श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  स्वतंत्रता दिवस पर रचित एक देशप्रेम से  ओतप्रोत गीत  वंदे मातरम…. । )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 58 ☆

☆ एक बाल कविता – वंदे मातरम…. ☆  

देश प्रेम के गाएं मंगल गान

वंदे मातरम

तन-मन से हम करें राष्ट्र सम्मान

वंदे मातरम।।

 

हम सब ही तो कर्णधार हैं

प्यारे हिंदुस्तान के

तीन रंग के गौरव ध्वज को

फहराए हम शान से,

इसकी आन बान की खातिर

चाहे जाएं प्राण

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएं मंगल गान, वंदे मातरम।

 

धर्म पंथ जाति मजहब

नहीं ऊंच-नीच का भेद करें

भाई चारा और प्रेम

सद्भावों के हम बीज धरें,

मातृभूमि दे रही हमें

धन-धान्य सुखद वरदान,

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाए मंगल गान, वंदे मातरम

 

अमर रहे जनतंत्र

शक्ति संपन्न रहे भारत अपना

सोने की चिड़िया फिर

जगतगुरु हो ये सब का सपना

देश बने सिरमौर जगत में

यह दिल में अरमान,

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएं मंगल गान, वंदे मातरम।

 

युगों युगों तक लहराए

जय विजयी विश्व तिरंगा ये

अविरल बहती रहे, पुनीत

नर्मदा, जमुना, गंगा ये,

सजग जवान, सिपाही, सैनिक

खेत और खलिहान,

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएं मंगल गान, वंदे मातरम।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments