श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की एक  व्यंग्य  ‘अतिथि देवो भव . इस सार्थक एवं अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिकआभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 86 ☆

☆ व्यंग्य – अतिथि देवो भव ☆

मुझे बचपन से मेहमानों की बड़ी प्रतीक्षा रहती थी कारण यह था कि जब मेहमान आते हैं  तो कुछ ना कुछ गिफ्ट, फल,  मिठाई  लेकर आते हैं और मेहमानों के जाते वक्त भी मुझे उनसे    कुछ नगद रुपये भी मिलते थे। मिडिल स्कूल में संस्कृत पढ़ने का अवसर मिला।  संस्कृत में मेहमानों को अतिथि देवो भव के रूप में वर्णित किया गया है।

सारी टूरिज्म इंडस्ट्री, होटल इंडस्ट्री, और हवाई यात्रा इंडस्ट्री मेहमान नवाजी के आधारभूत सिद्धांत पर टिकी हुई है।  बड़े-बड़े विज्ञापन देकर मेहमान बुलाए जाते हैं उनकी खूब खातिरदारी की जाती है, और उनसे भरपूर वसूली की जाती है। मजे की बात है कि इस अपनेपन से मेहमान खुशी खुशी लुट कर भी और खुश होता है। ठीक वैसे ही जैसे साधु संतों के आश्रम में या मंदिर में दान कर के भी भक्त खुश होते हैं।

बड़े राजनीतिक स्तर पर मेहमान नवाजी को डिनर पॉलिटिक्स कहा जाता है। डिनर की भव्य टेबल पर पहुंचने तक रेड कार्पेट से होकर मेहमान को गुजारा जाता है। उसके स्वागत में कसीदे पढ़े जाते हैं। डिनर के साथ संगीत और संस्कृति का प्रदर्शन होता है।मेहमान भले ही दो निवाले ही खाता है किंतु उस भोज की व्यवस्था में बड़े-बड़े अधिकारी जी जान से लगे होते हैं। क्योंकि मेहमान की खुशमिजाजी पर ही उससे मिलने वाली गिफ्ट निर्भर होती है। कई बार तो सीधे तौर पर भले ही कोई लेन-देन ना हो किंतु कितना बड़ा मेहमान किसके साथ बैठकर कितनी आत्मीयता से बातें करता है,  यही बात राष्ट्रीय सम्मान की या  व्यक्ति के सम्मान की  द्योतक बन जाती  है। मेहमान के कद से रुतबा बढ़ता है।

बारात खूब मेहमान नवाजी करती है और लौटते हुए दुल्हन साथ ले आती है। गावों में या मोहल्ले में किसके घर किसकी उठक बैठक है, इससे उस व्यक्ति की हैसियत का अंदाजा लगाया जाता है, शादी ब्याह तय करने में, खेत खलिहान की खरीदी बिक्री में यह रूतबा बडा महत्वपूर्ण होता है।शायद  इसलिए ही मेहमान को देवता तुल्य कहा गया होगा।

मेहमान भी भांति भांति के होते हैं कुछ लोग बड़े ठसियल किस्म के मेहमान होते हैं जो तू मान ना मान मैं तेरा मेहमान वाले सिद्धांत पर ही निर्वाह करते हैं। मेरे एक मित्र तो अपने परिचय का दायरा ही इसिलिये इतना बड़ा रखते हैं कि जब भी वह किसी दूसरे शहर में जाएं तो उन्हें होटल में रुकने की आवश्यकता ना पड़े। कोई न कोई मित्र उनके मोबाईल में ढूंढ़ कर वे निकाल ही लेते हैं, जो उन्हें स्टेशन से ले लेता है और मजे से दो एक दिनों की मेहमानी करवा कर स्टेशन तक वापस छोड़ भी देता है।

तो परिचय का प्रेम व्यवहार का दायरा बढ़ाते रहिये, मेहमान नवाजी कीजिये, करवाइये।

अतिथि देवो भव।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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