आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा  रचित  भावप्रवण  गीत ‘वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 58 ☆ 

☆ गीत – वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ ☆ 

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जड़ें सनातन ज्ञान आत्मा है मेरी

तन है तना समान सुदृढ़ आश्रयदाता

शाखाएँ हैं प्रथा पुरातन परंपरा

पत्ता पत्ता जीव, गीत मिल गुंजाता

पंछी कलरव करते, आगत स्वागत हूँ

वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ

*

औषध बन मैं जाने कितने रोग हरूँ

लकड़ी बल्ली मलगा अनगिन रूप धरूँ

कोटर में, शाखों पर जीवन विकसित हो

आँधी तूफां सहता रहता अविचल हो

पूजन व्रत मैं, सदा सुहागन ज्योतित हूँ

वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ

*

हूँ अनेक में एक, एक में अनगिनती

सूर्य-चंद्रमा, धूप-चाँदनी सहचर हैं

ग्रह-उपग्रह, तारागण पवन मित्र मेरे

अनिल अनल भू सलिल गगन मम पालक हैं

सेतु ज्ञान विज्ञान मध्य, गत-आगत हूँ

वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ

*

वेद पुराण उपनिषद आगम निगम लिखे

ऋषियों ने मेरी छाया में हवन करे

अहंकार मनमानी का उत्थान-पतन

देखा, लेखा ऋषि पग में झुकता नृप सिंहासन

विधि-ध्वनि, विष्णु-रमा, शिव-शिवा तपी-तप हूँ

वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ

*

विश्व नीड़ में आत्म दीप बन जलता हूँ

चित्र गुप्त साकार मूर्त हो मिटता हूँ

जगवाणी हिंदी मेरा जयघोष करे

देवनागरी लिपि जन-मन हथियार सखे!

सूना अवध सिया बिन, मैं भी दंडित हूँ

वृक्षों में वट वृक्ष सदृश मैं भारत हूँ

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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