श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता बीरबल!। इस विचारणीय कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 116 ☆

? कविता – बीरबल! ?

 

बीरबल!

तुम्हारी जाने कब

पकने वाली

खिचडी !

जो तुमने पकाई थी , कभी

उस गरीब को

न्याय दिलाने के लिये .

क्यों आज न्याय के नाम पर

पेशी दर पेशी पक रही है

पक रही है पक रही है.

 

खिचडी क्यों

बगुलों और काले कौऔ की ही गल रही है

और आम जनता

सूखी लकडी सी

देगची से

बहुत नीचे

बेवजह जल रही है.

 

दाल में कुछ काला है जरूर

क्योंकि

रेवडी

सिर्फ अपनों को ही बंट रही है.

 

रेवडी तो हमें चाहिये भी नहीं

बीरबल !

पर मुश्किल यह है कि अब

दो जून खिचडी भी नहीं मिल

रही है।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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