श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सब राह में खो गए। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 32 ☆

☆ सब राह में खो गए

जिंदगी गुजर गयी एक अच्छे कल की तलाश में,

एक दूसरे से सब कोसों दूर हो गए,

जीवन में सब आगे बढ़ते रहे मगर एक दूसरों को भूलते गए,

पीछे मुड़कर देखा तो पाया अपने सब ना जाने कहाँ बिछड़ गए ||

जिंदगी इतनी जल्दी बीत जाएगी अहसास ना था,

जिंदगी के उतार चढ़ाव में कितने मंजर देखे,

मुड़ कर जो देखा तो जिंदगी धुंधली नजर आई,

दादा-दादी नाना-नानी माता-पिता सब राह में कहीं खो गए ||

जीवन बहती नदियों सा बहता रहा,

पैसा शोहरत सब कुछ हासिल हुआ जिंदगी में,

मगर बहुत कुछ खो दिया इस जिंदगानी में,

जिंदगी में कुछ ना बचा बस आँखों में आंसू रह गए ||

अब कौन आंसू पोंछे, कौन मेरी तकलीफ समझे,

खुशनुमा था बचपन जहां पड़ौसी भी अपने थे,

माँ, दादी-नानी की ममता में जादु का अहसास था,

जादुई स्पर्श का अहसास करा सब ना जाने कहाँ चले गए ||

अब तो हम खुद जिंदगी की शाम में पहुंच गए,

दिल भर आया जब देखा सब अपने रिश्तेदारों में तब्दील हो गए,

खुद का शरीर भी समय देख कर बदल गया,

ढलती उम्र देख आँख-दांत गुर्दे-दिल सब साथ छोड़ते चले गए ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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