क्या रावण जल गया?#। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# #92 ☆ # क्या रावण जल गया? # ☆

हर साल जलाते हैं रावण को,

फिर भी अब-तक जिंदा है।

वो लंका छोड़ बसा हर मन में,

मानवता शर्मिंदा हैं।

हर साल जलाते रहे उसे,

फिर भी वो ना जल पाया।

जब हम लौटे अपने घर को,

वो पीछे पीछे घर आया।

शहर गांव ना छूटा उससे,

सबके मन में समाया।

मर्यादाओं की चीर हरे वो,

मानवता चित्कार उठी।

कहां गये श्री राम प्रभु,

सीतायें  उन्हें पुकार उठी।

अब हनुमत भी लाचार हुए,

निशिचरों ने उनको  फिर बांधा।

निशिचर  घूम रहे गलियों में,

है कपट वेष अपना‌ साधा।,

कामातुर जग में घूम रहे,

आधुनिक बने ये  नर-नारी।

फिर किसे दोष दे हम अब,

है फैशन से सबकी यारी।

आधुनिक बनी जग की नारी

कुल की मर्यादा लांघेगी।

फैशन परस्त बन घूमेगी,

लज्जा खूंटी पर टांगेगी।

जब लक्ष्मण रेखा लांघेगी,

तब संकट से घिर जायेगी।

फिर हर लेगा कोई रावण,

कुल में दाग लगायेगी।

कलयुग के  लड़के राम नहीं,

निशिचर,बन सड़क पे ‌घूम रहे।

अपनी मर्यादा ‌भूल गये,

नित नशे में वह अब झूम रहे।

रावण तो फिर भी अच्छा था,

राम नाम अपनाया था।

दुश्मनी के चलते ही उसने,

चिंतन में राम बसाया था।

श्री रामने अंत में इसी लिए,

शिक्षार्थ लखन को भेजा था।

सम्मान किया था रावण का,

अपने निज धाम को भेजा था।

अपने चिंतन में हमने क्यों,

अवगुण रावण का बसाया है।

झूठी हमदर्दी दिखा दिखा,

हमने अब तक क्या पाया है।

उसके रहते  अपने मन में ,

क्या राम दरस हम पायेंगे।

फिर कैसे पीड़ित मानवता को

न्याय दिला हम पायेंगे।

इसी लिए फिर ‌बार‌ बार ,

मन के रावण को मरना होगा।

उसकी पूरी सेना का,

शक्तिहरण अब करना ‌होगा।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

18-8-2021

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
4 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Shyam Khaparde

सुंदर भावपूर्ण रचना