प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  एक भावप्रवण कविता  “रामायण मन मोहिनी“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 36 ☆

☆ राम जाने कि – रामायण मन मोहिनी ☆

रामायण है मन मोहिनी पावन कथा श्री राम की

संसार में नित्य धर्म और अधर्म के संग्राम की

 

कष्ट कितना भी हो आखिर सत्य की होती विजय

दुराचार का अंत होता पाता निश्चित ही पराजय

 

सादगी और सच्चाई में ही शक्ति होती है बड़ी

तपस्या और त्याग होते ही हैं जादू की छड़ी

 

सुलझती हैं समस्याएं न्याय सद्व्यवहार से

जो सताती दूसरों को ऐंठ औ अधिकार से

 

उदाहरण करता है प्रस्तुत आचरण श्रीराम का

दुराचारी राक्षसों का दर्प था किस काम का

 

प्रेम है वह तत्व जिससे बदल जाते दुष्ट मन

सद्भाव आत्मविश्वास से सब काम जाते सहज बन

 

सदाचार व प्यार नित कर्तव्य और संवेदना

धैर्य करुणा निपुणता देते रहें यदि प्रेरणा

 

शांति मिलती है सदा तो मन को हर प्रतिकार से

सिखाती रामायण जग को जीतना नित प्यार से

 

धर्म ही सबसे बड़ा साथी है इस संसार में

चाहिए हम रखें मन को अपने नित अधिकार में

 

मनोभावों का बड़ा होता है जीवन में असर

मन अगर वश में है तो दुर्भावनाओं का न डर

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments