श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘बचपन चोरी हो गया’। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 39 ☆

☆ बचपन चोरी हो गया

मेरा बचपन चोरी हो गया,

कहीं तूने तो नही चुराया बता ए जिंदगी ||

 

कोई लड़कपन मेरा चुरा कर ले गया,

कहीं तूने तो नहीं छुपाया बता ए जिंदगी ||

 

मेरे यार दोस्तों की टोली गुम हो गयी,

कहीं तूने उन्हें जाते तो नहीं देखा बता ए जिंदगी ||

 

माता-पिता की टंगी तस्वीर रुला देती है,

तूने उन्हें जाने से रोका क्यों नहीं बता ए जिन्दगी ||

 

एक-एक करके सब जुदा हो गए,

तूने सब को क्यों जाने दिया बता ए जिंदगी ||

 

चंद सांसे ही हैं जो मेरी बची है,

कहीं अब तेरी उस पर तो नजर नहीं बता ए जिंदगी ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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