श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावपूर्ण रचना  “उसकी खोज….। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 82 ☆ उसकी खोज…. ☆

 

दिन के उजाले में अपनी परछाई देखी,

चांद दिखा ‌अंबर‌ में और पानी में ‌छाया।

तपती दोपहरी में एक मृग मरीचिका सी,

गली गली में भी मैं उसे ढूंढ नहीं पाया ।

 

मंदिरों में खोज रहा मस्ज़िदों में झांक रहा,

गिरजों गुरद्वारों में उसे ही पुकार रहा।

देता अजान रहा और पढ़ता कुरान रहा।

घंटे घड़ियाल बजा मैं गाता रहा आरती।

 

भाग‌ रहा जीवन भर मन में अहसास लिए,

फिर भी ना‌‌ पकड़ पाया परछाई ‌भागती ।

उसको मैं जान रहा उसको ही‌ मान रहा,

कभी उसे देखा नहीं ना उससे पहचान थी।

 

अपनी आंखों‌ में दर्शन की चाह‌ लिेये,

रहा‌ हूँ भटकता मैं ढूंढ ढूंढ हार गया।

ढूंढ ढूंढ बाहर मैं थक कर निढाल हुआ,

खुद के भीतर ‌झांका तो उसे वहीं पाया ।

 

मन की आंखों से जब मैंने उसे देखा

छलक पड़े दृगबिंदु मन में वो समाया ।

अंतर्मन में ‌जब‌ होकर‌ मौन देखा,

आओ बतायें तुम्हें कहां कहां पाया।

 

सबेरे की‌ भोर में झरनों के शोर में

सागर की‌ हलचल, नदियों की‌ कलकल में।

चिड़ियों के गीत में जीवन संगीत में,

बच्चों की‌ क्रीड़ा में ‌दुखियों की ‌पीडा़ ‌में,

दीनो ईमान में सारे जहान में सारे जहान में,

डाल डाल पात पात फूलों की रंगत में,

जहां जहां नजर पड़ी उसको ही पाया।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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