डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #57 –  दोहे 

विवश विधाता ने किया, बरबस ही कुछ याद।

अश्रु आंख से निकलकर, बना याद अनुवाद।।

 

अश्रु पीर का मित्र है, जब्त किए  जज्बात।

बिना कहे ही कह रहा, किसकी क्या औकात ।

 

अश्रु – अश्रु में फर्क है, करें मौन संवाद।

आंसू देता साक्ष्य है, झलकें  हर्ष -विषाद ।।

 

तेरा हर आंसू मुझे, कर देता बेचैन।

देख देख कर बेबसी, भर आते हैं नैन।।

 

आंसू मां के नयन के, वत्सलता का रूप।

और एक आंसू रचे,   सिंदूरी  प्रारूप।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Shyam Khaparde

सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन भावात्मक अभिव्यक्ति