प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  एक भावप्रवण कविता  “युद्ध और विरोध नित लाते नई बरबादियॅा।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 31 ☆

☆ युद्ध और विरोध नित लाते नई बरबादियॅा

विश्व मे सदभाव फैले हो कही न दुराचरण

व्यर्थवैर विरोध से दूषित न हो वातावरण

हर नया दिन शांति मय हो मुक्त हर जंजाल से

समस्याओं का सदा सदबुद्धि से हो निराकरण

बदलते परिवेश मे जो जहां कोई मतभेद हो

छोड मन के द्वेष सब मिल करें शुभ चिंतन मनन

मूर्खता से पसरता जाता रहा आंतकवाद

रोका जाना चाहिये निर्दोषो का असमय मरण

दुष्टता से हैं त्रसित परिवार जन शासन सभी

समझदारी है जरूरी बंद हो अटपट चलन

आदमी जब मिल के रहता सबो की होती प्रगति

हर एक मन को सुहाता है स्नेह का पावन सृजन

बैर से होती सदा हर व्यक्ति को कठिनाईया

सुख बरसता जब हुआ करता नियम का अनुसरण

मन के बढते मैल से तो बढती जाती दूरियाॅ

आदमी हर चाहता है आपसी मंगल मिलन

युद्ध और विरोध नित लाते नई बरबादियाॅ

सदाचारो का किया जाये निरंतर अनुकरण

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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