श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता लोग इतने क्यों बेचैन है। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 37 ☆

☆ लोग इतने क्यों बेचैन है  

खुश हो जा आज तू खामोश क्यों है,

देख तेरी शान में राह में लोगों ने फूल बिछाये हैं ||

कल तक जो लोग तेरे चेहरे से नफरत करते थे,

वे आज तुझे बार-बार कंधा देने को बेचेन हो रहे हैं ||

आज तो तेरी शान ही निराली है,

सब अदब से खड़े होकर तुझे हाथ जोड़ रहे हैं ||

बस एक पल ऑंखे खोल नजारा तो देख ले,

लोग तो तेरी एक झलक पाने को बेचैन हो रहे हैं ||

कल तक जो तेरी तरफ झांकते तक ना थे,

आज वो सब खिड़कियां खोलकर तुझे देखने को तरस रहे हैं ||

यादगार लम्हें हैं उसे देख वापिस आंख मूंद लेना,

एक ही मौका आता है जीवन में, लोगों के आंसू थम नहीं रहे हैं ||

जनाजे में कौन-कौन शामिल है,

एक झलक तो देख ले, इतने तो पराये भी कभी रूठते नहीं हैं ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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