श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से  सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी बाल कविता चोर-सिपाही, राजा-रानी…..। )

☆  तन्मय साहित्य  #89 ☆

 ☆ बाल कविता – चोर-सिपाही, राजा-रानी….. ☆

चोर सिपाही राजा रानी

मची हुई थी खींचातानी।

 

चोर कहे, चोरी नहीं की है

कहे सिपाही अलग कहानी।

 

रानी जी को गुस्सा आया

राजा ने भी, भृकुटी तानी।

 

फिर न्यायाधीश को बुलवाया

करी सिपाही ने अगवानी।

 

न्यायाधीश ने समझाया कि,

सही बोल, मत कर मनमानी।

 

झूठ कहा तो, दंड मिलेगा

हवा जेल की पड़ेगी खानी।

 

हाँ साहब जी, भूल हो गई

चोर ने अपनी गलती मानी।

 

अब न करुँगा आगे चोरी

माफ करो मेरी नादानी।

 

तंग गृहस्थी और गरीबी

नरक हुई मेरी जिंदगानी।

 

न्यायाधीश को रहम आ गया

चिंतित भी थी सुनकर रानी।

 

राजा को भी दया आ गई

थोड़ी सजा की मन में ठानी।

 

गर्मी के मौसम भर तुम्हें

पिलाना है प्यासों को पानी।

 

खत्म हो गई यहाँ कहानी

एक था राजा एक थी रानी।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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