श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। हमारा विनम्र अनुरोध है कि  प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। आज प्रस्तुत है आपका एक समसामयिक विषय पर आधारित व्यंग्य टूटी टांग और चुनाव। )  

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 87

☆ व्यंग्य – टूटी टांग और चुनाव ☆

इधर टांग क्या टूटी, सियासत गरमा गई। चुनावी चालें पलटी मार गईं। इतने दिन की मेहनत धरी रह गई। टांग ने सहानुभूति लहर पैदा कर परिवर्तन यात्राओं का बंटाधार कर दिया। चुनाव के समय एक हजार पुराने शिव मंदिर के नंदी महाराज नाराज हो गए। नाराजगी स्वाभाविक है, जय श्रीराम को जय सियाराम क्यों बोला। जय श्रीराम और जय सियाराम के नारे का झगड़ा है। चुनाव के समय नारों का बड़ा महत्व है, चुनाव के समय जितना घातक नारा लगेगा,वोटर पर उतना ज्यादा असर करेगा। राम का नाम चुनाव में बड़े काम का है, सामने वाले का काम तमाम कर ‘राम राम सत्य’ कर देता है। वैसे तो चुनाव के समय हर चीज का बड़ा महत्व है, बिकने वाले नेता तैयार बैठे रहते हैं, धजी का सांप बताने वाले खूब पैदा हो जाते हैं। पुराने देवी देवता जाग जाते हैं,परचा दाखिल करने के पहले पुराने देवी देवताओं की खूब पूछ परख होने लगती है, हनुमान जी को बड़ा माला पहनने का सुख मिल जाता है, फोटो-ओटो भी खिंच जाती है। चुनाव के समय दाढ़ी वालों की बाढ़ आ जाती है, कुछ लोग चुनाव में व्यस्तता दिखाने दाढ़ी बढ़ा लेते हैं, कुछ दाढ़ी कटा लेते हैं। चुनाव के समय पुलिस वालों के डण्डे ज्यादा तेल पीने लगते हैं, भीड़ बढ़ाने के हथकंडे अपनाए जाते हैं,बस और ट्रेन से लोगों को लोभ देकर लाया जाता है। शक्ति परीक्षण के लिए भीड़ सबसे अच्छा पेरामीटर होता है,पर बीच में अचानक ये टांग दिक्कत दे देगी, किसी ने भी सोचा न था।

चुनाव के समय सभी बड़े चैनल वाले चिल्लाने और मुंह चलाने वाली एंकरों को ज्यादा पसंद करते हैं। चुनाव के समय कुछ सेलीब्रिटी मुंह उठाए बैठे रहते हैं कि पार्टी में अचानक घुसने मिल जाएगा और मुफ्त में गृहमंत्रालय उन्हें वाई प्लस,जेड प्लस केटेगरी की सुरक्षा मुहैया करा देगा। टांग टूटने से व्हील चेयर चर्चा में आ जाती है,चेयर ढकेलने वाले और गोदी उठाने वालों के रुतबे बढ़ जाते हैं। हर नेता घायल होने के सपने देखने लगता है।आरोप-प्रत्यारोप, विरोध प्रदर्शन और टकराव के ठेके देने का काम पीक पर रहता है। समर्थकों को जगाने के लिए जानबूझकर शान्ति बनाए रखने की अपील जारी कर दी जाती है जिससे तैयारी अच्छी हो जाती है। शान्ति रखने की बयानबाजी से शान्ति और हिंसा के बीच कबड्डी मैदान बनाने का संकेत हो जाता है। माहौल में टूटी टांग की कीमत बढ़ जाती है,वोट प्रतिशत बढ़ने की खुशफहमी का प्लास्टर मीडिया की टीआरपी बढ़ाने के काम आता है, चैनलों में विज्ञापनों की बौछार लग जाती है। टूटी टांग और चुनाव की चर्चा से बाजार गुलजार हो जाता है, चर्चा में टूटी टांग और जनतंत्र का भावी रूप प्रगट होने लगता है, खबर पूरी दुनिया में फैल जाती है, आह और वाह के बीच नाज और नखरे वाले बयान आग में घी डालने का काम करने लगते हैं। अचानक काले कपड़े की बिक्री बढ़ जाती है, काले कपड़े से मुंह ढककर काले झंडे लिए सड़कें भर जातीं हैं। कुल मिलाकर चुनाव के समय सब कुछ जायज है, कोई भरोसा नहीं कौन सा नारा या शब्द चुनाव में कितना मार कर जाए , पिछले बार के चुनाव में ‘चौकीदार’ शब्द विपक्ष को दिक्कत देकर  खूब वोट बटोर लाया था, इस बार टूटी टांग का जलवा देखने लायक रहेगा क्योंकि चुनाव के समय टूटी टांग और व्हील चेयर जनता के मन में ‘ममता’ पैदा कर सकते हैं।

चुनाव के समय टांग टूटने से चुनाव लड़ने वाले का अलग व्यक्तित्व हो जाता है, लोगों का ध्यान बंट जाता है, सब टूटी टांग और प्लास्टर देखकर द्रवित हो जाते हैं, ऐसे समय टूटी टांग राष्ट्रीय महत्व की चीज हो जाती है, टूटी टांग चुनाव प्रचार में राष्ट्रीय मुद्दा बनकर उछल  पड़ती है। मीडिया चैनलों और सोशल मीडिया में टूटी टांग का कब्जा हो जाता है। टूटी टांग चुनाव के समय असली देशभक्ति जगाने में काम आती है, दर्द सहते हुए जनता के दुख दर्द की चिंता करने से चुनाव और वोटर के प्रति समर्पण दिखता है, बुद्धजीवी और शरीफ लोग इसे ‘परफेक्ट कमिटमेंट’ मानते हैं। ऐन वक्त कुछ लोग टांग टूटने को मजाक बना लेते हैं, कोई कहता है टांग नहीं टूटी, लिगामेंट टूटे हैं, कुछ लोग कहने लगते हैं कि यदि लिगामेंट टूटे हैं और दर्द भी है प्लास्टर लगा है तो बिस्तर में आराम क्यूं नहीं करते, व्हील चेयर में चुनाव प्रचार की धमकी क्यों देते हैं।

व्हील चेयर पर चुनाव प्रचार की धमकी से एक पार्टी घबरा गई है, उसने आरोप लगा दिया है कि टांग के बहाने फायदा उठाने की राजनीति की जा रही है,  राजनैतिक उथल-पुथल में टूटी टांग का अलग इतिहास रहा है, एक बार लालू की राजनीति सफाचट्ट होने के बाद लालू जी की अपनी टांग टूट गई थी, प्लास्टर लगा सिम्पेथी बटोरने की कोशिश की थी,पर शरद और नितीश ने बिल्कुल लिफ्ट नहीं दी थी तो लालू ने नयी पार्टी बना ली थी, चुनाव प्रचार में घोषणाएं होती हैं, भविष्यवाणी होती है, टांग टूटने के दो दिन पहले यदि किसी ने अपने भाषण में चोट लगने की भविष्यवाणी कर दी थी तो उनको अपनी टांग संभाल के रखनी थी, जो अपनी टांग नहीं संभाल सकता वो देश और प्रदेश की जनता की टांग की रखवाली कैसे कर सकता है। चुनाव के समय टांग पर राजनीति करना ठीक नहीं है, जनता परिवर्तन चाहती है, टूटी टांग विकास के रास्ते में बाधा उत्पन्न कर सकती है। बड़े लोगों की टांग यदि टूट भी जाती है तो अपनी टूटी टांग का प्रचार नहीं करते, परसाई जी अपनी टूटी टांग छुपा कर रखते थे, पर चुनाव के समय उनकी टूटी टांग पर पार्टी वाले राजनीति करने पर उतारू हो गए थे, चुनाव के समय उनकी टूटी टांग की बोली लगाने में नेता लोग चूके नहीं थे। चुनाव के समय एक दो पार्टी वाले उनकी टूटी टांग का जायजा लेने पहुंच जाते थे। एक पार्टी के लोगों ने प्रार्थना करते हुए उनसे कहा था कि ये एक ऐतिहासिक चुनाव है, और आपकी टूटी टांग इस चुनाव में बड़ा बदलाव ला सकती है, तानाशाही और जनतंत्र में संघर्ष है, सरकार ने नागरिक अधिकार छीन लिए हैं, वाणी की स्वतंत्रता छीन ली है, हजारों नागरिकों को बेकसूर जेल में डाल दिया गया है, न्यायपालिका के अधिकार नष्ट किए जा रहे हैं, हमारी पार्टी इस तानाशाही को ख़त्म करके जनतंत्र की पुनः स्थापना करने के लिए चुनाव लड़ रही है, इस पवित्र कार्य में आपकी टूटी टांग हमारी मदद कर सकती है, परसाई जी ने स्वार्थी, मौकापरस्त नेताओं को अपनी टांग नहीं दी, साफ मना कर दिया था। इस बार जिनकी टांग टूटी है उनकी टांग मीडिया में छा गई है, सहानुभूति की लहर दिनों दिन आंधी में तब्दील हो रही है ऐसे समय यदि उत्साह में टूटी टांग लंगड़ाते हुए मंच में चलती दिख गई तो सामने वाली पार्टी का बंटाधार होना तय है।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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subedar pandey kavi atmanand

टूटी टांग के बहाने ,आज के चुनावी राजनैतिक परिदृश्य पर आधारित करारा व्यंग ,अब तो पत्रकारों की पिटाई भी राजनैतिक मुद्दा बनता दीख रहा है । व्यंग्यकार की रचना धार्मिता को शत् शत् नमन बधाई अभिनंदन अभिवादन आदरणीय श्री। —रचनाकार सूबेदार पाण्डेय कवि आत्मानंद जमसार सिंधोरा बाजार वाराणसी पिन कोड 221208मोबाइल नं6387407266

जय प्रकाश

आभार सर जी,
आपने समय निकाल कर पढ़ा। उत्साहवर्धन किया। धन्यवाद