श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है हिंदी माह पर विशेष अतिसुन्दर एवं विचारणीय  कविता   ‘भाषा ).   

☆ कविता # 103 ☆ हिंदी माह विशेष – भाषा ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

जरा सोचो..

        देश में कितने गड्ढे,

भाषा क्षेत्र फिरके,

        उजली मिनारों की दरारें,

दरारें पाटने की इच्छा,

       कुसंस्कारों के थिगड़े,

चूल्हे से मरघट,

        तक फैलतीं परम्पराएं,

बेबसी के कंधे,

        पनपती निजी सेनाएं,

भाषा और संस्कृति,

         डरा हुआ आदमी,

भाषा का सवाल,

         रोटी से पूंछता है,

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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