श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता वीराना। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 29 ☆ वीराना

अजीब सा वीराना छा गया है आज,

माना परिवर्तन सृष्टि का नियम है मगर अब सब कुछ तो बदल गया,

कल तक जो आबाद थे आज वीरान हैं,

सैनिकों से सुसज्जित, तोप-घोड़ों की पदचाप से किले कभी  आबाद थे ||

महलों की भव्यता देखते ही बनती थी,

राजा रजवाड़ों का साम्राज्य, महलों सी आबाद थी सेठों की भव्य कोठियाँ,

खुशहाली और सादगी भरी थी लोगो में,

आबाद थी चौपाले, लोग  कहीं चौपड़ तो कहीं शतरंज खेलते दिखते थे ||

सब पुराने जमाने की बातें हो गयी,

किले महल कोठियाँ गांव और शहर की चौपाले अब सब वीरान हो गए,

सब तरफ वीराना ही वीराना है,

सूने किले-महल, कोठियाँ और बंगले अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा  रहे हैं ||

आज सब कुछ बदल गया,

मगर आज भी ये किले महल सब अपनी जगह मजबूती से खड़े हैं,

समय बड़ा बलवान है,

आज ये किले महल कोठियाँ सब अपनों के इन्तजार में शांत  खड़े हैं ||

मगर समय कुछ ऐसा बदल  गया,

ना राजा रहे ना उनका राज रहा, ना नौकर रहे ना उनके चाकर,

राजा रजवाड़ों का जमाना चला गया,

जो  महल और किले उनके हिस्से आये वे होटल में तब्दील हो   गए हैं ||

जिन महलों पर राजाओं को अभिमान था,

आज वे होटलो में तब्दील होकर आज आम आदमी के लिए उपलब्ध है,

जीवन कितना परिवर्तन शील है,

कल तक जो राजा थे वे खुद आज काम कर जीने को मजबूर हो गए हैं ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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