डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक सार्थक एवं विचारणीय आलेख  “खुद की आलोचना पर आत्मावलोकन”.)

☆ किसलय की कलम से # 32 ☆

☆ खुद की आलोचना पर आत्मावलोकन ☆

मानव के दुर्गुण जब समाज के सामने आते हैं तब उसकी निन्दा होना स्वाभाविक है। यदि किसी की आलोचना होती रहे तो वह निन्दित-दुर्गुणों की ओर ध्यान अवश्य देगा और उनके निराकरण के उपाय भी सोचेगा। वहीँ निन्दा से घबराए इन्सान अक्सर समाज में अपनी प्रतिष्ठा नहीं बना पाते। वैसे किसी ने सच ही कहा है कि निन्दा की सकारात्मक स्वीकृति एक बड़े साहस की परिचायक है। यदि इन्सान अपनी ही निन्दा अर्थात आत्मावलोकन करना स्वयं शुरू कर दे और उन पर अमल करे तो इसे हम “सोने पर सुहागा” वाली कहावत को चरितार्थ होना कहेंगे। मन से दुर्गुण रूपी मैल के निकल जाने से इन्सान में चोखापन आता है। स्वयं की बुराईयों को नज़र अन्दाज़ करने वाले इन्सान को कभी भी नीचा देखना पड़ सकता है, लेकिन इन्सान अपने आप में सद्विचार और परिवर्तन लाता है तब वह दूसरों को भी सुधारने या सद्मार्ग की ओर प्रेरित करने का हक़ प्राप्त कर लेता है। यही कारण है कि ऐसे इन्सान के समक्ष कोई भी दुर्गुणी ज्यादा देर तक टिक ही नहीं पाता। यह कहना भी उचित है कि कोई भी व्यक्ति सर्वगुण सम्पन्न हो ही नहीं सकता और यदि सर्वसम्पन्न है तो वह मानव नहीं देवता कहलायेगा।

हम सभी ये जानते हुए भी कि सद्कर्मी सर्वत्र प्रशंसनीय होते हैं, फिर भी हमारी प्रवृत्ति सद्कर्मोन्मुखी कम ही होती है। हम अपने गुणों का बखान करने के स्थान पर यदि आत्मावलोकन करें और बुराईयों को दूर करने का प्रयत्न करें तो निश्चित रूप से हमारे अन्दर ऐसे परिवर्तन आयेंगे जिससे हम समाज में कम से कम एक अच्छे इन्सान के रूप में तो जाने जायेंगे।

अंत में निष्कर्ष यही निकलता है कि अपनी निन्दा या आलोचना को सदैव सहज स्वीकृति देते हुए उस पर आत्मावलोकन करें, आत्म चिंतन करें और जो निष्कर्ष सामने आएँ उनका अनुकरण करें तो इन्सान कभी भी दुखी या निराश नहीं रहेगा।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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subedar pandey kavi atmanand

इस आलेख के माध्यम से यथार्थ को समझने में मदद मिलती है। अभिवादन अभिनंदन मंगलसुप्रभात बधाई आदरणीय श्री

विजय तिवारी " किसलय "

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय पाण्डेय जी।
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Hemant Bawankar

खुद की आलोचना और उस पर आत्मावलोकन । अतिसुन्दर आलेख ??

विजय तिवारी " किसलय "

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय अग्रज।
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