हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 225 ☆ आलेख – क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त 🇮🇳 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेखक्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 225 ☆

? आलेख – क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त 🇮🇳?

क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त – जिन्होने भगत सिंह के संग संसद में बम फेंका .. 

बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, जिला – नानी बेदवान (बंगाल) में हुआ था। इनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रांत के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। इनकी स्नातक स्तरीय शिक्षा पी.पी.एन. कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई। 1924 में कानपुर में इनकी भगत सिंह से भेंट हुई। इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।

बटुकेश्वर दत्त  भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। बटुकेश्वर दत्त को देश ने सबसे पहले 8 अप्रैल 1929 को जाना, जब वे भगत सिंह के साथ केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। उन्होनें आगरा में स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था।

8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।

इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षड़यंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सेल्यूलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए।

आजादी के बाद नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से शादी करने के बाद वे पटना में रहने लगे। बटुकेश्वर दत्त को अपना सदस्य बनाने का गौरव बिहार विधान परिषद ने 1963 में प्राप्त किया। श्री दत्त की मृत्यु 20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों- भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया। इनकी एक पुत्री भारती बागची हैं।

बटुकेश्वर दत्त के विधान परिषद में सहयोगी रहे इन्द्र कुमार कहते हैं कि ‘स्व. दत्त राजनैतिक महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित एवं देश की खुशहाली के लिए हमेशा चिन्तित रहने वाले क्रांतिकारी थे।’

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ मैं, मेरा गांव और स्वतंत्रता दिवस 🇮🇳 ☆ श्री अजीत सिंह, पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन ☆

श्री अजीत सिंह

(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते रहते हैं।  इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक प्रेरक संस्मरणात्मक प्रसंग ‘मैं, मेरा गांव और स्वतंत्रता दिवस…’।)

☆ आलेख – मैं, मेरा गांव और स्वतंत्रता दिवस 🇮🇳 ☆  श्री अजीत सिंह, पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन ☆

स्वतंत्रता दिवस समारोहपूर्वक खुशियां मनाने और शहीदों को याद करने का दिन होता है। साथ ही यह किसी राष्ट्र या समुदाय की उपलब्धियों और चुनौतियों का लेखा जोखा जुटाने का अवसर भी होता है। राष्ट्र की उपलब्धियों और चुनौतियों के बारे में इन दिनों मीडिया और गोष्ठियों में विस्तृत चर्चा हो रही है। मैं आज अपने गांव के संबंध में इसी हवाले से बातचीत करना चाहता हूं।

मेरा जन्म देश की आज़ादी से चंद महीने पहले हरियाणा में करनाल जिले के एक छोटे से गांव हरसिंहपुरा में हुआ था। गांव यमुना नदी से करीबन चार किलोमीटर की दूरी पर था और हर दूसरे तीसरे साल आने वाली बाढ़ गांव के कच्चे घरों को गिरा देती या नुकसान पहुंचाती। गांव में केवल दो घर पक्के थे। दो अन्य घरों की केवल आगे की दीवार पक्की थी, पीछे का पूरा घर कच्चा होता था।

आज मेरे गांव में कोई घर कच्चा नहीं है। शहरी तरह के अनेक मकान हैं। पहले किसी भी घर में शौचालय या बाथरूम नहीं थे, आज सभी में हैं। कुछ घरों में बिजली दो अक्टूबर 1969 गांधी जन्मशताब्दी पर आ गई थी। अब सभी घरों में बरसों से बिजली है।

लगभग सब घरों में कलर टीवी हैं। अनेकों में फ्रिज भी हैं। लगभग सभी घरों में एलपीजी गैस कनेक्शन हैं। ट्रैक्टर, कार, जीप, मोटरसाइकिल और स्मार्टफोन बड़ी संख्या में हैं।

अब मेरे गांव में बाढ़ नहीं आती। पचास के दशक में यमुना के आस पास के हर गांव से बारी बारी 20 जवान किसान रोज़ाना अपना तस्ला व कस्सी लेकर यमुना पर बांध बनाने के लिए  जाते थे।  हजारों आदमी काम करते थे। महीनों काम चला।  उन्हें किसी तरह की मजदूरी नहीं मिलती थी। कोई मांगता भी नहीं था। उन्हें बस यमुना का रुख मोड़ कर बाढ़ से बचाव की उम्मीद थी और यह पूरी भी हुई।

मेरे गांव में कोई स्कूल नहीं था। पास के गांव में मैने पढ़ाई शुरू की। तीसरी कक्षा में पहुंचा तो हमारे गांव में सरकारी प्राइमरी स्कूल खुला जो आज मिडिल स्तर का हो चुका है।  अब गांव में सीनियर सेकेंडरी स्तर का एक केंद्रीय विद्यालय और एक प्राइवेट स्कूल भी काम कर रहे हैं।

1. स्वतंत्रता दिवस पर हरियाणवी लोकनृत्य पेश करती लड़कियां। 2. हरियाणा के लोकगायक जंगम जोगी। 3. करनाल के पास कोस मीनार 4. अपने गांव के खेतों में लेखक, पत्नी व बेटी के साथ।

सुबह सवेरे अनेक पीली बसें गांव में आती हैं और बच्चों को महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई के लिए ले जाती हैं। मैं गांव से पहला ग्रेजुएट था। अब बहुत हैं पर उनका स्टैंडर्ड बहुत नीचे है और अधिकतर उपयुक्त रोज़गार  योग्य नहीं हैं। सरकारी नौकरी में गांव के बहुत कम युवा हैं। एक दर्जन से भी कम। पानीपत के आसपास बड़ी संख्या में छोटे बड़े अनेक उद्योग कायम हुए हैं। वहां अधिकतर युवा कम वेतन के बावजूद काम करते हैं।

खेती की जोत बहुत छोटी हो गई है। केवल खेती से गुजारा नहीं हो सकता। पशुपालन भी करते हैं। पिछले तीन चार साल से विदेशों में जाने का रुझान बना है। गांव से 10 युवा अमरीका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जा चुके हैं। वे पचास लाख रुपए में एक एकड़ ज़मीन बेचते हैं और एजेंटों के जरिए डंकी रूट से अमेरिका पहुंच जाते हैं। घर डॉलर भेजते हैं, परिवार वाले आलीशान मकान बना लेते हैं।

मेरे गांव में शराब व नशे का चलन नहीं था, अब खूब है। कई परिवार तबाह हो चुके हैं। मेरे एक छोटा भाई और उसके दो बेटों को नशे ने लील लिया। शुक्र है कि घर की महिलाओं ने घर को संभाल लिया।

मेरे गांव में अनुसूचित जाति के स्थानीय लोग अब कम ही मजदूरी करते हैं। वे मनरेगा की दिहाड़ी जरूर करते हैं।

खेती अब बिहार, यूपी, झारखंड से आए मजदूरों पर ही आधारित है।

अक्सर मीडिया में खबर आती है कि हरियाणा में देश में सबसे अधिक बेरोजगारी है, 30% से अधिक. इस आंकड़े पर कुछ यकीन नहीं होता। अगर यहां इतनी बेरोजगारी है तो लाखों की तादाद में यहां बाहरी राज्यों के मजदूर किस लिए आते हैं। बिहार यूपी से लाखों की संख्या में मजदूर अन्य राज्यों में रोजगार के लिए जाते हैं। हरियाणा से तो इस तरह का माइग्रेशन नही होता। यहां का स्थानीय युवा मजदूरी नहीं करना चाहता, वो तो सरकारी नौकरी चाहता है जो बड़ी संख्या में नहीं हैं।

मेरे गांव में  पंचायत चुनाव जो पहले सर्वसम्मति से होते थे अब लाखों रुपए खर्च करते हैं। हर चुनाव में गांव जाति आधार पर बंट जाता है। पंचायत के पास तीस एकड़ जमीन हैं। इसकी सालाना नीलामी से अच्छी आमदनी होती है जो विकास कार्यों पर लगाई जाती है। सरकार ने गांव के सभी बड़े विकास कार्य ऑनलाइन टेंडर के जरिए कराने का फैसला किया है। इसका प्रदेश भर में विरोध हो रहा है। एक सरपंच का कहना था कि अगर उन्हें इस फैसले का पता होता तो वे चुनाव में इतना पैसा न लगाते। विरोधी पार्टी वादा कर रही है कि उसकी सरकार आने पर वह ऑनलाइन टेंडर सिस्टम समाप्त कर देगी।

गांव की आबादी एक हज़ार से बढ़ कर लगभग दो हज़ार हो चुकी है। अब ठहराव सा आ गया है। वर्तमान पीढ़ी में अधिकतर घरों  में दो से ज्यादा बच्चे नहीं हैं। लड़के ज्यादा पैदा हो रहे हैं, लड़कियां कम। युवाओं की शादी की बड़ी समस्या है। लड़कियां नहीं मिल रही।

गांव में जाता हूं तो लोग अक्सर यही कहते हैं कि उनके लड़के की नौकरी लगवा दो, उसकी शादी हो जायेगी। उनके पास अच्छी मेरिट नहीं है। मैं तैयारी करने की बात कहता हूं तो वे कुछ ले दे के सौदा कराने की बात कहने लगते हैं। वे मुझसे निराश होकर ही चले जाते हैं। भाई तो ये भी उलहाना दे देते हैं कि तूने अपने बच्चे भी तो नौकरी लगवाए हैं, हमारे क्यूं नही?

मेरिट में उनका यकीन नहीं है।

लोग मोदी के प्रशंसक हैं पर इस बार मुख्य मंत्री को हराने की बात करते हैं यह कह कर कि वह लोगों के काम नहीं करता। और काम एक ही है, बच्चों को नौकरी दिलाना।

मुख्य मंत्री करनाल से विधायक हैं और मेरा गांव निकटवर्ती विधानसभा क्षेत्र में आता है। सार्वजनिक काम काफी हुए हैं, पर लोगो की मुख्य समस्या तो पर्सनल है, रोजगार की।

मेरे गांव के सेन नाई ओबीसी वर्ग के अति गरीब परिवार के दो भाई निजी कंपनियों में मैनेजर हैं। विदेशों की यात्राएं करते हैं। काश ऐसी और कहानियां होती।

टमाटर की महंगाई का मेरे गांव में कोई जिक्र नहीं है। कहते हैं ये शहर वालों की प्रोब्लम है। वे कहते हैं इससे किसानों का फायदा ही है। अगले साल वे भी टमाटर लगाने की कह रहे हैं। दूध, अनाज, घी घर का है। घीया तोरी सब्जी भी लगा लेते हैं।

मेरा गांव बदल रहा है, बड़ी तेज़ी से।

उन्नत बीजों और ट्यूबवेल की सिंचाई के विस्तार से पैदावार कई गुना बढ़ी है पर जल स्तर गिरता जा रहा है।   रेत और मिट्टी की खदाने कृषि के भविष्य पर सवाल खड़े कर रही हैं। रसायनिक खाद और पेस्टीसाइड का उपयोग फूड चेन में आ चुका है। मेरे गांव में डायबिटीज के एक दर्जन से ज्यादा केस हैं। कैंसर के तीन मरीज़ हैं। इनमें एक मेरा अपना भाई है जिसका केस एडवांस स्टेज पर है।

आज़ादी के बाद गांव बदल गया है। समृद्धि आई है पर साथ ही बीमारी और बेरोजगारी भी बढ़ गई हैं। पहले कुछ न होते हुए भी संतोष था, आज बहुत कुछ होते हुए भी निराशा और असंतोष है। करीबन ऐसी ही स्थिति उत्तर भारत के अधिकतर गांवों की है।

पचास के दशक में मेरी याद के पहले स्वतंत्रता दिवस पर तत्कालीन सरपंच पंडित रामकिशन तिरंगा लेकर गांव की गलियों से घूमे थे और हम भारत माता की जय के नारे लगाते हुए गांव के भूमिया खेड़ा पर पहुंचे थे जहां झंडे को टांग दिया गया था। हमें कुछ पताशे मिले थे। भूमिया खेड़ा वह स्थान होता है जहां गांव बसाने के समय भूमि पूजन किया गया होता है। यह एक ग्राम देवता की तरह ही होता है। सभी शुभ कार्यों पर भूमिया खेड़े की पूजा की जाती है।

गांव में अब स्वतंत्रता दिवस तीन बड़े स्कूलों में धूमधाम से मनाया जाता है।

मेरे सभी ग्रामवासियों को स्वतंत्रता दिवस की बधाई। नए ज़माने की नई चुनौतियों का सामना अपने आप ही करना होगा। अवसरों की जानकारी लें, उनका लाभ उठाएं।  बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाएं, बुरी संगत व आदतों से खुद भी बचें और बच्चों को भी बचाएं।

आप सभी ग्रामवासियों के लिए स्वतंत्रता दिवस शुभ हो।

© श्री अजीत सिंह

पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन हिसार।

मो : 9466647037

(लेखक श्री अजीत सिंह हिसार से स्वतंत्र पत्रकार हैं । वे 2006 में दूरदर्शन केंद्र हिसार के समाचार निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए।)

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ संदर्भ – जश्न-ए-आज़ादी – गीत – “हमारा लोकतंत्र 🇮🇳” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

संदर्भ – जश्न-ए-आज़ादी – गीत – “हमारा लोकतंत्र 🇮🇳” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

हिम्मत, ताक़त, शौर्य विहँसते, तीन रंग हर्षाये हैं।

सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।।

क़ुर्बानी ने नग़मे गाये, आज़ादी का वंदन है।

ज़ज़्बातों की बगिया महकी, राष्ट्रधर्म -अभिनंदन है।।

सत्य, प्रेम और सद्भावों के, बादलतो नित छाये हैं ।

सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं ।।

ज्ञान और विज्ञान की गाथा, हमने अंतरिक्ष जीता।

सप्त दशक का सफ़र सुहाना, हर दिन है सुख में बीता।।

कला और साहित्य प्रगतिके, पैमाने तो भाये हैं ।

सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं ।।

शिक्षा और व्यापार मुदित हैं, उद्योगों की जय-जय है।

अर्थ व्यवस्था, रक्षा, सेना, मधुर-सुहानी इक लय है।।

गंगा-जमुनी तहज़ीबें हैं, विश्व गुरू कहलाये हैं ।

सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं ।।

जीवन हुआ सुवासित सबका, जन-गण-मन का गान है।

हमने जो पाया है उस पर, हम सबको अभिमान है।।

भगतसिंह, आज़ाद, राजगुरु, विजयगान मेंआये हैं ।

सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं ।।

चारों ओर उजाला बिखरा, अँधियारा बस्ती छोड़ा।

खुशहाली ने नगर-गाँव को, अपना तो अब मुँह मोड़ा।।

सूर्यदेव तो रोज़ाना ही, नव मुस्कानें लाये हैं।

सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं ।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 126 ⇒ श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा”।)  

? अभी अभी # 126 ⇒ श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा ?श्री प्रदीप शर्मा  ? 

 

श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान को तो खैर, आज भी बच्चा बच्चा जानता है, लेकिन तारकेश्वरी सिन्हा नाम कुछ सुना सुना सा लगता है। देश की आजादी के पश्चात् पहली लोकसभा (१९५२) की बिहार से लोकसभा की सदस्या थी श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा। जन्म 26 दिसंबर 1926 अवसान 14 अगस्त 2007।

 एक भारतीय राजनीतिज्ञ एवं भारत छोड़ो आंदोलन की सक्रिय सदस्या।

जो आवाजें कई वर्षों तक संसद में गूंजी, इस नई संसद में उनकी सिर्फ यादें ही बाकी रह जाएंगी। जिस तरह परिवार में पुराने सदस्यों की चर्चा होती है, उम्मीद नहीं, कभी आज की संसद में इन भूले बिसरे चेहरों की कभी चर्चा भी हो पाएगी।।

१४ अगस्त श्रीमति तारकेश्वरी की पुण्यतिथि भी है, मौका भी है और दस्तूर भी, इस अवसर पर उन्हें सिर्फ याद ही किया जा सकता है।

वे केवल सोलह वर्ष की अवस्था में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुई, और केवल २६ वर्ष की उम्र में बिहार से १९५२ का लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद में उनका पदार्पण हुआ। लगातार सन् १९५७, १९६२ और १९६७ तक वे लोकसभा की सदस्या रही लेकिन १९७१ में वे चुनाव हार गई। ।

वे एक झुहारू राजनेता थी। बॉब कट बाल और स्लीवलेस ब्लाउज पहने वह बेबी ऑफ हाउस, ग्लैमर गर्ल ऑफ इंडियन पार्लियामेंट, और ब्यूटी विद ब्रेन जैसे विशेषण से नवाजी जाने वाली श्रीमती सिन्हा नेहरूजी के पहले मंत्रिमंडल में भी वित्त राज्य मंत्री के रूप में शामिल थी। मोरारजी देसाई तब देश के वित्त मंत्री थे। वे सुंदरता में इंदिरा जी से उन्नीस नहीं थी और इंदिरा जी फिरोज गांधी को लेकर बहुत पजेसिव थी। जहां भी ब्यूटी विद ब्रेन होगा, वहां सहज आकर्षण तो होगा ही। शायद इसीलिए तारकेश्वरी सिन्हा कभी इंदिरा जी की पसंद नहीं रही।

संसद की बहस में तब तारकेश्वरी सिन्हा के शेर गूंजा करते थे। लोहिया हों या स्व. अटल बिहारी बाजपेई, तब की नोंक झोंक, विट, ह्यूमर और शालीनता की तुलना आज के माहौल से नहीं की जा सकती। ।

सन् १९७१ का चुनाव तारकेश्वरी सिन्हा हार गई, क्योंकि इंदिरा लहर में वे कांग्रेस के खिलाफ कांग्रेस (old) के टिकट से चुनाव लड़ी थी। विनाश काले विपरीत बुद्धि के कारण में वे भी इंदिरा जी के साथ हो गई और साथ साथ सन् 1977 का चुनाव भी हार गई और उनका राजनैतिक कैरियर हमेशा के लिए समाप्त हो गया।

राजनीति में ग्लैमर भी जरूरी है, इसीलिए फिल्मी सितारों की राजनीति में प्रविष्टि हुई। संसद में नर्गिस, सुनील दत्त, दिलीप कुमार, विनोद खन्ना और बाद में तो क्रिकेट खिलाड़ी और धर्मेंद्र, हेमा और सनी तीनों ही लोकसभा में चले आए। उधर जया और जयाप्रदा तो इधर भोजपुरी अभिनेताओं की तिकड़ी। ।

अस्त होते सूरज को कौन नमन करता है। गुमनामी का जीवन गुजारती श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा वर्ष 2007 में आज ही के दिन, चुपचाप इस संसार से रुखसत हो गई।

अनायास ही १४ अगस्त को उनकी याद आ गई, उन्हें सादर श्रद्धांजलि ..!!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 47 – देश-परदेश – समोसा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 47 ☆ देश-परदेश – समोसा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

बचपन में हमारे शहर में “मौसा के समोसे” बहुत प्रसिद्ध होते थे। साठ के दशक के मध्य में दस पैसे का समोसा क्रय करने के लिए मित्र से भागीदारी में इसका बटवारां थोड़ा कठिन होता था। इसकी बनावट तिकोनी होने के कारण हलवाई से ही इसके दो टुकड़े कर मित्र से भागीदारी पूरी हो जाती थी।

उपरोक्त चित्र एक “बाहुबली समोसे” का है। इसका वज़न मात्र आठ किलो हैं। इसका निर्माण मेरठ शहर में हुआ हैं। इसे विश्व का सबसे वजनी समोसा होने का गौरव प्राप्त हुआ हैं।

कुछ हट के करने की दौड़ में जयपुर में एक विक्रेता ने अपना नाम ही “ठग्गू के समोसे” रख लिया हैं। पुरानी कहावत है, जैसा नाम वैसा ही काम! झूट/ठग्गी का जीवन भी छोटा होता हैं, जब उन्होंने अपने नाम को ही अपना काम बना लिया, तो भगवान ( ग्राहक) ने भी उनका साथ नहीं दिया।

“स्वीगी” जो देश के सबसे बड़े खाद्य दूत की श्रेणी में आते है, ने भी समोसे को सबसे अधिक बिकने वाला खाद्य घोषित किया हैं। उनको मिलने वाले ऑर्डर में हर पांचवा ऑर्डर समोसे का ही रहता हैं।

देश के पूर्वी भाग में इसकी बनावट से मिलते जुलते फल सिंगाढ़ा के नाम से जाना जाता हैं। पश्चिमी भाग में इसको “पंजाबी समोसा” कह कर ग्रहण किया जाता हैं। वैसे वडा पाव में वड़े के स्थान पर भी यदा कदा समोसे को स्थान दे दिया जाता हैं। देश के उत्तर और मध्य भाग में तो समोसा ही राजा हैं।

मांसाहारी भोजन के शौकीन भी समोसे में आलू के स्थान पर कीमा के समोसे का आनंद लेते हैं। वैसे, समोसा हर  मोसम में खाया जाता हैं, परंतु शीत ऋतु में इनका पाचन सरल होता हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “गर्जा जयजयकार…🇮🇳” ☆ सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “गर्जा जयजयकार…🇮🇳” ☆  सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे  ☆

स्वातंत्र्याच्या यशस्वितेचा गर्जा जयजयकार 🇮🇳

लोक हो … गर्जा जयजयकार …

                 आम्हीच आता राजे म्हणुनी

                 स्वातंत्र्याला उधाण येऊनी

                 जन्मे स्वैराचार …

                 गर्जा जयजयकार ….

बासनात ते नियम, कायदे

रोजरोजचे नवे वायदे

जनतेवर उपकार …

गर्जा जयजयकार ….

                  चोर स्वतःला साव म्हणविती

                  उघड्या माथी जनी मिरविती

                  सत्ता दे हुंकार …

                  गर्जा जयजयकार ….

जनसेवेचे बेगडी सोंग

सत्कार्याचे नुसते ढोंग

मनी पुरता कुविचार …

गर्जा जयजयकार ….

                    भ्रष्टाचारा पूरच येता

                    मातेला अन गिळू पहाता

                    कुठे न हाहा:कार …

                    गर्जा जयजयकार ….

पुंडशाहीचा जोर वाढता

देशाला या विकू पहाता

आत्म्याचा जोहार …

गर्जा जयजयकार ….

                     जनतेनेही बरे म्हणावे

                     आपल्यापुरते आपण पहावे

                     इतरांचा न विचार …

                       गर्जा जयजयकार ….

दिसतो झगमग थाटमाट वरी

भारतभूच्या मनी दाटे परी

निराश अंध:कार …

गर्जा जयजयकार ….

                        जुलमाची ही राष्ट्रवंदना

                        राष्ट्राची परि तमा कुणा ना

                        हाच नवा संस्कार …

                        गर्जा जयजयकार ….

असले भीषण जरी हे चित्र

स्वप्न मनोमनी तरळे मात्र

होईल कृष्णावतार …

फिरुनी होईल कृष्णावतार

                            गर्जा जयजयकार …

                                  लोक हो गर्जा जयजयकार ……

©  सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ 🇮🇳 तिरंगा 🇮🇳 ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

☆ 🇮🇳 तिरंगा 🇮🇳 ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

तीन रंगात फडकत राहील,

 माझ्या देशाचा सन्मान !

आकाशातून विहरत जगभर जाई,

 भारताचा अभिमान !

 

केशरी, पांढरा, अन् हिरवा  

रंगध्वजाचे येत क्रमाने.!

वैराग्याला प्रथम स्थान ते…  

दिलेअसे देशाने!

 

पावित्र्य जयाचे दावून सर्वा,

शुभ्र पांढरा मध्ये असे!

हिरव्या रंगाने ती अपुली,

सस्यशामल भूमी दिसे. !

 

विजयचक्र हे मधोमध दावी

‘विजयी भव’ चे रूप सर्वा!

चक्रा वरच्या आऱ्या दाखवती,

देशभक्तांच्या शौर्या!

 

उंच लहरता तिरंगा अपुला,

स्वातंत्र्याची ग्वाही देतसे!

दरवर्षी नव जोशाने हा,

स्वातंत्र्यनभी फडकतसे!

 

गर्वाने आम्ही पुजितो,

जो देशाचा मानबिंदू खरा!

त्याच्या छत्राखाली  भोगतो,

स्वातंत्र्याचा रंग हा न्यारा!

 

स्वातंत्र्य दिन असो

वा प्रजासत्ताक दिन असो!

आमचा तिरंगा ,

फडकत राहील!

 

या तिरंग्याच्या,

रक्षणासाठी!

प्रत्येक बांधव,

सज्ज राहील!

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ वीर जवान 🇮🇳 ☆ सौ.वनिता संभाजी जांगळे ☆

सौ.वनिता संभाजी जांगळे

?  कवितेचा उत्सव ?

☆ वीर जवान 🇮🇳 ☆ सौ. वनिता संभाजी जांगळे ☆

सळसळते वर्दीच्या आत

ते रक्त वीरतेचे

देशसेवा प्रण घेतलेल्या

त्या वीर जवानाचे

 

वर्दीत झाकलेली ती

छाती अभिमानी असते

या मायभूचे रक्षण करता

भय मृत्यूचेही नसते

 

ऊंच फडफडत्या तिरंग्या

आहे बलिदान जवानांचे

प्राणास घालुनी आण

घेतले प्रण विरतेचे

 

वीर ऐसे जन्मा आले

थोर भाग्य मायभूचे

विरांच्या या भूमी वरती

थरथरती पाय शत्रूचे

 

जय जवान जय किसान

नुसतेच देतो नारे

निद्रिस्त झालो आम्ही

वीरास कुणी जाणिले

 

सीमेवर भारतभुच्या

शत्रूचे तुफान येते

रूप मर्द मावळ्यांचेच

ये वीर जवानाते

 

‘जय जवान जय किसान’ चे

नुसतेच नकोत नारे

 होऊनी जागृत आता

वीरांस यां जाणा रे

© सौ.वनिता संभाजी जांगळे

जांभुळवाडी-पेठ, ता. – वाळवा, जिल्हा – सांगली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #201 ☆ ‘सोनचाफा…’ ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 201 ?

☆ सोनचाफा… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

भाळण्याचे हे तुझेही वय कुठे

शीळ मीही घालतो पण लय कुठे

 

सोनचाफा यायची तू माळुनी

विसर म्हणता विसरते ती सय कुठे

 

सोडुनी आलीस सारी बंधने

सांग तू केली कुणाची गय कुठे

 

अमृताचा लाव ओठी तू घडा

गार करते पाजुनी मज पय कुठे

 

तीच आहे आत अजुनी भावना

भावनेला सांग होतो क्षय कुठे

 

तोडल्या केव्हाच आपण शृंखला

राहिले आता जगाचे भय कुठे

 

वागलो तेव्हा जरी हटके जरा

सोडला आजून आपण नय कुठे

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ स्वातंत्र्य 🇮🇳 ☆ सौ. विद्या पराडकर ☆

सौ. विद्या पराडकर

🌳 विविधा 🌳

☆ स्वातंत्र्य 🇮🇳 ☆ सौ. विद्या पराडकर ☆

भारताचा स्वातंत्र्य दिन चिरायू होवो!💐 

स्वातंत्र्याच्या ‌निर्मात्यांना आमुचे लाख प्रणाम💐

 

७६‌ वर्षे झालीत

पण  स्वातंत्र्य मिळाले कुणाला?🌸

या देशातील सामान्य नागरिक

 स्वातंत्र्यापासून वंचितच राहिला ☘️

 

स्वातंत्र्य वीरांच्या बलिदानाचा पायावर

ज्यांनी आपल्या इमारती‌ बांधल्या

त्यांना स्वातंत्र्य उपभोगण्यास मिळाले

बाकीचे मात्र कोरडेच राहिले.🌸

 

स्वातंत्र्य सूर्याची किरणे शिरली

मोठमोठ्या बंगल्यात, महालात

पण झोपड्या अन् घरे मात्र

राहिलीत नेहमीच अंधारात 🌸

 

आपण सारे हिंदुस्तान निवासी

म्हणतात सारे तोंडाने

स्वार्थापोटी ‌हेच निवासी

हेच निवासी एकमेकांचे शत्रू होतात

कृतीने

या देशात आहे निस्वार्थी

म्हणून च‌ इतरांचा स्वार्थ साधतो

देशभक्त आहेत

म्हणूनच देशद्रोही सुखी आहेत.☘️

 

स्वातंत्र्य, समता, बंधुता

सारे काही सोंग आहे

स्वतंत्रतेच्या मात्र पायात

विषमतेची श्रुंखलाआहे☘️

 

खरी लोकशाही आहे अर्थहीन

सुरु आहे बेबंदशाही चे थैमान

चंगळ वादाला आला बहर

पतन होते लोकशाहीचे, नागरिकांचे

सर्व राजकीय पक्षांचे🌸

 

करण्या यशस्वी लोकशाही

घ्या हो शपथ राष्ट्रीय एकात्मतेची

होळी करा हो सत्तांध भावनेची

स्वातंत्र्याचा अखंड दीप गवसेल तेव्हा 🌸

© सौ. विद्या पराडकर

वारजे  पुणे.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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