श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना  श्रेय और प्रेय—-.)

☆  तन्मय साहित्य  #  78 ☆ श्रेय और प्रेय—- ☆ 

चलते-चलते भटके राह हम

यश-कीर्ति सम्मानों से  घिरे

बढ़ते ही जा रहे हैं, अंक

आभासी लुभाते प्रपंच।

 

श्रेय और प्रेय  के, दोनों  पथ  थे

लौकिक-अलौकिक दोनों रथ थे

सुविधाओं की चाहत

प्रेय  को  चुना  हमने

लौकिक पथ, मायावी मंच

आभासी लुभाते प्रपंच।

 

आकर्षण, तृष्णाओं  में  उलझे

अविवेकी मन, अब कैसे सुलझे

आत्ममुग्धता  में  हम

बन गए स्वघोषित ही

हुए निराला, दिनकर, पंत

आभासी लुभाते प्रपंच।

 

आँखों में मोतियाबिंद के जाले

ज्ञान  पर  अविद्या के, हैं  ताले

अंधियाति आँखों ने

समझौते  कर  लिए

मावस के, हो गए महन्त

आभासी लुभाते प्रपंच

 

हो गए प्रमादी, तन से, मन से

प्रदर्शन,अभिनय, झूठे मंचन से

तर्क औ’ वितर्कों के

स्वप्निले  पंखों  पर

उड़ने की चाह, दिग्दिगंत

आभासी लुभाते प्रपंच ।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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