आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपके मुहावरेदार दोहे. 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 13 ☆ 

☆ मुक्तिका☆ 

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धीरे-धीरे समय सूत को, कात रहा है बुनकर दिनकर

साँझ सुंदरी राह हेरती कब लाएगा धोती बुनकर

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मैया रजनी की कैयां में, चंदा खेले हुमस-किलककर

तारे साथी धमाचौकड़ी मच रहे हैं हुलस-पुलककर

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बहिन चाँदनी सुने कहानी, धरती दादी कहे लीन हो

पता नहीं कब भोर हो गयी?, टेरे मौसी उषा लपककर

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बहकी-महकी मंद पवन सँग, क्लो मोगरे की श्वेतभित

गौरैया की चहचह सुनकर, गुटरूँगूँ कर रहा कबूतर

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सदा सुहागन रहो असीसे, बरगद बब्बा करतल ध्वनि कर

छोड़न कल पर काम आज का, वरो सफलता जग उठ बढ़ कर

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©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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