श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘उदास जिंदगी। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 42 ☆

☆ उदास जिंदगी 

ना जाने क्यों आज दिल बहुत उदास है,

किसी नदी किनारे पेड़ की छांव में,

बैठ कर रोने को मन कर रहा है ||

थक गया पहाड़ सी जिंदगी को ढ़ोते-ढ़ोते,

खुद को भूल गया बोझ के तले दब कर,

आज खुद को ढूंढने का मन कर रहा है ||

कितनी उतार-चढ़ाव भरी है जिंदगी,

दुर्गम रास्तों पर चलते हुए अब थक गया हूँ,

जिस्म भी साथ छोड़ने को आतुर हो रहा है ||

कितनी शांत एक लय में बह रही है नदी,

उलझन भरी इस जिंदगी में,

मेरा मन अशांत सा बह रहा है ||

क्या खोया क्या पाया, लेखा जीवन का देखा,

पाया तो थोड़ा कुछ और खोया सब कुछ,

खाता बही में शून्य ही बचा पाया हूँ ||

ना जिंदगी से गिला है ना अपनों से शिकवा,

मैं भी रिश्तों के जुर्म में,

बराबरी की भागीदारी निभा आया हूँ ||

अब जिंदगी में रखा भी क्या है?

कुछ रिश्तें मुझे भूल गए,

कुछ रिश्तों को में भूल आया हूँ ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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Shyam Khaparde

बहुत बढ़िया