हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #261 – कविता – ☆ लो, फिर से एक साल रीत गए… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी नव वर्ष पर एक विचारणीय कविता लो, फिर से एक साल रीत गए…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #260 ☆

☆ लो, फिर से एक साल रीत गए… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(पुनः नव वर्ष की आप सभी साथियों को मंगलकामनाओं के साथ एक काव्य रचना)

लो,फिर से एक साल रीत गए

आभासी सपनों को बहलाते

शातिर दिन चुपके से बीत गए।

*

साँसों की सरगम का

एक तार फिर टूटा

समय के चितेरे ने

हँसते-हँसते लूटा,

यादों के सतरंगी कुछ

छींटे, छींट गए। शातिर दिन……

*

कहने को आयु में

एक अंक और बढ़ा

खाते में लिखा गया

अब तक जो ब्याज चढ़ा,

कुछ सपने कुछ अपने

अंतरंग मीत गए। शातिर दिन……

*

मिलन औ विछोह

जिंदगी के दो अंग है

सुख-दुख के मिले जुले

भिन्न भिन्न रंग है,

जीत-जीते अब तो

हम जीना सीख गए, शातिर दिन……

*

मन की अभिलाषा

आगे,आगे बढ़ने की

जीवनपथ के अभिनव

पाठ और पढ़ने की,

अभिनंदन, वर्ष नया

लिखें मधुर गीत नये,

शातिर दिन बीत गए।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – हास्य-व्यंग्य ☆ नववर्ष के  मेरे संकल्प… ☆ श्री प्रभाशंकर उपाध्याय ☆

श्री प्रभाशंकर उपाध्याय

(श्री प्रभाशंकर उपाध्याय जी व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। हम श्री प्रभाशंकर उपाध्याय जी के हृदय से आभारी हैं जिन्होने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के साथ अपनी रचनाओं को साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार किया। आप कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी विशिष्ट साहित्यिक सेवाओं पर राजस्थान साहित्य अकादमी का कन्हैयालाल सहल पुरस्कार प्रदत्त।

आज प्रस्तुत है एक अप्रतिम हास्य-व्यंग्य ‘नववर्ष के  मेरे संकल्प…’।)

 ☆ हास्य व्यंग्य ☆ नववर्ष के  मेरे संकल्प… ☆ श्री प्रभाशंकर उपाध्याय ☆

नए वर्ष की पूर्व संध्या पर अपने ने भी कुछ संकल्प ठाने थे। उनमें पहला था, प्रातःकाल सैर हेतु उद्यान जाएंगे। फलतः प्रातः होते ही पत्नी ने झिंझोड़ा, ‘‘घूमने जाइए।’’

रजाई में मूंसोड हुई स्थिति में स्थित रहते हुए पूछा, ‘‘धूप निकली?’’

‘‘अभी कहां? अगर निकली तो बारह बजे के बाद ही निकलेगी।’’

‘‘तो जिस दिन जल्दी निकलेगी, उस दिन जाएंगे।’’ मैं, अपना रजाई तप भंग नहीं करना चाह रहा था कि श्रीमतीजी ने रजाई खींच कर एक ओर डाल दी, ‘‘मैं चाय बना लायी हूं। नहीं पीनी हो तो बाद में खुद बना लेना।’’ अपन को अब, अहसास हुआ कि कल रात बेगम को अपना संकल्प बता कर कितनी बड़ी भूल कर बैठे थे? लिहाजा, हमने धूजणी से कंपकंपाते एक हाथ से कप थामा और दूसरे हाथ से रजाई को सीने से लगाया। तीन चार घूंट सुड़कने के बाद थोड़ी गर्मी प्रतीत हुई तो दूसरे हाथ में मोबाइल थाम लिया।

बेगम साहिबा सामने बैठ कर चाय की चुस्कियां ले रही थी। हाथ में मोबाइल सेट देख कर ताना मारा, ‘‘क्योंजी, कल तो प्रतिज्ञा ली थी कि सुबह से दो घंटे तक मोबाइल को छुएंगे भी नहीं।’’

‘‘घूमने जाता तो साथ थोड़े ही ले जाता?’’ मैं कुतर्क को उतर आया था। फिर तनिक संभल कर बोला, ‘‘सिटी एप पर लोकल न्यूज देख लेता हूं।’’

पहला समाचार पढते ही बेसाख्ता निकला, ’’शाबाश! बहादुरों।’’

‘‘क्या फिर कोई सर्जिकल स्ट्राइक हो गया है?’’ अर्द्धांगिनी ने जिज्ञासा जतायी।

‘‘नहीं। चोरों ने शहर में चार जगह चोरियां की और एक जगह ए.टी.एम. तोडा है। पुलिस के अनुसार रात के तीन से पांच बजे के दरम्यान ये सब हुआ।’’

‘‘अरे…इसमें बहादुरी की क्या बात हुई, भला?’’ बेटरहॉफ, बेटर खुलासा चाह रही थी। मैं बोला, ‘‘मैडम! चुहाते कोहरे की धुंधयायी रात में, जब शीत लहर तीखे नश्तर की माफिक बदन को भेदे जा रही हो, उस समय ठंड से अकड़ी अंगुलियों से सर्द पाइप को पकड़ कर मंजिल-दर-मंजिल चढना। बे आवाज रोशनदान या खिड़की काटना। दरवाजों के ताले तोड़ना अथवा सेंध लगाना। दुकानों की शटर या एटीएम को काटना-मोड़ना-तोड़ना। किसी की नींद में खलल नहीं डालते हुए पहरेदारों, पुलिस और कुत्तों से बचते हुए, मंद प्रकाश में कीमती सामान बटोर कर उसी मार्ग से हवा हो जाना, कोई कम बूते की बात है? और इनका नए साल का संकल्प तो देखो कि पिछले साल चोरी का औसत तीन चोरियां प्रतिदिन रहा लेकिन नए वर्ष का आगाज होते ही दो पायदान चढ गए हैं, पठ्ठे!’’

इसके बात दूसरी न्यूज बलात्कार की थी। उसे पढकर मैंने टिप्पणी की, ‘‘वाह! यह हुई, मर्दानगी।’’

‘‘अब, किसने मर्दानगी दिखा दी?’’

‘‘डीयर! कल रात एक बलात्कार भी हो गया, शहर में।’’

‘‘कैसे आदमी हो ऐसी खबरों पर आनंदित हो रहे हो?’’

‘‘हौंसले की बात है, मैडम! हमसे दूसरी रजाई में नहीं घुसा जाता और ये घोर शीत में दूसरे के घरों में जा घुसते हैं।’’ धत्त…बोलकर बीवी ने चाय का ट्रे उठाते हुए कहा, ‘‘ये निगेटिव समाचार पढना छोड़ो। रजाई भी छोड़ो और फिर से घुसे तो खैर नहीं।’’

खैर, अपन शौचालय को चले। कब्ज तथा बबासीर से सदा की भांति पीड़ा दी। जब हम ही नहीं बदले तो शरीर ने भांग थोड़े ही खायी है, जो बदल ले। खुद को बदलने का ख्याल छोड़ बाहर आए कि देखें नए साल में जग में कुछ बदला? सूर्यदेव पिछले वर्ष की भांति कोहरे में लिपटे हुए आराम फरमा रहे थे। पवन देव विगत वर्ष की तरह सन्ना रहे थे। पांचवे मकान में सास-बहू की रार का शाश्वत संवाद चल रहा था और उसका पूरे मोहल्ले में ब्रॉड-कॉस्ट हो रहा था। कचरा संग्रह करने वाली पिक-अप तीन दिन की तरह आज भी नदारद थी। दाएं पड़ोसी ने अपना कचरा प्रेमपूर्वक मेरे द्वार के आगे सरका दिया था लेकिन मैं उसे आगे नहीं ठेल सकता था क्योंकि बाएं वाले ने सदा की तरह अपनी कार को इस कदर स्नान कराया कि मेरे घर के आगे एक लघु तालाब बन गया था।  विडंबना ये कि एक बदहाल वर्ष गुजार कर हम पुन: नई आशा और सपनों के साथ नए में प्रवेश करने जा रहे हैं। इस आशंका के साथ कि हंसने, रोने या गाने पर जी. एस. टी. तो न लगा दिया जाएगा। कसम से जब जब जी. एस. टी. काउंसिल की बैठक होती है दिल बैठने लगता है। पहले डाक सेवाओं पर टैक्स लगा फिर बुक पोस्ट सेवाएं हटा दी गई। नए साल में पत्रिकाएं/किताबें पढ़ने पर टैक्स न लग जाए ?

कहीं कुछ नहीं बदला, बस कलैंडर बदला है। जब हम ही नहीं बदले तो जमाने से उम्मीद बेमानी है, यह सोचकर अपन पुन: रजाई शरणम् गच्छामि हो गए।

© प्रभाशंकर उपाध्याय

सम्पर्क : 193, महाराणा प्रताप कॉलोनी, सवाईमाधोपुर (राज.) पिन- 322001

मो. 9414045857, 8178295268

 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नव वर्ष विशेष – भोर भई ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – नव वर्ष विशेष – भोर भई ? ?

मैं फुटपाथ पर चल रहा हूँ। बाईं ओर फुटपाथ के साथ-साथ महाविद्यालय की दीवार चल रही है तो दाहिनी ओर सड़क सरपट दौड़ रही है।  महाविद्यालय की सीमा में लम्बे-बड़े वृक्ष हैं। कुछ वृक्षों का एक हिस्सा दीवार फांदकर फुटपाथ के ऊपर भी आ रहा है। परहित का विचार करनेवाले यों भी सीमाओं में बंधकर कब अपना काम करते हैं!

अपने विचारों में खोया चला जा रहा हूँ। अकस्मात देखता हूँ कि आँख से लगभग दस फीट आगे, सिर पर छाया करते किसी वृक्ष का एक पत्ता झर रहा है। सड़क पर धूप है जबकि फुटपाथ पर छाया। झरता हुआ पत्ता किसी दक्ष नृत्यांगना के पदलालित्य-सा थिरकता हुआ  नीचे आ रहा है। आश्चर्य! वह अकेला नहीं है। उसकी छाया भी उसके साथ निरंतर नृत्य करती उतर रही है। एक लय, एक  ताल, एक यति के साथ दो की गति। जीवन में पहली बार प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों सामने हैं। गंतव्य तो निश्चित है पर पल-पल बदलता मार्ग अनिश्चितता उत्पन्न रहा है। संत कबीर ने लिखा है, ‘जैसे पात गिरे तरुवर के, मिलना बहुत दुहेला। न जानूँ किधर गिरेगा,लग्या पवन का रेला।’

इहलोक के रेले में आत्मा और देह का सम्बंध भी प्रत्यक्ष और परोक्ष जैसा ही है। विज्ञान कहता है, जो दिख रहा है, वही घट रहा है। ज्ञान कहता है, दृष्टि सम्यक हो तो जो घटता है, वही दिखता है। देखता हूँ कि पत्ते से पहले उसकी छाया ओझल हो गई है। पत्ता अब धूल में पड़ा, धूल हो रहा है।

अगले 365 दिन यदि इहलोक में निवास बना रहा एवं देह और आत्मा के परस्पर संबंध पर मंथन हो सका तो ग्रेगोरियन कैलेंडर का आज से आरम्भ हुआ यह वर्ष शायद कुछ उपयोगी सिद्ध हो सके।

? 2025  सार्थक और शुभ हो। ?

 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जावेगी। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ ‘नव वर्ष मंगलमय हो  – एक निमंत्रण’ ☆ डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘ ☆

डॉ. दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘

☆ ‘नव वर्ष मंगलमय हो  – एक निमंत्रण’ ☆ डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘ ☆

नए वर्ष का नया निमंत्रण, भेज दिया है सबके नाम

मंगलमय हो जीवन सबका, शुभ मंगल का शुभ पैग़ाम।।

 *

जीवन कंटक भरा सफ़र है, ख़ुशियाँ ढूँढ के लाना है

जीवन में संघर्ष बहुत हैंहँसी-ख़ुशी जीतें संग्राम।

एक निमंत्रण भेज दिया है, मैंने पूरे विश्व के नाम

सुख और शांति रहे जीवन में, अब न रचें कोई संग्राम।।

 *

एक निमंत्रण भेज दिया है, मैंने मेरे देश के नाम

भारत मेरा भेज रहा हैशांति-प्रेम का शुभ पैग़ाम

एक निमंत्रण भेज दिया है, सरहद के सैनिक के नाम

देश साथ है सदा तुम्हारे, तुमसे ही है देश का नाम।।

एक निमंत्रण भेज दिया है, हर घर की गृहिणी के नाम

परम्पराएँ जीवित रखना हर मन में, नारी का काम।

 *

एक निमंत्रण भेज दिया है, हर घर की बेटी के नाम

दोनों कुल को जोड़ के रखना, नमन तुम्हें है तुम्हें प्रणाम।।

 *

एक निमंत्रण भेज दिया है, हर घर के पौरुष के नाम

स्नेह-सुरक्षा,संबल देना, सबसे अहम् तुम्हारा काम

 *

एक निमंत्रण भेज दिया है, नभ के सूरज-चाँद के नाम

ऊर्जा भर ऊर्जस्वित करना, शक्ति शांति सुख सुबहो-शाम ।।

एक निमंत्रण भेज दिया है, धरती की प्रकृति के नाम

धन और धान्य से पूरित करना, जीवन देना तुम्हरा काम।।

 *

एक निमंत्रण भेज दिया है, सारे हर रिश्तों के नाम

सभी निभाएँ’उदार’मन सेरिश्ते सारे नाम-अनाम।।

© डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘

कैलीफ़ॉर्नियां, अमेरिका

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ यह नवल वर्ष… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ यह नवल वर्ष… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

यह नवल वर्ष

मन में भर दे

उत्साह और हर्ष

घटे निराशाओं का तम

हों  कामयाब  हम

 

स्वार्थ का दैत्य

कभी   छल   न   सके

अब  मंथरा

कोई चाल चल न सके

 

आशाओं के कँवल खिल जायें

निर्धारित    लक्ष्य   मिल   जायें

 

हर  स्वप्न  संपूर्ण  हो

कामना  परिपूर्ण  हो

 

सुदृढ़  और   विश्वास   हो

सार्थक   हर   प्रयास  हो

 

उदय ज्ञान का आदित्य हो

प्रफुल्लित निरन्तर साहित्य हो

 

हर   चेहरे   पर  बहार  हो

यह नूतन वर्ष यादगार हो

 

फ़लक से बरसे

प्रेम का मेह

 हृदय से उमड़े

स्नेह ही स्नेह…।

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – jaspreetkaurfalak@gmail.com

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 89 ☆ ये आ गया है नया साल… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “ये आ गया है नया साल“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 89 ☆

✍ ये आ गया है नया साल… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

ख़ुशी की जलती कहीं पे मशाल अब भी है

हमारे  घर में खुशी का अकाल अब भी है।

 *

बदल गया है कलेंडर महज दीवारों पर

जो हाल पहले था वैसा ही हाल अब भी है

 *

ये आ गया है नया साल बस मिथक हमको

हमारी रोज़ी का वो ही सवाल अब भी है

 *

ये चौचले है रहीसों के जश्न मनते सब

श्रमिक के हाथ में देखो कुदाल अब भी है

 *

ये रोशनी से नहाए भवन है बेमानी

गरीब घर में जो मकड़ी का जाल अब भी है

 *

ये नाम अम्न के बारूद जो जमा रख्खा

विनाश करने उसका इस्तेमाल अब भी है

 *

किसी के गाल से चिकनी सड़क के दावे भर

सड़क पे चैन से चलना मुहाल अब भी है

 *

सबक न वक़्त से कुछ सीख ले के सीख सके

अरुण ये धर्म पे होता वबाल अब भी है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – कहाँ है जयप्रकाश ? ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆

डॉ सत्येंद्र सिंह

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – कहाँ हैं जय प्रकाश? ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह 

कहाँ  गए वे लोग नहीं,  कहाँ जाते हैं ये लोग कहना पड़ेगा। अभी नवंबर 2024  में ही फेसबुक पर जयप्रकाश भाई ने पूज्य ज्ञान रंजन जी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ दीं थीं।  जय प्रकाश जी की फेसबुक पर हर पोस्ट देखता था । उनके द्वारा दी गई शुभकामनाएँ  देखकर मैंने ज्ञानरंजन जी फोन किया और  उनको अपनी ओर से शुभकामनाएँ दीं ।  ज्ञानरंजन जी ने कहा कि मेरा जन्मदिन 21 नवंबर था भाई  तो मैंने उनसे कहा कि मुझे जय प्रकाश पांडे की फेसबुक पोस्ट से आपके जन्मदिन के बारे में पता चला। जय प्रकाश पाण्डेय का नाम सुनते ही ज्ञान सर ने तुरंत कहा,सत्येंद्र,  अजय प्रकाश बहुत बीमार हैं। अभी इलाज कराकर नागपुर से लौटकर   आए हैं, अभी काफी ठीक हैं,  उनसे बात कर लो  उन्हें बहुत अच्छा लगेगा। नंबर मेरे पास था ही, मैंने तुरंत बात की। मैं 1985 से 1990 तक जबलपुर में रहा। ज्ञानरंजन जी के आवास पर होने वाली गोष्ठियों में जय प्रकाश जी से मुलाकात होती। उनके साथ परसाई जी के यहां जाना भी हुआ। मेरे साथ अरुण श्रीवास्तव हमेशा रहते, रहते क्या वे ही मुझे लेकर जाते। लीलाधर मंडलोई जी और सुरेश पांडेय जी की उपस्थिति विशेष रूप से रहती।  मयंक जी, कुंदन सिंह परिहार जी, राजेन्द्र दानी जी, द्वारका प्रसाद गुप्त गुप्तेश्वर, बाजपेई जी, अरुण पांडेय, विवेचना के हिमांशु जी और जिन जिन की याद आई, सबके बारे में खूब बात हुईं।

 जय प्रकाश जी से आत्मीयता का एक कारण मुरलीधर नागराज भी रहे क्योंकि मुरलीधर नागराज जी से मित्रता मुंबई में ही हो गई थी जब तापसी जी ने सुर संगम का पुरस्कार जीता था। उस समय राजेश जौहरी हमारे बीच की कड़ी थे ।   मुंबई से जबलपुर ट्रांसफर पर आने पर मैं प्रसिद्ध सीबीआई ऑफिसर आई.एन. आर्य जी के साथ उनके जिस रेलवे क्वार्टर में रहता था उसके पास ही स्टेट बैंक की शाखा थी, जिसमें मुरलीधर नागराज थे। जय प्रकाश जी मुरलीधर जी के साथी और मित्र थे ही। इस प्रकार जयप्रकाश जी से दोहरी आत्मीयता थी। सन्  1990 में कोल्हापुर आने के बाद जबलपुर जाना नहीं हुआ परंतु फेसबुक पर जयप्रकाश जी से जुड़ा  रहा।  जब   बीमारी की बात सुनकर मैंने उनसे बात की उन्होंने अपना  पूरा हाल बताया की कब कब,  क्या-क्या हुआ।  नागपुर कब गए । कितने दिन दिन इलाज चला और एक  ऑपरेशन होने वाला है। सब ऐसे बता रहे थे जैसे किसी और के बारे में बता रहे हों। पूरी उम्मीद थी उन्हें होने वाला ऑपरेशन भी सफल रहेगा । इन्हीं उम्मीद के साथ हमारी बातचीत खत्म होने वाली थी कि उन्होंने अचानक कहा कि हम लोग एक डिजिटल पत्रिका ई-अभिव्यक्ति निकलते हैं और स्टेच बैंक ऑफ इंडिया के कंप्यूटर विशेषज्ञ हेमंत बावनकर जी उसका पूरा काम देखते हैं। उसमें आप लिखा कीजिए और उन्होंने मुझसे अपना संक्षिप्त परिचय, फोटो और रचना व्हाट्सएप पर ही भेजने के लिए कहा और मैंने भेज दी। उन्होंने तुरंत  उन्होंने ब्यौरा मेरा हेमंत जी को भेज दिया और 27 नवंबर 2024 को मैं हेमंत जी ने मुझे ई-अभिव्यक्ति से जोड़ लिया । चार पांच अंकों में ही मेरी रचना प्रकाशित हुई हैं।  एक हफ्ते से मैं फेसबुक व्हाट्सएप कुछ नहीं देख पाया, पता नहीं क्यों,  लेकिन आज हेमंत जी का मैसेज और ई-अभिव्यक्ति पर जब देखा तो   का पूरा अंक जयप्रकाश पांडे जी को समर्पित करते हुए प्रकाशित किया है । तब मुझे पता चला जयप्रकाश भाई नहीं रहे । पता अंदर से बहुत कुछ टूट सा गया। ई-अभिव्यक्ति पर जय प्रकाश जी पर सभी मित्रों की संवेदनाएँ पढीं। फेसबुक देखा तो सैकड़ों मित्रों ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं।  कैसे कोई बात करते-करते,  हंसता -खेलता आदमी चला जाता है,  कहाँ गए  वे लोग स्तंभ उन्होंने शुरू किया और खुद कहाँ चल दिए?  सब कुछ पढकर दिल बहुत दुखी हुआ । जय प्रकाश जी जैसे लोग बिरले ही होते हैं । वे कभी अपनी व्यक्तिगत समस्या से घबराने वाली व्यक्ति नहीं थे आश्चर्य है कहाँ गए वे लोग कहने वाले प्रश्न छोड़ कर चले गए कि कहाँ  जाते हैं लोग ? 

मेरी विनम्र श्रद्धांजलि स्वीकार करें जय प्रकाश।

© डॉ सत्येंद्र सिंह

सम्पर्क : पुणे महाराष्ट्र 

मोबाइल : 99229 93647

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 85 ☆ बन गया गुलाम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बन गया ग़ुलाम…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 85 ☆ बन गया ग़ुलाम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

हल्कू को आज नहीं

मिला कहीं काम।

**

मनरेगा की

पूरी हुई हाजिरी

पटवारी ने दी

ताकीद आख़िरी

*

रोजनामचे से भी

काट दिया नाम।

**

बिटिया का गौना

लो फिर गया है टल

खूँटी पर टाँग दिया

आस का महल

*

महंगाई में रुपया

हो गया छिदाम ।

**

ऊपर से नीचे तक

बन साहूकार

ग़रीबों की रोटी

सब हिस्सेदार

*

भूख के लिए रमना

बन गया ग़ुलाम ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 564 ⇒ विचारों की गति ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “विचारों की गति।)

?अभी अभी # 564 ⇒ विचारों की गति ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि, जिसने भी कहा हो, सोच समझकर ही कहा होगा। सभी जानते हैं, रॉकेट की तरह कवि भी हवा में ही उड़ते हैं। वैज्ञानिकों ने प्रकाश और ध्वनि की गति को तो आसानी से जान लिया है, किसी ने शायद विचारों की गति को भी नाप लिया हो।

इस ब्रह्माण्ड की खगोलीय गणना इतनी आसान नहीं। प्रकाश और ध्वनि को इंच टैप से नापने से तो रहे। सूर्य के प्रकाश को हम तक पहुंचने में अगर 8.40 आठ मिनिट और चालीस सेकंड लगते हैं तो चंद्रमा का प्रकाश हमारी पृथ्वी तक मात्र 1.30 सेकंड में ही पहुंच जाता है।।

विचारों का क्या है ! सितारों के आगे जहान और भी है। आओ हुजूर तुमको सितारों में ले चलूं !

कितने प्रकाश वर्ष लगेंगे, किस उड़न खटोले अथवा पुष्पक विमान में बैठकर जाओगे, कुछ पता नहीं। अगर ऐसे विचार ही हमारे मन में नहीं आते, तो क्या हम इस तरह हवा में बातें कर रहे होते।

एक सुर होता है, जिसकी साधना परमेश्वर की साधना होती है। उसके बारे में एक सुर साधक भी सिर्फ यही कह पाया है ;

सुर की गति मैं क्या जानूं।

एक भजन करना जानूं।।

सुर में शब्द है, ध्वनि है। प्रकाश में अगर किरणें हैं तो ध्वनि में तरंगें हैं। जब रसोईघर में कोई बर्तन अचानक फर्श पर गिर जाता है, तो उसकी आवाज इतनी आसानी से शांत नहीं होती। क्या ध्वनि की तरंगों के साथ आवाज (साउंड) भी शांत हो जाती है। सुर की तरह ही मंत्र की भी साधना है।

शब्द अक्षरों का समूह है।

अक्षर को परम ब्रह्म माना गया है। जिसका कभी क्षरण अर्थात् क्षय ना हो वही तो अक्षर है। शब्द भी कहां मरता है। मंदिर में जब एक घण्टा बजता है तो उसकी ध्वनि को शांत होने में समय लगता है।।

किसी गीत की जब धुन बनाई जाती है, जब एकांत में बैठकर कोई गीत अथवा रचना का सृजन होता है, तब सबसे पहले हमारा मन एकाग्र होता है। मन का एकाग्र होना ही धारणा है, जो ध्यान का पहला चरण है। हमें कभी लगता है, कुछ हमारे अंदर से आ रहा है और कुछ कुछ ऊपर से भी उतर रहा है। यह उतरना ही वास्तविक सृजन है, ध्यान धारणा और समाधि है।

मतलब हमने यूं ही हवा में ही नहीं कहा था, सितारों के आगे जहान और भी है। मत मानिये आप शनि की साढ़े साती को, राहु और केतु के दुष्प्रभाव को, अपने विचारों के दुष्प्रभाव को तो मानिये। हमारी बुद्धि भ्रष्ट क्यों होती है। क्यों कभी कभी हमारी अक्ल घास चरने जाती है। और क्यों कभी हमारा मन किसी अच्छी फिल्मी धुन पर नाच उठता है।।

एक और हमारे विचारों की गति है और दूसरी ओर मन की गति। मन संकल्प विकल्प करता रहता है।

मन में भेद बुद्धि होती है। अगर भेद बुद्धि ना हो तो हम अच्छे बुरे, लाभ हानि और अपने पराए में भेद ही नहीं कर पाएं। हमारी ज्ञानेंद्रियां ही तो यह तय करती हैं, हम क्या देखें, क्या सुनें, क्या बोलें और क्या खाएं।

एक हमारी मति भी होती है, जिसे आप बुद्धि भी कह सकते हैं। जब बुद्धि भ्रष्ट होती है तो रावण की भी मति मारी जाती है। हमारी मति ही हमारे विचारों को सही दिशा देती है। अगर विचारों को सही दिशा और गति मिल जाए तो वे आसमान छू लें।।

हमारे विचारों को सही दिशा और गति देने के लिए ही तो अन्य लोकों की रचना हुई है। गंधर्व लोक के कारण सुर, स्वर और संगीत कायम है, जिन्हें स्वर्ग नहीं जाना उनके लिए वैकुंठ लोक भी है। गोलोक और पितृलोक का भी ऑप्शन है। विचारों का मामला है। खिचड़ी अपनी ही है जितना चाहें घी डाल लें। बस इतना जरूर जान लें, समय और विचारों का सदुपयोग कर लें, क्योंकि ये जिन्दगी ना मिलेगी दोबारा ;

चलो दिलदार चलो

चांद के पार चलो

हम हैं तैयार चलो।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा # 54 – थोड़े में गुजारा…  ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – थोड़े में गुजारा ।)

☆ लघुकथा # 54 – थोड़े में गुजारा  श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

मीरा अचानक सुबह-सुबह अपना सामान पैक करके एक बस में बैठकर घर छोड़कर जा रही है जिसे वह चाहती थी उसी के घर शादी करने के लिए जा रही थी। उसके मन में  डर था, यदि अरुण ने मुझे नहीं अपनाया तो क्या होगा?

वह गहरी चिंता में खो जाती है।

मेरे जीवन का कोई ओर-छोर नहीं है यदि उसने नहीं अपनाया तो क्या होगा?, 

गंतव्य आया और वह बस से नीचे उतरी। अरुण को फोन किया।

अरुण में तुमसे शादी करना चाहती हूं और तुम्हारे घर आ रही हूं ।

जवाब आया – ठीक है आ जाओ?

थोड़ी देर बाद जब घर पहुंची तो अरुण की मां कमला ने दरवाजा खोला।

मां ने कहा–“मेरे पास दो कमरे हैं। एक में तुम रह जाना।

तुम्हें, खाना बनाना पड़ेगा और तुम जो नौकरी या काम चाहती हो वह कर सकती हो। पता नहीं, मेरे बेटे ने तुम्हें  क्या सपना दिखाये है। शायद उसने कहा होगा कि हम बहुत बड़े आदमी हैं। पर बेटा मैं तुम्हें झूठ और दिखावे में नहीं रखना चाहती। जीवन की हकीकत यही है। यदि तुम इसमें नहीं पिसना चाहती तो हमें छोड़कर जा सकती हो।  तुम्हें मंजूर हो तो तुम मेरे बेटे से शादी कर सकती हो। 

रात के बाद, भोर का तारा टिमटिमाते हुए दिखने लगा ।

मीरा की आंँख से प्रेम भरे अश्रु झरने लगे।

तभी उसकी सासू मां कमला ने कहा कि थोड़े में ही गुजारा करना पड़ेगा इसलिए सोच समझकर निर्णय लो। मुझे तो थोड़े में गुजारा करने की आदत है पर तुम बड़े घर की लड़की हो।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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