श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता मंजिल खो गयी) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 18 ☆ मंजिल खो गयी 

 

मंजिल खो गयी जिंदगी के ताने-बाने बुनने में,

जो बहुत हसीन दिख रही थी बचपन के खुशनुमा लम्हों में ||

 

सोचा था उलझनों को तो सुलझा लेंगे आसानी से,

पहले जिंदगी सुलझा ले जो दिख रही ज्यादा उलझनों में ||

 

मगर अफ़सोस जिंदगी भी कितनी बेवफा निकली,

उलझा कर रख दिया मुझको बुझते दियों को जलाए रखने में ||

 

अफ़सोस आसान दिखती उलझने सुलझ ना सकी,

जिसे आंसा समझ बैठा, उलझ गयी जिंदगी उसी के मकड़जाल में ||

 

ए ऊपरवाले अब तो कुछ मुझ पर रहम कर,

क्या जिंदगी हमेशा ऐसे ही उलझी रहेगी इस  मकड़जाल में ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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