श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण कविता   ‘अदले-बदले की दुनियॉ….। )

☆  तन्मय साहित्य  # 93  ☆

 ☆ अदले-बदले की दुनियॉ…. ☆

साँझ ढली, सँग सूरज भी ढल जाए

ऊषा के सँग, पुनः लौट वह आए।

 

अदले-बदले की,  दुनिया के रिश्ते हैं

जो न समझ पाते, कष्टों में पिसते हैं

कठपुतली से रहें, नाचते पर वश में,

स्वाभाविक ही, मन को यही लुभाए।

साँझ ढली……

 

थे जो मित्र, आज वे ही प्रतिद्वंदी हैं

आत्म नियंत्रण कहाँ, सभी स्वच्छंदी हैं

अतिशय प्रेम जहाँ, ईर्ष्या भी वहीं बसे,

प्रिय अपना ही, झूठे स्वप्न दिखाए।

साँझ ढली……

 

चाह सभी को बस, आगे बढ़ने की है

कैसे भी हों सफल, शिखर चढ़ने की है

खेल चल रहे हैं, शह-मात अजूबे से,

समय आज का सब को, यही सिखाए।

साँझ ढली……

 

आदर्शों को पकड़े, अब भी हैं ऐसे

कीमत जिनकी, आँक रहे कंकड़ जैसे

हर मौसम के वार सहे, आहत मन पर,

रूख हवा का नहीं, समझ जो पाए।

साँझ ढली, सँग सूरज भी ढल जाए।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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Shyam Khaparde

अच्छी रचना