हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 256 ☆ आलेख – अयोध्या… त्रेता से भविष्य तक… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक ज्ञानवर्धक आलेख – अयोध्या… त्रेता से भविष्य तक…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 256 ☆

? आलेख – अयोध्या… त्रेता से भविष्य तक… ?

भारतीय मनीषा में मान्यता है कि देवों के देव महादेव अनादि हैं। उन्हीं भगवान् सदाशिव को वेद, पुराण और उपनिषद् ईश्वर तथा सर्वलोकमहेश्वर कहते हैं। भगवान् शिव के मन में सृष्टि रचने की इच्छा हुई। उन्होंने सोचा कि मैं एक से अनेक हो जाऊँ। यह विचार आते ही सबसे पहले शिव ने अपनी परा शक्ति अम्बिका को प्रकट किया तथा उनसे कहा कि हमें सृष्टि के लिये किसी दूसरे पुरुष का सृजन करना चाहिये, जिसे सृष्टि संचालन का भार सौंपा जा सके। ऐसा निश्चय करके शक्ति अम्बिका और परमेश्वर शिव ने अपने वाम अंग के दसवें भाग पर अमृत स्पर्श कर एक दिव्य पुरुष का प्रादुर्भाव किया।

पीताम्बर से शोभित चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित उस दिव्य शक्ति पुरुष ने भगवान् शिव को प्रणाम किया। भगवान् शिव ने उनसे कहा- ‘ हे वत्स ! व्यापक होने के कारण तुम्हारा नाम विष्णु होगा। सृष्टि का पालन करना तुम्हारा कार्य होगा। भगवान् शिव की इच्छानुसार श्री विष्णु कठोर तप में निमग्न हो गये। उस तपस्या के श्रम से उनके अंगो से जल धाराएँ निकलने लगीं, जिससे सूना आकाश भर गया। अंततः उन्होंने उसी जल में शयन किया। जल अर्थात् ‘नार’ में शयन करने के कारण ही श्री विष्णु का एक नाम ‘नारायण’ हुआ। तदनन्तर नारायण की नाभि से एक उत्तम कमल प्रकट हुआ। भगवान् शिव ने अपने दाहिने अंग से चतुर्मुख ब्रह्मा को प्रकट करके उस कमल पर उन्हें स्थापित कर दिया। महेश्वर की माया से मोहित ब्रह्मा जी कमल नाल में भ्रमण करते रहे, पर उन्हें अपने उत्पत्तिकर्ता का पता नहीं लग रहा था। आकाशवाणी द्वारा तप का आदेश मिलने पर ब्रह्माजी ने बारह वर्षों तक कठोर तपस्या की। आदि शिव ने प्रकट हो भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी से कहा -‘ हे सुर श्रेष्ठ ! आप पर जगत् की सृष्टि का भार रहेगा तथा हे प्रभु विष्णु ! आप इस चराचर जगत् के पालन व्यवस्था हेतु सारे विधान करें। इस प्रकार भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार की भूमिका के निर्वाह में कर्ताधर्ता हैं। भागवत के अनुसार भगवान विष्णु को जग की व्यवस्था बनाये रखने के लिये दशावतार की पौराणिक मान्यता है। भगवान विष्णु अपने सातवें अवतार में त्रेता युग में स्वयं मर्यादा पुरोषत्तम श्री राम के रूप में इस धरती पर मनुष्य रूप में आये। इसके उपरांत द्वापर में श्री कृष्ण के और फिर बुद्ध के रूप में भगवान का अवतरण हो चुका है। ग्रंथों के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु अपने दसवें अवतार में कल्कि रूप में अवतार लेंगे। कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग का पुनः संधिकाल होगा। कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे। सृष्टि का यह अनंत क्रम निरंतर क्रमबद्ध चलते रहने की अवधारणा भारतीय मनीषा में की गई है।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अवतारी परमेश्वर थे पर उन्होंने सामान्य बच्चे की तरह माता के गर्भ से जन्म लिया। श्रीराम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को माना जाता है।

महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण के बाल काण्ड में श्री राम के जन्म का उल्लेख इस तरह किया गया है। जन्म सर्ग 18 वें श्लोक 18-8-10 में महर्षि वाल्मीक जी ने उल्लेख किया है कि श्री राम जी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजीत महूर्त में हुआ। आधुनिक वैज्ञानिक युग में कंप्यूटर द्वारा गणना करने पर यह तिथि 21 फरवरी, 5115 ईस्वी पूर्व निकलती है।

गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस के बाल काण्ड के 190 वें दोहे के बाद पहली चौपाई में तुलसीदास ने भी इसी तिथि और ग्रह नक्षत्रों का वर्णन किया है। वाल्मीकि रामायण की पुष्टि दिल्ली स्थित संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदा ने भी की है। वेदा ने खगौलीय स्थितियों की गणना के आधार पर ये थ्योरी बनाई है। महर्षि वाल्मीकि के अनुसार जिस समय राम का जन्म हुआ उस समय पांच ग्रह अपनी उच्चतम स्थिति में थे। यूनीक एग्जीबिशन ऑन कल्चरल कॉन्टिन्यूटी फ्रॉम ऋग्वेद टू रोबॉटिक्स नाम की एग्जीबिशन में प्रस्तुत रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार भगवान राम का जन्म 10 जनवरी, 5114 ईसा पूर्व सुबह बारह बजकर पांच मिनट पर हुआ (12:05 ए.एम.) पर हुआ था। यह तिथि इतनी अर्वाचीन है कि उसकी गणना में छोटी सी भी मानवीय त्रुटि बड़ा परिवर्तन कर सकती है अतः इस सबके ज्ञान मार्गी तर्क से परे भगवान राम के जन्म के रसमय भक्ति मार्गी आनन्द का अवगाहन ही सर्वथा उपयुक्त है।

संस्कृत के अमर ग्रंथ महाकवि कालिदास ने रघुवंश की कथा को १९ सर्गों में बाँटा है जिनमें अयोध्या के सूर्यवंश के राजा दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम, लव, कुश, अतिथि तथा बाद के 29 रघुवंशी राजाओं की कथा कही गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ को चौथेपन तक संतान प्राप्ति नहीं हुई, “एक बार दशरथ मन माही, भई गलानि मोरे सुत नाही”। ईश्वरीय शक्तियों के मानवीकरण का इससे सहज उदाहरण और क्या हो सकता है ? राजा दशरथ और माता कौशल्या पुत्र कामना से अयोध्या के राजभवन में यज्ञ करते हैं। फिर राजा दशरथ को माता कौसल्या, सुमित्रा और कैकेयी रानियों से राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न पुत्रों का जन्म होता है। अयोध्या में खुशहाली छा जाती है।

भगवान राम सारी बाल लीलायें करते हैं ” ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां ” …। गुरु गृह गये पढ़न रघुराई, अल्प काल विद्या सब पाई ! … फिर दुष्टों के संहार के जिस मूल प्रयोजन से भगवान ने अवतार लिया था, उसके लिये भगवान श्री राम अनुकूल स्थितियां रचते जाते हैं पर मानवीय स्वरूप और क्षमताओ में स्वयं को बांधकर ही मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर दुष्ट राक्षसों का अंत कर समाज में आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पुरुष, आदर्श राजा के चरित्रों की स्थापना करते हैं। राम कथा से भारत ही नहीं दुनियां भर सुपरिचित है। विभिन्न देशों, अनेको भाषाओ में राम लीलाओ में निरंतर रामकथा कही, सुनी जाती है और जन मानस आनंद के भाव सागर में डूबता उतराता, राम सिया हनुमान की भक्ति से अपनी कठिनाईयों से मुक्ति के मार्ग बनाता जीवन दृष्टि पा रहा है।

स्वाभाविक है कि अयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्म स्थल पर एक भव्य मंदिर सदियों से विद्यमान था। जब मुगल आक्रांताओ ने भारत में आधिपत्य के लिये आक्रमण किये तब सांसकृतिक हमले के लिये १५२८ में राम जन्म भूमि के मंदिर को तोड़कर वहां पर मस्जिद बनाई गई। हिन्दुओ को अस्तित्व के लिये बड़े संघर्ष का सामना करना पड़ा। ऐसे दुष्कर समय में साहित्य ही सहारा बना और भक्ति कालीन कवियों ने हिंदुत्व को पीढ़ीयों में जीवंत बनाये रखा। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास कृत अवधी भाषा में लिखि गई राम चरित मानस हिन्दुओ की प्राण वायु बनी। गिरमिटिया मजदूर के रुप में विदेशों में ले जाये गये हिन्दूओ के साथ उनके मन भाव में मानस और राम कथा अनेक देशों तक जा पहुंची और रामकथा का वैश्विक विस्तार होता चला गया।

१८५३ में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस राम जन्म भूमि को लेकर संघर्ष हुआ। १८५९ में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा। देश की अंग्रेजों से आजादी के बाद १९४९ में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया। सन् १९८६ में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।

सन् १९८९ में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की। ६ दिसम्बर १९९२ को अयोध्या में कथित अतिक्रमित बाबरी मस्जिद ढ़हा दी गई। आस्था के सतत सैलाब से कालांतर में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार वर्तमान स्वरूप विकसित हो सका और अब वह शुभ समय आ पहुंचा है जब पांच सौ वर्षो के बाद राम लला पुनः भव्य स्वरूप में जन्म स्थल पर सुशोभित हो रहे हैं।

अयोध्या का भविष्य अत्यंत उज्जवल है, विश्व में भारतीय संस्कृति की स्वीकार्यता बढ़ रही है। भारत महाशक्ति के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है। “दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज नहीं काहुहि व्यापा ” की अवधारणा राम राज्य की आधारभूत संकल्पना है और अयोध्या इसकी प्रेरणा के स्वरूप में विकसित की जा रही है। वर्तमान समय आर्थिक समृद्धि का समय है, जैसे सरोवर को पता ही नहीं चलता और उससे वाष्पीकृत होकर जल बादलों के रूप में संचित हो जाता है प्रकृति वर्षा करके पुनः सबको बराबरी से अभिसिंचित कर देती है, राम राज्य में कर प्रणाली इसी तरह की थी कि टैक्स देने वाले को देने का कष्ट नहीं होता था। वर्तमान सरकार से ऐसी ही कर प्रणाली की अपेक्षा जनमानस कर रहा है, अयोध्या का राम जन्म भूमि मंदिर ऐसे शासन की याद दिलाने की प्रेरणा बने।

अयोध्या जिसे पहले साकेत नगर के रूप में भी जाना जाता था सरयू नदी के तट पर बसी एक धार्मिक एवं ऐतिहासिक नगरी है|यह उत्तर प्रदेश राज्य में है तथा अयोध्या नगर निगम के अंतर्गत इस जनपद का नगरीय क्षेत्र समाहित है| यह प्रभु श्री राम की पावन जन्मस्थली के रूप में हिन्दू धर्मावलम्बियों के आस्था का केंद्र है|अयोध्या प्राचीन समय में कोसल राज्य की राजधानी एवं प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण की पृष्ठभूमि का केंद्र थी। प्रभु श्री राम की जन्मस्थली होने के कारण अयोध्या को मोक्षदायिनी एवं हिन्दुओं की प्रमुख तीर्थस्थली के रूप में माना जाता है | राम जन्म स्थल पर नये मंदिर के निर्माण के बाद अब अयोध्या वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर अंकित हो चली है और यहां जो विश्वस्तरीय जन सुविधा विकसित हो रही है उससे यह हिन्दुओ की आस्था का सुविकसित केंद्र बनकर सदा सदा हमें नई उर्जा प्रदान करती रहेगी।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 262 ⇒ मान न मान… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मान न मान…।)

?अभी अभी # 262 ⇒ मान न मान… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

अतिथि को हम मेहमान भी कहते हैं। जो बिना किसी तिथि के अनायास आ धमके, तो प्रकट रूप से भले भी वह आपके लिए देवता हो, लेकिन क्या वह, मान न मान, मैं तेरा मेहमान नहीं हुआ। मजबूरी में ही सही, अगर आपने उसे अपना मेहमान मान लिया, तो क्या आप उसके मेजबान यानी होस्ट (host) नहीं हुए। मैं तेरा होस्ट, तू मेरा गेस्ट।

यही होस्ट कभी कभी होस्टाइल हो उठता है, जब मेहमान guest नहीं ghost निकल जाता है। अतिथि वह भला, जिसके जाने की तिथि पहले से ही मुकर्रर हो। इस स्थिति में अतिथि तुम कब जाओगे, जैसी परिस्थिति कभी निर्मित ही नहीं होती। जो आप पर इतना मेहरबान हो कि अपने आने की, कहां ठहरने की, और वापसी की भी पुख्ता, समय और तारीख से आपको अवगत कराए, वह इस कलयुग में किसी भगवान से कम नहीं।।

लेकिन आतिथ्य कला में आजकल मनुष्य बहुत एडवांस हो चला है। यह कुछ हमारे सनातन धर्म का प्रभाव भी है और कुछ संचित पुण्य के संस्कार भी कि वह खुशी खुशी किसी भी संत, महात्मा, अथवा कथा, कीर्तन, सत्संग और पाठ का यजमान बनने में अपने आपको धन्य मानता है।

आप अपने घर में जब भी कथा, कीर्तन, जगराता अथवा भजन संध्या का आयोजन करते हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से ही उस पुनीत कार्य के यजमान बन जाते हैं। घरों में जब भी किसी मंगल कार्य हेतु यज्ञ अथवा हवन होता है, तो घर का प्रमुख सदस्य ही तो जोड़े सहित यजमान का आसन ग्रहण करता है। एक यजमान कितने क्विंटल पुण्य अर्जित करता है, यह उसके द्वारा तन, मन और धन से संपन्न हुए कार्य पर निर्भर करता है। किसी व्रत का उद्यापन भी इसी श्रेणी में शामिल होता है। सुहागन जोड़े को आदर सत्कारपूर्वक भोजन करवाना भी यजमान के संचित पुण्य में अतिशय वृद्धि करता है।।

कलयुग नाम अधारा! नारद भक्ति सूत्र के अनुसार भी श्रवण, कीर्तन और नाम स्मरण ही आज के युग में मुक्ति के साधन हैं। राम नाम की लूट का तो हम हाल ही में प्रत्यक्ष अनुभव कर चुके हैं। लेकिन किसी पहुंचे हुए संत द्वारा राम कथा अथवा भागवत कथा का आयोजन इतना आसान भी नहीं। मेहनत पसीने से अर्जित धन और संचित पुण्य ही किसी विरले, अति भाग्यशाली व्यक्ति को यह स्वर्णिम अवसर प्राप्त होता है, जब वह इस आयोजन का साक्षी भाव से यजमानत्व का भार ग्रहण करे। जन्मों जन्मों के संचित संस्कारों के पुण्य फल के पश्चात् ही किसी यजमान के जीवन में यह घटना घटित होती है।

आपने कभी सुना है, मान न मान मैं तेरा यजमान। जी हां, जिनका राजयोग प्रबल होता है, वे तो केवल अपने पुरुषार्थ एवं जन जन के आग्रह और अनुनय के फलस्वरूप ही यह दुर्लभ दायित्व हंसते हंसते स्वीकार कर लेते हैं लेकिन शेष सात्विक, संस्कारी धनाढ्य धर्मावलंबियों को ऐसे भव्य और दिव्य आयोजनों में यजमान बनने हेतु जमीन आसमान एक करना पड़ता है, बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं।।

लेकिन ईश कृपा और संचित धन के अलावा संचित पुण्य के आधार पर ही बिल्ली के भाग से छींका टूटता है और धर्म के ऐसे कल्याणकारी आयोजन में कोई विरला ही यजमान के इस दायित्व को ग्रहण कर पाता है।

बिना मेहमान के एक बार आपका जीवन सुखी हो सकता है, लेकिन बिना यजमान के कोई यज्ञ नहीं हो सकता, कोई कथा भागवत, कीर्तन सत्संग नहीं हो सकता। मनुष्य के जीवन की सुख शांति का आधार ही धार्मिक कृत्य और अनुष्ठान है। सभी सिद्ध पुरुष, प्रकांड कर्मकांडी पंडित और रामकथा और भावगत कथा के आचार्य सुन लें,

मान न मान, मैं तेरा यजमान। आशीर्वाद तो बनता है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #31 ☆ कविता – “नक़्श-ए-इश्क़…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 31 ☆

☆ कविता ☆ “नक़्श-ए-इश्क़…☆ श्री आशिष मुळे ☆

उसे जबान की क्या जरूरत

कहे जो शख़्स प्यार बुरा है

नहीं समझा वो सदियों से

होना जानवर से इंसान क्या है

 

जिस किताब को नहीं इश्क के मायने

उसे पढ़कर क्या पाना

बस जिंदगी की सीख भूलना

और मौत में जनम खोजना

 

कहे जो दोस्त, मत कर मोहब्बत

उसे सुनकर क्या फायदा

बस दिलोदिमाग को गिरवी रखना

और सांप को ख़ैर-ख़्वाह समझना

 

बड़ी से बड़ी दौलत

नहीं ख़रीद सकती इसे

नक़्ल इसकी मगर

बिकती बड़ी सस्ते में

 

नक़्ल तो नक़्ल सही

मगर खरीद वो जज़्बात से

नक़्ल के पीछे भी है एक शक्ल

देखो गर जुनून-ए-इश्क़ से

 

जो ना समझे नक़्श-ए-इश्क़

वो जन्नत की तलाश करते है

दर्द-ए-इश्क़ दे सुकून जिसको

जन्नत उसे तलाश करती है….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 191 ☆ प्रेरणा गीत – भारत के आदर्श राम हैं ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 191 ☆

☆ प्रेरणा गीत – भारत के आदर्श राम हैं ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

भारत के आदर्श राम हैं

जग में ध्वज फहराएँगे।

सत्य सनातन विजय पर्व पर

मिलकर हर्ष मनाएँगे।।

 *

जन्मस्थली मुक्त हो गई

बलिदानों की थाती से।

संस्कार , संस्कृति बच पाए

संघर्षी परिपाटी से ।।

 *

राम हमारे पुरषोत्तम हैं

इनको घर – घर लाएँगे।

भारत के आदर्श राम हैं

जग में ध्वज फहराएँगे।।

 *

स्वाभिमान , अस्तित्व बच गए

भारत माँ का वंदन है।

भक्त समर्पित इसमें उनके

मस्तक रोली चंदन है।।

 *

समता , ऐक्य राष्ट्र की कुंजी

सब ही हम अपनाएँगे।

भारत के आदर्श राम हैं

जग में ध्वज फहराएँगे।।

 *

मथुरा, काशी आराध्य  हैं

उनको आदर्श  बनाना है।

पीओके में ध्वज फहराकर

राष्ट्रीय धर्म बचाना है।।

 *

शिव , कान्हा संकल्प सुनेंगे

घर – घर दीप जलाएँगे।।

भारत के आदर्श राम हैं

जग में ध्वज फहराएँगे।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ राम नाम जपू चला… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ राम नाम जपू चला… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

लक्ष दीप लावु चला

राम नाम घेऊ चला |

*

क्षण भाग्याचा आज उदेला

मनामनांना हर्ष जाहला |

*

मन-मंदिरही सजवु चला

भक्ती अर्पण करु चला |

*

राम त्राता जाणु चला

भगवा हाती घेऊ चला | 

*

भाव-पुष्प अर्पु चला

मोदानेही गाऊ चला |

*

‌ ‌‌राम नाम जपु चला

 धन्य होऊनी नमु चला ||

© सुश्री दीप्ती कोदंड कुलकर्णी

हैदराबाद.

भ्र.९५५२४४८४६१

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ उगवतीचे रंग – तुम्ही युनिक आहात… ☆ श्री विश्वास देशपांडे ☆

श्री विश्वास देशपांडे

? विविधा ?

☆ उगवतीचे रंग – तुम्ही युनिक आहात… ☆ श्री विश्वास देशपांडे

उगवतीचे रंग – तुम्ही युनिक आहात…

मागे एका शाळेत गेलो होतो. ती शाळा खूप प्रसिद्ध म्हणून पाहायला. त्या शाळेच्या ऑफिसमध्ये एक वाक्य वाचायला मिळालं. ‘ एव्हरी चाईल्ड इज  युनिक. ‘ आणि अगदी खरं आहे. प्रत्येक मूल दुसऱ्या मुलापासून वेगळं आहे. बुद्धीनं, रूपानं , विचारानं, भावनेनं. प्रत्येकाची प्रत्येक गोष्ट करण्याची क्षमता वेगवेगळी. जे एकाला खूप चांगलं जमतं , तसं दुसऱ्याला येईलच असे नाही सांगता येत. आपण पालक मात्र ही गोष्ट समजूनच घ्यायला तयार नसतो. एखादा मुलगा अभ्यासात हुशार असला तर आपण आपल्या मुलाला त्याचे उदाहरण देतो. तो अमुक अमुक बघ. कसा हुशार आहे. गणितात किती गुण मिळाले त्याला ! नाहीतर तू .. असे म्हणून आपण त्याला हिणवतो. आणि त्याचं फुलू पाहणारं व्यक्तिमत्व कोमेजण्यासाठी हातभार लावतो. अरे, निसर्गातही बघा ना. प्रत्येक फुल वेगवेगळं आहे. गुलाब फुलांचा राजा झाला म्हणून काय इतर फुलांचं सौंदर्य, सुगंध कमी आहे का ? प्रत्येक फुल आपापल्या ठिकाणी श्रेष्ठ आहे. सगळेच गुलाब झाले तर कसे चालेल ? फुलांच्या हारामध्ये जेव्हा वेगवेगळ्या रंगांची फुलं असतात, तेव्हा तो हार शोभून दिसतो.

पण आज मला लहान मुलांबद्दल आणि त्यांच्या शिक्षणाबद्दल नाही बोलायचं. पण त्यानिमित्ताने एक विचार मात्र मनात आला. प्रत्येक लहान मूल युनिक असतं तसं आपण मोठी माणसं पण असतो का ? नक्कीच असतो. पण हे आपण समजून नाही घेत. कदाचित समजतं पण उमजत नाही. कळतं पण वळत नाही. अशी आपली अवस्था असते. आणि बऱ्याच वेळा हेच आपल्या दुःखाचं मूळ असतं . मी काय करतो, तर माझी तुलना सतत दुसऱ्याशी करत असतो. एखादा माणूस तब्येतीने चांगला दिसला, दिसायला त्याचे व्यक्तिमत्व छाप पडणारे असले की मी नकळत माझी तुलना त्याच्याशी करतो आणि दुखी होतो. मला वाटतं मी एवढा बारीक आणि अशक्त का ? जे माझ्या बाबतीत तेच एखाद्या लठ्ठ माणसाला सुडौल असणाऱ्या माणसाबद्दल वाटू शकेल. त्या लठ्ठ माणसाला वाटते की मी का नाही असा सडपातळ ? लोक हसतात माझ्याकडे पाहून. एखाद्या बुटक्या माणसाला उंच माणसाबद्दल हेवा वाटू शकतो. एखाद्या आखूड केस असणाऱ्या तरुणीला लांब आणि दाट केस असलेल्या स्त्रीबद्दल असूया वाटू शकते.

अशा अनेक गोष्टींमुळे आपण स्वतःला दु:खी करून घेतो. इथे आपले चुकते ते हे की आपण स्वतःला आहे तसे स्वीकारायला तयार नसतो. पण निसर्ग तुमच्यात जेव्हा तुम्हाला वाटणारी एखादी उणीव ठेवतो, तेव्हा तुम्हाला तो अशी काही गोष्ट देऊन ठेवतो, की जी दुसऱ्याजवळ नसते. एखाद्या धनिकाला सगळ्या गोष्टी उपलब्ध असून शांत झोप लागत नाही. तेच झोपेचे वरदान देव मात्र एखाद्या सर्वसामान्य माणसाला सहज देऊन ठेवतो. तो श्रीमंत माणूस सगळे विकत घेऊ शकतो. पण झोप नाही विकत घेऊ शकत. मनःशांती नाही मिळत पैशाच्या जोरावर. अशा खूप गोष्टी असतात आपल्याजवळ. या अर्थाने आपण गिफ्टेड असतो. पण आपण नेमके आपल्याजवळ असलेल्या गोष्टींचा विचार न करता आपल्याजवळ नसलेल्या गोष्टीचा विचार करतो.

या अर्थाने खरं तर प्रत्येक व्यक्ती युनिक आहे. वेगळी आहे. मी मुद्दामच या लेखाचं नाव तुम्ही युनिक आहात असं दिलंय . खरं म्हणजे बरेचदा मी इंग्रजी शब्द वापरायचे टाळतो. पण काही वेळा आपल्याला अपेक्षित असणारा अर्थ एखादा शब्द चटकन स्पष्ट करत असेल तेव्हा मी तो बिनदिक्कतपणे वापरतो. इंग्रजीतला युनिक हा शब्दही असाच. युनिक म्हणजे एकमेवाद्वितीय. इतरांपासून एकदम वेगळा. आपण सगळे या अर्थाने युनिक असतो. इतरांपासून वेगळे असतो. मला गाणी आवडतात, प्रवास आवडतो, वाचायला आवडते, लिहायला आवडते. दुसरा माझा एक मित्र उत्तम चित्रं काढतो आणि लिहितोही. तो फिरत मात्र फारसा नाही. कोणी उत्तम गातो. कोणाला उत्तम स्वयंपाक करता येतो. कोणीतरी उत्तम खेळाडू आहे. किती हे वेगळेपण ! किती या प्रत्येकाच्या तऱ्हा ! म्हणून तर प्रत्येक जण युनिक. हे जेव्हा आम्ही समजून घेऊ ना, तेव्हा आम्ही स्वतःवर प्रेम करायला लागू. (उगवतीचे रंग- विश्वास देशपांडे )

आणि जो स्वतःवर प्रेम करू शकतो, तोच इतरांवरही प्रेम करू शकतो. पण आपल्याकडे ही गोष्ट लहानपणापासून सांगितलीच जात नाही. उलट सांगितलं जातं . की स्वतःचा विचार करू नका. स्वतःवर प्रेम करू नका. दुसऱ्यावर प्रेम करा. पण स्वतःवर प्रेम नाही करता आलं, स्वतःला आहे तसं नाही स्वीकारता आलं , तर तुम्ही दुसऱ्याला काय स्वीकारणार आणि मग प्रेम करणं तर लांबची गोष्ट !

तेव्हा आजपासून स्वतःला सांगू या की मी इतरांपेक्षा अगदी वेगळा आहे, युनिक आहे आणि त्यातच माझे सौंदर्य आहे, सामर्थ्य आहे. इतरांना दिल्या त्यापेक्षा परमेश्वराने मला काही गोष्टी नक्कीच वेगळ्या दिल्या आहेत. त्यांचा मी विचार करीन . त्यांचा वापर करून माझे जीवन आनंदी बनवेन. आणि त्याच बरोबर इतरांचेही. आणि मग बघा. तुमच्याही ओठांवर आनंदाचे गाणे आल्याशिवाय राहणार नाही.

लिये सपने निगाहो में, चला हूँ ‘तेरी राहों मे

जिंदगी, आ रहा हूँ मैं ….

© श्री विश्वास देशपांडे

चाळीसगाव

प्रतिक्रियेसाठी ९४०३७४९९३२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ “क्वेश्चन मार्क…” ☆ श्री कौस्तुभ केळकर नगरवाला ☆

?जीवनरंग ?

☆ “क्वेश्चन मार्क …” ☆ श्री कौस्तुभ केळकर नगरवाला

‘चेहरा ओळखण्यापलीकडे गेलाय.

अर्धा किलोमीटर तरी ,ट्रकबरोबर घासत गेलीय बाॅडी.

भोसले , काही आयडेंटीटीफिकेशन होतंय का, बघा.

अन् बाॅडी  ससूनलाला पाठवून द्या.

अजून श्वास चालूय.

वाचेल कदाचित.’

पी. एस. आय. जमादार, पटाटा अॅक्शन घेत होते.

‘साहेब , पँटमधल्या वाॅलेटच्या चिंध्या झाल्या आहेत.

शर्टच्या खिशातल्या मोबाईलच्या ठिकर्या.

आॅफिसबॅगमधे एक बिल सापडलंय.

मोबाईल परचेजचं.

त्यावर नाव आणि अॅड्रेस आहे.

ए. ए. कुलकर्णी नाव आहे.

1763 , सदाशिव , पुणे 30 पत्ताय.’

‘ ताबडतोब त्या पत्त्यावर माणूस पाठवा.

नातेवाईकांना बोलावून घ्या.

मी चौकीवर जातोय.

आज खरं तर लवकर जायचं होतं.

लेकीचा वाढदिवस होता.

आता जमायचं नाही बहुतेक.

तुम्ही ससूनलाच थांबा.

मला तसा रिपोर्ट करा.’

जमादार टोकटोक बूट वाजवत, चौकीवर निघून गेले.

1763 ,सदाशिव , पुणे 30.

घराचं नाव सौभाग्य सदन.

आता कुठलं ऊरलंय सौभाग्य ?

सौभाग्य वाचव रे देवा , या घरचं.

तरी बरं , घराला काय घडलंय, याची खबरच नाहीये.

अरविंद आत्माराम कुलकर्णी.

वय वर्ष 63.

अक्षर प्रिंटींग प्रेसचे मालक.

गेली चाळीस वर्ष प्रिंटींगच्या धंद्यात आहेत.

या धंद्यातली ही आता चौथी पिढी.

खरं तर पहिल्यांदा वाड्यातच प्रेस होता.

आता जागा कमी पडायला लागली.

पाच वर्षापूर्वी प्रेस धायरीला हलवलाय.

सकाळी नऊ ते रात्री नऊ.

अरविंदराव मु. पो. धायरी.

दिवसभर प्रेस नाहीतर…

क्लायेंटकडे चकरा.

अॅक्टिव्हा वापरायचे.

पुढे गठ्ठे ठेवायला सोयीची.

दिवसभर दोघांचंही भरपूर रनिंग व्हायचं.

नुकताच अनुजही जाॅईन झालाय.

अनुज अरविंद कुलकर्णी.

बी. ई. ( प्रींटींग टेक्नाॅलाॅजी )

धंद्याला लागलेलं नवं ईन्जीन.

डबल ईन्जीन , डबल टर्नओव्हर.

धंदा जोरात चाललाय.

अनुजही अॅक्टिव्हाच वापरायचा.

कुलकर्णी फॅमिली, अॅक्टिव्हाचे ब्रॅन्ड अॅम्बॅसॅडर होणार.

घरी गडबड.

अनुजची बायको आणि आई.

किचनमधे आॅन ड्यूटी.

पुर्या तळणं चाललेलं.

अनुज आणि आरतीच्या लग्नाचा पहिला वाढदिवस.

त्यात आरती दोन महिन्याची पोटुशी.

आनंदघन बरसायची वाट बघतायेत.

आज तरी..

नक्की.

अनुज आणि अरविंद, आज नक्की लवकर घरी येणार.

घर दरवाजाकडे डोळे लावून, दोघांची वाट बघतंय.

फोनच आला.

‘ मी धायरी पुलीस स्टेशनमधून, काॅस्न्टेबल भोसले बोलतोय.

एका अॅक्टिव्हाला डंपरनं ऊडवलंय.

ए. ए. कुलकर्णी नावाची चिठ्ठी सापडलीय.

ताबडतोब ससूनला या.

कंडीशन सिरीयस आहे.’

अनुजच्या आईनं फोन घेतलेला.

कानापर्यंत पोचलेले शब्द.

मेंदूत शिरायला तयारच नव्हते.

अनुजची आई मटकन् खाली बसली.

‘ अॅक्सीडेन्ट झालाय.’

ती एवढचं बोलली.

आरतीचं चॅनल म्यूट.

ती फ्रीजींग पाॅईंटला पोचलेली.

संवेदना बधीर झालेल्या.

ती कोसळलीच.

अनुजची आई धीराची.

शेजारी हाक मारली.

शेजारचा रवी.

त्याला बोलावला.

तो लगोलग ससूनला पळाला.

अनुजची आई , आरतीच्या ऊशाशी.

घरचा गणपती पाण्यात.

‘कोण असेल नक्की ?

अनुज का अरविंद. ?’

मेंदूचा भुगा.

‘पोरीचं सौभाग्य सांभाळ रे देवा.

मग माझं सौभाग्य दावणीला…

स्वार्थ की त्याग ?

प्रत्येक माणूस आपलंच.

डावं ऊजवं काय करणार ?

कुणी का असेना.

सिद्धीविनायका , सांभाळ रे बाबा ‘

तेवढ्यात दारातून अरविंदराव घरात शिरले.

सहज.

काहीच माहिती नसल्यासारखे.

‘ म्हणजे , अनुजला..’

आता मात्र अनुजच्या आईचा धीर सुटला.

तीनं हंबरडा फोडला.

‘ अरे , नक्की काय झालंय ?

सांगेल का कुणी ?”

भिजलेल्या अश्रूंनी ,दर्दभरी दास्तान ऐकवली.

अरविंदरावांना बघितलं अन् ..

आरतीची ऊरलीसुरली शुद्ध हरपली.

अरविंदरावांच्या हातापायातलं त्राण गेलेलं.

थांबून चालणारच नव्हतं.

‘ तू पोरीला सांभाळ.

मी ससूनला जातोय.

धीर सोडू नकोस.”

अरविंदराव दरवाजातच थबकले.

हाशहुश्श करत ,अनुज घरात शिरत होता.

त्सुनामीच आली होती घरावर.

त्यातून वाचलेलं ते चार जीव.

आई , बाबा ..

टाकलेले निश्वास.

परमेश्वराचे आभार मानणारे डोळे.

डोळ्यातून धुवाधार नायगारा.

‘ आरती , डोळे ऊघड.

अनुज आलाय.’

काळझोपेतून जागं व्हावं, तशी आरती एकदम जागी.

डोळ्यांना दिसणारा अनुज.

डोळ्यात अवघं विश्व सामावलेलं.

अनुज..

तेहतीस कोटी देवांना,

कोटी कोटी थँक्स म्हणणारे ते डोळे.

धडपडत ती अनुजच्या मिठीत शिरली.

अनुजच्या चेहर्यावरचा क्वश्चनमार्क तसाच.

काहीच कळेना.

बाबांनी सगळी स्टोरी रीपीट टेलीकास्ट केली.

” म्हणजे बनसोडचा अॅक्सीडेन्ट झालाय.

आरती , तुझ्यासाठी नवीन सेलफोन घ्यायचा होता.

मग घरी यायला ऊशीर झाला असता.

बनसोड म्हणाला , साहेब तुम्ही घरी जा.

मी घेवून येतो.

म्हणलं गाडी घेवून जा.

मी रिक्षाने जातो.

बावीस वर्षाचा कोवळा पोर.

वर्षभरच झालंय कामाला लागून.

त्याच्या आईबापाला काय तोंड दाखवू मी ?”

आता अनुज हडबडला.

पुन्हा फोन किणकीणला.

” काका , रवी बोलतोय.

हा आपला अनुज नाहीये.

दुसराच कुणीतरी.

गाडी मात्र आपलीच आहे.

पण काळजी नको.

ही ईज आऊट आॅफ डेंजर.

अनुज पोचला का घरी ?”

‘ हो..

आम्ही येतोच आहोत तिकडे “

मणभर वजनाचा क्वश्चनमार्क.

सगळ्यांच्या डोळ्यांना खुपणारा.

पुसला गेला एकदाचा.

परमेश्वरा ,

ज्याचं ऊत्तर माहीत नाही,

असा प्रश्न नको टाकूस रे बाबा , आयुष्याच्या पेपरात.

अशीच कृपा राहू दे रे देवा….

© कौस्तुभ केळकर नगरवाला

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “बिझी…” ☆ श्री मंगेश मधुकर ☆

श्री मंगेश मधुकर

? मनमंजुषेतून ?

बिझी…” ☆ श्री मंगेश मधुकर

कंपनीत महत्वाची मिटिंग असल्यानं टेंशन होतं. गडबडीत आवराआवर करत असताना बायको म्हणाली,    “ पुढचा सोमवार फ्री ठेव. आत्यांच्या मुलाचं लग्नयं. घरातलंच कार्य असल्यानं तुला यावं लागेल. नेहमीचं ‘बिझी’च कारण देऊ नकोस.”

“अजून चार दिवस आहेत..तेव्हाचं तेव्हा बघू ” 

घराबाहेर पडलो.  नंतर दिवसभर मीटिंग्ज, प्रेझेंटेशन, मोबाईलमध्ये बिझी झालो. रात्री उशिरा घरी आलो. भूक नव्हती पण उपाशी झोपू नये म्हणून दोन घास खाल्ले. 

“ दुपारी काय जेवलास ? ”बायकोनं विचारलं. 

“ जेवलो नाही पण सँडविचेस,वेफर्स आणि कॉफी……”

“ त्रास होतो.मग कशाला असलं खातोस? व्यवस्थित जेवायला काय होतं ? ”

“ अगं,आजचा दिवस खूप पॅक होता. क्लायंटबरोबर पाठोपाठ महत्वाच्या मिटिंग्ज् होत्या. वेळच मिळाला नाही.”

“ हे नेहमीचच झालंय. आठवड्यातले चार दिवस टिफिन न खाता परत आणतोस. दरवेळेस तीच कारणं…”

“ चिडू नकोस. सतत सटरफटर खाणं होतं म्हणून मग जेवायचं लक्षात राहत नाही. डार्लिंग,ऐक ना,आज खूप दमलोय.यावर नंतर बोलू.प्लीज..”–  

“ आज लग्नाला यायला हवं होतसं. सगळे आलेले फक्त तू नव्हतास. प्रत्येकजण विचारत होता.”

“ महत्वाचं काम होतं.”

“ ते कधी नसतं?.”

“ तू,आई,बाबा होता ना… नाहीतरी मी तिथं बोर झालो असतो आणि एक लग्न अटेंड केलं नाही म्हणून काही बिघडत नाही.”

“ नातेसंबंध बिघडतात ”

“ स्पष्ट बोल ”

“ गेल्या दहा वर्षात तू सर्वच समारंभ चुकवलेत. नातेवाईकांशी तुझा कनेक्ट राहिलेला नाही.”

“ सो व्हॉट !! महत्वाची कामं होती म्हणून आलो नाही. त्याचा एवढा इश्यू कशाला? ”

“ कामं तर सगळ्यांनाच असतात. कंपनीच्या पलीकडं सुद्धा आयुष्य आहे.ऑफिसबरोबर घरच्यासुद्धा जबाबदाऱ्या असतात. कशाला महत्व द्यायचे हे समजलं पाहिजे.”

“ ऑफकोर्स, तेवढं समजतं. सध्या करियरचा पीक पिरीयड आहे. माझ्यावर मोठी जबाबदारी आहे. त्यामुळे पर्सनल गोष्टी बाजूलाच ठेवाव्या लागतात.”

“ कंपनीत बाकीचे लोकपण आहेत ना ? ”

“ आहेत. कंपनीत माझ्यावर खूप मोठी जबाबदारी आहे. सध्यातरी इतर गोष्टींपेक्षा कामाचं महत्व जास्त आहे.”

“ पस्तीशीतच घर, गाडी, बँक बॅलेन्स सर्व मिळवलंस. अजून काय पाहिजे ? थोडा दमानं. जे कमावलयं त्याचा तरी उपभोग घे.” 

“ आराम वगैरे करायला आयुष्य पडलंय. लहानपणापासून पाहिलेल्या स्वप्नाचा एक टप्पा झालाय.  अजून बरंच काही मिळवायचयं. पन्नाशीला कुठं असणार हे ठरलंय.”

“ पन्नाशीचं प्लॅनिंग? बापरे इतक्या लांबचा विचार आताच कशाला? “

“ तुला कळणार नाही. आयुष्य कसं प्लान्ड असावं ”

“ माझ्याशीच लग्न करायचं याचंसुद्धा प्लॅनिंग केलं होतसं का? ”

“ हे बघ उगीच शब्दात पकडू नकोस ”

“ बरं !! गंमत केली.  लगेच चिडू नकोस. एवढंच सांगायचयं की उद्याचा दिवस चांगला करताना ‘आज’ ला  विसरु नकोस.”

“ पुन्हा तेच !! माझ्या प्रायोरीटीज ठरलेल्यात.”

“ तू स्वतःसकट आम्हांलाही खूप गृहीत धरतोस ”

“ म्हणजे ?”

“ प्रत्येकवेळी तुझ्या मनासारखं व्हायला पाहिजे हा हट्ट योग्य नाही. तुला माणसांची किंमत नाही ”

“ असं काही नाही. पैसा असला की माणसाला किंमत येते. आणि सध्या तोच कमावतोय.”

“ बरंच काही गमावतोस सुद्धा. घर, मुली,आईबाबा यांच्यासाठी तुझ्याकडे वेळच नाही.”

“ तू आहेस ना ”

“ हो, मला पण आधाराची गरज लागते. मी एकटीच आहे ना. घरात आपण प्रवाशासारखं राहतोय ”

“ पुन्हा तीच रेकॉर्ड नको. अजून काही वर्ष तुला एडजेस्ट करावं लागेल. नो चॉइस !!”

“ आतापर्यंत तेच तर करतेय. आम्हांला नाही निदान स्वतःला तरी वेळ देशील की नाही ? ”

“ काय ते नीट सांग.”

“ आताशा फार चिडचिडा झालायेस. सतत अस्वस्थ, बेचैन, तणावाखाली असतोस. वेळेवर जेवत नाही की झोपत नाहीस. डोळ्याखाली काळी वर्तुळ झालीत. थोड चाललं की धाप लागतीय. तब्येत ठीक नाहीये. कामांच्या नादात दुखणं अंगावर काढू नकोस. मागे ब्लडप्रेशर वाढलं तेव्हाच डॉक्टरांनी काळजी घ्यायला सांगितलं..  पण तू साफ दुर्लक्ष केलंस.”

“ आय एम फाइन ”

“ नो,यू आर नॉट. तुला त्रास होतोय पण कामाच्या नादात…..ऐक,डॉक्टरांकडे जाऊ या. सगळया तपासण्या करू.”

“ ओके, नक्की जाऊ. फक्त थोडे दिवस जाऊ दे. आत्ता खूपच बिझी आहे.”

“ कामं कधीच संपणार नाहीत. अजून वेळ गेलेली नाही. शरीरानं इंडिकेअटर्स दिलेत. कामाच्या बाबतीत जेवढा जागरूक आहेस तेवढाच तब्येतीबाबत बेफिकीर आहेस म्हणून काळजी वाटते.”

“ डोन्ट वरी, मी ठणठणीत आहे. पुढच्या आठवड्यात सुट्टी घेतो तेव्हा डॉक्टरांकडे जाऊ ”

“ प्रॉमिस ? ” .. बायको. 

“ हजार टक्के ” 

बायकोला दिलेलं प्रॉमिस पूर्ण करण्याची वेळच आली नाही. खरं सांगायच तर दोन तीन दिवस तब्येत ठीक नव्हती. परंतु महत्वाच्या  कामामुळे दुर्लक्ष केलं अन त्याच दिवशी मिटिंगमध्येच कोसळलो. डोळे उघडले तेव्हा हॉस्पिटलमध्ये होतो. नंतर कळलं पॅरेलिसिसचा अटॅक आला. जीव वाचला परंतु उजवी बाजू निकामी झाली. जबरदस्त धक्का बसला. वास्तव स्वीकारायला फार त्रास झाला. उतारवयातल्या आजाराला तरुणपणीच गाठल्यानं खूप हताश, निराश झालो. एकांतात भरपूर रडलो, स्वतःला शिव्या घातल्या पण पश्चातापाव्यतिरिक्त हाती काही लागलं नाही. आयुष्य ३६० डिग्री अंशात बदललं. स्वतःला नको इतकं गृहीत धरलं त्याची शिक्षा मिळाली. आधी हॉस्पिटलमध्ये..  नंतर घरात असे दोन महीने काढल्यावर हल्लीच घराबाहेर पडायला लागलोय. संध्याकाळी काठी टेकवत हळूहळू चालतो तेव्हा लोकांच्या नजरेतील सहानभूती आणि कीव करण्याचा फार त्रास होतो. काही दिवसांपूर्वी खूप खूप बिझी असलेला मी आता वेळ कसा घालवायचा या विवंचनेत असतो. गॅलरीतून रस्त्यावर पाहताना बहुतेकजण माझ्यासारखेच वाटतात… सो कॉल्ड बिझी ….. उद्यासाठी आज जीव तोडून पळणारे….

…. एक महत्वाचं सांगायचं राहिलं .. .. माझ्या आयुष्यातील घडामोडीचा कंपनीच्या कामावर काहीही परिणाम झाला नाही. माणसं बदलून काम चालूच आहे. कुठंही अडलं नाही. मला मात्र उगीच वाटत होतं की……. 

© श्री मंगेश मधुकर

मो. 98228 50034

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ कैकयी… ☆ सौ कुंदा कुलकर्णी ग्रामोपाध्ये ☆

सौ कुंदा कुलकर्णी ग्रामोपाध्ये 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ कैकयी… ☆ सौ कुंदा कुलकर्णी ग्रामोपाध्ये ☆

रामायणातील सर्वात महत्त्वाची व्यक्ती म्हणजे कैकयी. तिच्यामुळेच रामायण घडले. वनवासात जाण्यापूर्वी राम हा इतर राजांप्रमाणे फक्त रामराजा होता. पण रावणाचा वध करून, 14 वर्षांचा वनवास संपवून जेव्हा तो अयोध्येस परत आला तेव्हा तो” प्रभू रामचंद्र” झाला. शुद्ध परात्पर राजाराम वगैरे  सर्व विशेषणे त्याला त्यावेळेला लागली. आणि यासाठी कैकयीच  कारणीभूत आहे.

ती केकय देशाच्या अश्वपती राजाची कन्या होती. दशरथा पासून तिला भरत नावाचा पुत्र झाला. आपल्या मुलाला अयोध्येचे राज्य मिळावे म्हणून तिने सावत्र मुलगा राम याला वनवासास धाडण्याची गळ दशरथाला घातली. परंतु पुत्र विरहाच्या शोकामुळे दशरथाचा मृत्यू झाला.

रामाचा वनवास व दशरथाचा मृत्यू या घटनांना कारणीभूत ठरल्यामुळे  तिला खलनायिका ठरवतात.”माता न तू, वैरिणी “या प्रसिद्धगाण्यामुळे तर ती जास्तच दुष्ट वाटू लागते. पण प्रत्यक्षात तसे नाही.

कैकयी अत्यंत सुंदर, धाडसी ,युद्धकलानिपुण, ज्योतिषतज्ञ होती .त्यामुळे दशरथाची सर्वात लाडकी राणी होती. एकदा देवराज इंद्र संब्रासुर नावाच्या राक्षसाशी लढत होता. पण तो राक्षस खूप शक्तिशाली होता म्हणून इंद्राने दशरथाकडे मदत मागितली. दशरथ युद्धाला सज्ज झाला. कैकयीदेखील त्याच्याबरोबर गेली. युद्धामध्ये दशरथाच्या सारथ्याला बाण लागला.  दशरथ हादरला. पण कैकयीने स्वतः उत्तम सारथ्य केले. दुर्दैवाने रथाचे एक चाक खड्डयात अडकले. कैकयी पटकन रथातून खाली उतरली. रथाचे चाक खड्डयातून बाहेर काढले. ते पाहून राक्षस घाबरला आणि पळून गेला. दशरथाचे प्राण वाचले. त्याने तिला दोन वर दिले.

रामाचा राज्याभिषेक ठरला. कैकयीने वराप्रमाणे दशरथाला रामाला 14 वर्षे वनवास आणि भरताला राज्याभिषेक असे दोन वर मागितले. त्याची खरी कारणे खालील प्रमाणे आहेत…

१) कैकयी ज्योतिष जाणत होती. तिने रामाच्या राज्याभिषेकावेळी कुंडली मांडली. त्यावेळी तिच्या लक्षात आले की सध्या चौदा वर्ष जो कोणी सिंहासनावर बसेल तो स्वतःचा आणि रघुवंशाचा नाश करेल. ते टाळण्यासाठी तिने रामाला वनवासाला पाठवले.

२) ती युद्ध कला निपुण होती. त्यावेळी वाली नावाचा एक राजा होता. त्याला वरदान मिळाले होते की जो कोणी त्याच्याशी युद्ध करेल त्याची निम्मी शक्ती त्याला मिळत असे. त्याच्याशी युद्ध करायला दशरथ आणि कैकयी गेले. पण दशरथ हरला. तेव्हा वालीने त्याला दोन अटी घातल्या. तुला सोडतो पण मला कैकयी  देऊन टाक किंवा तुझा राजमुकुट दे. अर्थात् दशरथाने आपला राजमुकुट त्याला दिला. ही गोष्ट फक्त या दोघांनाच माहीत होती. राजमुकुटाशिवाय राज्याभिषेक करता येत नाही . म्हणून तिने राज्याभिषेकाच्या आदल्या  रात्री रामाला बोलावले. विश्वासात घेऊन हे सांगितले .” तू वनवासाच्या निमित्ताने वालीचा वध कर आणि तो  राजमुकुट घेऊन ये.”  राम तयार झाला. आणि म्हणूनच राम जेव्हा रावणाचा, वालीचा , वध करून अयोध्येस परत आला तेव्हा त्याने सर्वात प्रथम कैकयीला नमस्कार केला नंतर कौसल्येला.

३) श्रावणबाळाच्या मातापित्यांनी दशरथाला शाप दिला होता की तूदेखील आमच्यासारखाच पुत्रशोकाने प्राण सोडशील. राज्याभिषेकाच्या वेळी दशरथ तसा वृद्धच झाला होता. रामाच्या मृत्यूपेक्षा विरहाच्या पुत्रशोकाने दशरथाचा मृत्यू झालेला बरा. असा सूज्ञ विचार करून , रामाचा मृत्यूयोग टाळण्यासाठी तिने रामाला वनवासात पाठवले.

४) रामाचा जन्मच मुळी रावण किंवा सर्व राक्षसांचा वध करणे यासाठी होता.  राज्याभिषेकाच्या वेळी सर्व देवांना चिंता पडली की हा जर इतर राजांप्रमाणे राज्यकारभार करू लागला तर राक्षसांचा वध कोण करणार? ते सगळे सरस्वतीला शरण गेले. सरस्वती मंथरा दासीच्या जिभेवर आरूढ झाली. तिने कैकयीला गोड बोलून भुलवले आणि रामाला वनवासात पाठवण्यास भाग पाडले.

५) खरे तर तिचे भरतापेक्षा रामावर जास्त प्रेम होते. ती भरताबरोबर रामाला भेटण्यासाठी चित्रकूट पर्वतावर गेली. व म्हणाली, “ मी कुमाता आहे. तू मला क्षमा कर.” तेव्हा रामाने तिची समजूत घातली. ” तू सुमाता आहेस. ज्या मातेने भरतासारखा भाऊ मला दिला ती सुमाताच आहे .”

…. मग आपण पण तिला कुमाता न म्हणता सुमाताच म्हणूया ना?

लेखिका : सौ. कुंदा कुलकर्णी ग्रामोपाध्ये 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ तुम्हाला कोण आनंदात ठेवतं?… लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ. मंजुषा सुनीत मुळे ☆

सौ. मंजुषा सुनीत मुळे

? वाचताना वेचलेले ?

☆ तुम्हाला कोण आनंदात ठेवतं?… लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ. मंजुषा सुनीत मुळे ☆

एकदा एका वक्त्याने श्रोत्यांमधील एका महिलेला विचारले,”तुमचा नवरा तुम्हाला आनंदात ठेवतो का?”

तिच्या शेजारी बसलेल्या पतीच्या चेहऱ्यावर हसू उमटले. तो आत्मविश्वासाने पत्नीकडे बघू लागला. त्याला पूर्ण खात्री होती, की ती ‘हो’ असंच म्हणेल. कारण तिने लग्न झाल्यापासून कधीच काहीही तक्रार केलेली नव्हती.

पण त्याच्या बायकोने स्पष्ट आवाजात उत्तर दिलं,”नाही.” ती म्हणाली, “माझा नवरा नाही ठेवत मला आनंदात!”

तिच्या पतीला हे अनपेक्षित होतं. तेवढ्यात ती पुढे म्हणाली, “मला माझ्या नवऱ्याने आनंदात ठेवले नाही, मी स्वत:च आनंदात राहते.

मी आनंदी असावं की नाही याच्याशी त्याचा काहीच संबंध नाही. माझा आनंद पूर्णपणे माझ्यावरच अवलंबून आहे.

कुठल्याही परिस्थितीत, आयुष्यातल्या प्रत्येक क्षणी मी आनंदीच राहते. जर माझा आनंद कुणा दुसऱ्यावर, एखाद्या वस्तूवर किंवा विशिष्ट परिस्थितीवर अवलंबून राहिला तर ते माझ्यासाठीच कठीण होऊन बसेल.

आयुष्यातली प्रत्येक गोष्ट सतत बदलत असते. माणसं, संबंध, आपलं शरीर, हवामान, आपले ऑफिसातले बॉस, सहकारी, मित्र, आपलं शारीरिक आणि मानसिक आरोग्य… ही यादी न संपणारी आहे.

त्यामुळे काहीही झालं तरी आपण आनंदी राहायचं, हे मीच ठरवायला हवं ना! माझ्याकडे खूप काही असलं काय किंवा काहीच नसलं काय, मी आनंदीच असते!

मला कुठे बाहेर जायला मिळालं काय किंवा घरात बसून राहावं लागलं काय, मी आनंदीच राहीन. मी श्रीमंत असले काय किंवा गरीब राहिले काय, मी आनंदीच असेन.

माझं लग्न झालेलं असलं तरी लग्ना आधीही मी आनंदीच होते. कारण मी आनंदी आहे ती माझ्या स्वत:मुळे!

माझं जगणं दुसऱ्या कुणापेक्षा जास्त चांगलं आहे म्हणून मी आयुष्यावर प्रेम करते असं नाही, तर आनंदात राहायचं हे मी स्वत:च ठरवलं असल्यामुळे मी आनंदी आहे. माझ्या आनंदाची संपूर्ण जबाबदारी मीच घेतली असल्यामुळे माझ्याबरोबर जगणाऱ्या कुणालाही मला आनंदी ठेवण्याचं ओझं बाळगावं लागत नाही. त्यामुळे माझ्याशी बोलता- वागताना त्यांना अतिशय मोकळेपणा जाणवतो.

आणि यामुळेच मी इतकी वर्ष आनंदात संसार करू शकले. तुमचा आनंद कधीही दुसऱ्या कुणाच्या हाती जाऊ देऊ नका.

बोध : वातावरण चांगलं नसलं तरी आनंदी राहा. आजारी असलात तरी आनंदी राहा. कठीण परिस्थितीत, पैसे नसले तरी आनंदी राहा. कुणी तुम्हाला दुखावलं, कुणी तुमच्यावर प्रेम करत नसलं, अगदी तुम्ही किती मौल्यवान आहात हे ठरवू शकत नसलात, तरी आनंदी राहा. तुम्ही स्त्री, पुरुष कुणीही, कितीही वयाचे असा. असाच विचार करायला हवा; नाही का?

लेखक : अज्ञात 

संग्राहिका: सौ. मंजुषा सुनीत मुळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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