हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – “मानवता सबसे बड़ा धर्म” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – “मानवता सबसे बड़ा धर्म” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

मानवता को जब मानोगे, तब जीने का मान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

जाति-पाँति में क्या रक्खा है, ये बेमानी बातें हैं।

मानव-मानव एक बराबर, ऊँचनीच सब घातें हैं।।

नित बराबरी को अपनाना, यह प्रभु का जयगान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बल

पेट है भूखा,तो दे रोटी, दे सर्दी में कम्बल

अंतर्मन में है करुणा तो,मानव गुण की खान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

धन-दौलत मत करो इकट्ठा, कुछ नहिं पाओगे

जब आएगा तुम्हें बुलावा, तुम पछताओगे

हमको निज कर्त्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता नित यशगान है।।

 

शानोशौकत नहीं काम की, चमक-दमक में क्या रक्खा

वही जानता सेवा का फल, जिसने है इसको चक्खा

देव नहीं,मानव कहलाऊँ, यही आज अरमान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

जीवन का तो अर्थ प्यार है, अपनेपन का गहना है।

वह ही तो नित शोभित होता, जिसने इसको पहना है।।

जो जीवन को नहिं पहचाना, वह मानव अनजान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्य की दुनिया ☆ प्रस्तुति – श्री कमलेश भारतीय ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्य की दुनिया – श्री कमलेश भारतीय  🌹

(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)

☆ माधव कौशिक साहित्य अकादमी अध्यक्ष

यह हमारे लिये बड़े गौरव व खुशी की बात है कि माधव कौशिक देश की साहित्य अकादमी के अध्यक्ष बने । वे मूलतः हरियाणा की छोटी काशी कहे जाने वाले भिवानी से संबंध रखते हैं और काफी समय से चंडीगढ़ ही रहते हैं । एक सशक्त साहित्यकार और हरियाणा साहित्य अकादमी से अनेक बार पुरस्कृत । चंडीगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी हैं । पहले वे काफी वर्षों से साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे । अब वे विधिवत साहित्य अकादमी के अध्यक्ष बन गये । हमारी ओर से बधाई ।

कुरूक्षेत्र में ओमप्रकाश ग्रेवाल को याद किया : कुरूक्षेत्र के कैलाश नगर स्थित डॉ.ओम प्रकाश ग्रेवाल अध्ययन संस्थान द्वारा एक ऐतिहासिक महत्व का अविस्मरणीय व्याख्यान करवाया गया जिसका विषय था – ‘ देश विभाजन : तब और अब’ व्याख्यान देने के लिए विख्यात विद्वान, देश और दुनिया की अनेक सर्वोत्तम उच्च शिक्षा संस्थाओं में रहे वर्तमान में अमेरिका की ओहायो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ. अमृतजीत सिंह विशेष रुप से कुरुक्षेत्र आमंत्रित थे । अमृतजीत सिंह कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और डॉ. ग्रेवाल के विद्यार्थी रहे हैं । उन्होंने डॉ ग्रेवाल के साथ अपनी बहुत सी स्मृतियों को साझा किया। व्याख्यान शुरू करते हुए उन्होंने बताया कि सन् 1947 में देश की आजादी के साथ विभाजन की त्रासदी भी घटित हुई। इस समय हुए दंगे-फसादों में दस लाख से ऊपर निरपराध लोग मारे गए और एक करोड़ से ऊपर विस्थापित हुए । उस समय के दर्दनाक वृत्तांत बहुत हैं जिनमें हिंसा और नफरत है लेकिन उतने ही किस्से मोहब्बत, इन्सानियत, एक-दूसरे की हिफाज़त करने के भी हैं ।

डॉ सिंह ने कहा कि विभाजन दिल और दिमाग में जब तक खत्म नहीं होता तब तक यह निरंतर चलता रहेगा । उन्होंने कहा विभाजन 1984 में भी हुआ था 1994 में भी हुआ था 2002 में भी हुआ था और दिलों में तो यह अब भी जारी है। भीष्म साहनी और पाकिस्तानी लेखक इंतजार हुसैन के साहित्य का उदाहरण देकर उन्होंने विभाजन को खत्म करने के लिए कुछ सूत्र दिए । हमें नए सिरे से बेहतर भविष्य बनाने के लिए काम करना पड़ेगा उन्होंने बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए कहा कि वह देश आर्थिक व्यवस्था में हमसे बेहतर काम कर रहा है क्योंकि उसने विभाजन की राजनीति को छोड़ दिया है ।

बहस में सुरेन्द्र पाल सिंह ने लखविंदर पाल सिंह ग्रेवाल, प्रिंसिपल सहेमराज शर्मा, ओम सिंह अशफ़ाक, डॉ.टी.आर.कुण्डू, डॉ.दिनेश दधीचि, डॉ. रामेश्वर दास,दीपक वोहरा, विकास शर्मा,शशि प्रकाश,सुशील, डॉ. रविन्द्र गासो,मुरथल यूनिवर्सिटी से जसमिन्द्र,राहुल मलिक आदि ने गंभीर प्रश्न खड़े किए ।

इंडिया नेटबुक्स सम्मान : नोएडा में इंडिया नेटबुक्स के संचालक डाॅ संजीव कुमार ने पिछले रविवार लेखकों को सम्मानित प्रदान किये । सर्वोच्च सम्मान वरिष्ठ लेखिका चित्रा मुद्गलप्रताप सहगल को प्रदान किया गया । इनके अतिरिक्त देश भर से पचपन लेखकों /संपादकों को सम्मानित किया गया जिसमें जनसत्ता के संपादक मुकेश भारद्वाज उल्लेखनीय हैं । किसी भी प्रकाशन संस्थान द्वारा लेखकों को सम्मानित करना एक अच्छी परंपरा है जिसे संजीव कुमार निभा रहे हैं । इनके साथ डाॅ प्रेम जनमेजय भी एक सलाहकार की तरह जुटे हैं । पंजाब , चंडीगढ़ से लेकर छत्तीसगढ़, राजस्थान तक से लेखक इसमें भाग लेने आये । भव्य समारोह के लिए डाॅ संजीव कुमार को बधाई । पर सम्मान के लिए इतनी लम्बी सूची थोड़ी कम की जानी चाहिए जिससे इनकी गरिमा बनी रह सके ।

हिसार मे रंग आंगन नाट्योत्सव : हिसार में पिछले नौ वर्ष से रंगकर्मी मनीष जोशी अभिनय रंगमंच की ओर से रंग आंगन नाट्योत्सव का आयोजन करते हैं । इस फिर भी दस से सत्रह मार्च तक यह नाट्योत्सव आयोजित किया गया । इसमें मुम्बई से प्रसिद्ध एक्टर राजेंद्र गुप्ता और हिमानी शिवपुरी अपने नाटक -जीना इसी का नाम है के साथ हिसार आये । तुलसी सभागार में इसका प्रभावशाली मंचन हुआ । दोनों कलाकार बाद में बाल भवन में लोगों से खूब सहजता से मिले और नाटक भी देखा । इस नाट्योत्सव में असम , दिल्ली , पंजाब व हरियाणा से अनेक नाट्य दल अपनी नयी प्रस्तुतियां मंचित करने आये । इसमें एक दिन बच्चों के लिये कठपुतली शो भी रखा जाता है और प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना राखी जोशी भी अपनी छात्राओं को साथ एक शो देती हैं । इस नाट्योत्सव का अब हर साल हिसारवासियों को बेसब्री से इंतजार रहता है ।

दिल्ली में नट सम्राट : दिल्ली की नाट्य संस्था नट सम्राट के संस्थापक व रंगकर्मी श्याम कुमार ने नट सम्राट नाट्योत्सव का आयोजन किया । इसमें एक दर्जन साहित्यकारों व रंगकर्मियों को नट सम्राट सम्मान प्रदान किये गये जिनमें क्रिटिक अवाॅर्ड मुझे भी मिला । ये नाट्य संस्थायें नाटक की मशाल को जलाये हुए हैं
इसके लिये इनके जज्बे को सलाम ।

चित्रा मुद्गल और शशि पुरवार को सम्मान : मुम्बई निवासी सशक्त रचनाकार शशि पुरवार को महाराष्ट्र साहित्य अकादमी की ओर से नभदेव सम्मान दिये जाने की घोषणा हुई है । इसी अकादमी ने चित्रा मुद्गल को सर्वोच्च सम्मान देने की घोषणा भी की है ।

साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क – 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ आरती गंगेची… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

श्री शरद कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ आरती गंगेची… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

किती प्रवाह घेउनी ,

गंगा वाहते प्रवाही.

ओढ द्वैताची तरीही ,

देत अद्वैताची ग्वाही.

 

पात्रं अथांग अतर्क्य ,

डोह खोल खोल.

सुखदुःखाच्या काठाचे,

नदी सांभाळते तोल.

 

लावू निरांजनी ज्योत ,

पेटवून प्राण दीप.

करु आरती गंगेची ,

पैलतीराच्या समीप.

 

© श्री शरद  कुलकर्णी

मिरज

(हरिद्वार मुक्काम)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भाग्यवान मी… ☆ श्री विनायक कुलकर्णी ☆

श्री विनायक कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ? 

☆ भाग्यवान मी… ☆ श्री विनायक कुलकर्णी ☆ 

उगा काळजी करीत असते

आई माझी भोळी आहे

आले संकट घालवण्याला

रामबाण ही गोळी आहे

भाग्यवान मी तनय जाहलो

तुडुंब माझी झोळी आहे

बांधले तिने घर नात्यांनी

कुटुंब प्रेमळ मोळी आहे

© श्री विनायक कुलकर्णी

मो – 8600081092

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “जागतिक ग्राहक दिन…” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सौ कल्याणी केळकर बापट

? विविधा ?

☆ “जागतिक ग्राहक दिन…” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

(15 मार्च- निमित्ताने)

आपल्या रोजच्या जीवनात अनेक व्यवहारिक गोष्टींना सामोरे जावे लागते. तो व्यवहार बघतांना कधी आपला आर्थिक संबंध येतो तर कधीकधी परिचयातून व्यवहारात भावनिकता पण येते. कधी आपण ग्राहक असतो तर कधी विक्रेता. अर्थातच प्रत्येक व्यक्ती कुठल्या ना कुठल्या व्यवहारात ग्राहकाची भुमिका निभावतेच.

आपल्याला आपल्या मुलभूत हक्काच्या गोष्टी आपसूकच मिळाल्या तर आपण नशीबवान ह्या सदरात मोडतो असं समजावं परंतु जर आपल्याला आपल्या हक्काच्या मुलभूत, जीवनावश्यक, अर्थातच नियमांना धरून जर पुरवठा झाला नाही तर प्रत्येकाने त्यासाठी लढायची,आपले हक्क मिळवायची तयारी ही ठेवलीच पाहिजे. कारण अन्याय करणाऱ्या इतकाच तो सहन करणाराही दोषी असतो हे विसरून चालणार नाही.

त्यामुळे आपल्याला आपल्याच हक्काच्या गोष्टी मिळतांना वा गरजेनुसार गोष्टी विकत घेतांना आपली कुठे फसगत तर होत नाही नां ह्याकडे अत्यंत डोळसपणे,जागरुकतेने प्रत्येकाने बघण्याचीच खरी गरज आहे म्हणून “जागो ग्राहक जागो” ह्या घोषवाक्याची आज 15 मार्च ह्या आंतरराष्ट्रीय ग्राहक दिनाच्या दिवशी हटकून आठवण ही येतेच.

15 मार्च हा दिवस “आंतरराष्ट्रीय ग्राहक दिन”म्हणून ओळखल्या जातो.15 मार्च 1962 साली अमेरीकेचे राष्ट्राध्यक्ष केनेडी ह्यांनी ग्राहकांसाठीच्या हक्कांची सनद त्यांच्या भाषणात मांडली.ते हक्क पुढीलप्रमाणे आहेत.

1 सुरक्षेचा हक्क,2 माहिती मिळविण्याचा हक्क,3 निवड करण्याचा हक्क,4 मत मांडण्याचा हक्क,5 तक्रार आणि निवारण करण्याचा हक्क,6 ग्राहक हक्काच्या शिक्षणाचा हक्क.

दुर्दैवाने आपल्याकडील ग्राहकच अनभिज्ञ राहून ह्या विषयाची माहिती करून घेण्याच्या बाबतीत उदासीन असतो.कितीही जाहीरातीत “जागो ग्राहक जागो”हे घसा फोडून सांगितल्या गेले तरी शेवटी “पालथ्या घड्यावर पाणी”असो.

अनेकदा खरेदी करतांना किंवा सेवेच्या बाबतीत त्याचा वापर करतांना ग्राहकांचे अनेक गोष्टींकडे असलेले दुर्लक्ष, माहितीचा अभाव हे विक्रेत्यांच्या पथ्थ्यावर पडते.ग्राहक ह्या नात्यानं मिळालेल्या अधिकारांचा वापर आपण अतिशय जागरूकतेनं केला तर हे अधिकारच आपल्याला जागरूक ग्राहक म्हणून तयार करतील. सरकार कडूनही ग्राहकांच्या जनजागृती साठी वेळोवेळी आवश्यक ती माहिती पुरविली जाते.उदा.फसवणूक झाली तर तक्रार कोठे करावी, फसवणूक करणाऱ्या संबंधित व्यक्तीला आपण धडा कसा शिकवू शकतो,त्यानंतर नुकसानभरपाई कशी मिळवू शकतो ह्याची माहिती ग्राहक सेवेअंतर्गत आपल्याला मिळते.ग्राहक संरक्षण कायदा 1986 नुसार ग्राहकांना वस्तू निवडणे, वस्तुचे गुणवत्ता प्रमाण आणि दर्जा तपासून घेण्याचा अधिकार आहे.ग्याहकांची फसवणूक रोखण्यासाठी जिल्हा ग्राहक मंच,ग्राहक न्यायालय आणि जिल्हा तक्रार निवारण प्रणाली राज्य आणि राष्ट्रीय पातळीवर कार्य करते.

ग्राहक आणि विक्रेते ह्यांच नातं खरतरं पोळपाट आणि लाटण्यासारखं असतं.दोन्हीही व्यवस्थित असल्यासच पोळी नीट लाटली जाणार बघा.

आमच्या बँकींग सेक्टर मध्ये तर “ग्राहक देवो भवः “हे वाक्य जणू आमचे ब्रीदवाक्य समजल्या जातं.सध्या तर बँकींग सेक्टर मधील वाढत्या स्पर्धेमुळे आणि कोरोनाने आलेल्या आर्थिक गंडांतरामुळे आम्हाला एक एक ग्राहक जोडून ठेवावा लागतो.सध्याच्या बँकींग सेक्टर वरील विश्वास नाहीसा होण्याच्या काळात आपल्या ग्राहकांचा विश्वास ढळू न देण्याचं आव्हानात्मक काम आम्हाला जिकरीनं करावं लागतं.

तर अशा ह्या ” जागतिक ग्राहक दिनी” ग्राहकांच्या हक्कांची,सुरक्षेची,अधिकारांची पायमल्ली  कधीच होऊ नये हीच मनोकामना.

©  सौ.कल्याणी केळकर बापट

9604947256

बडनेरा, अमरावती

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ मळभ – भाग 2 ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

? जीवनरंग ❤️

☆ मळभ – भाग 2 ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

(मागील भागात आपण पाहिले, – सौमित्र कॅनडाला रवाना झाला. वेळ मिळेल तसा फोन, व्हिडिओ कॉलवरून सावनी आणि नुपुरची खबरबात घेऊ लागला. आता इथून पुढे)

तीन महिने झाले की सावनी आणि नुपुर मुंबईला येणार होत्या. तिचा भाऊ आणि आई-बाबा  येणार होते पोचवायला. इकडचे आजी-आजोबा पण नातीच्या आगमनाच्या तयारीत गुंतले होते. पण त्याआधीच दोन दिवस फोन आला सौमित्रच्या  बाबांना. सावनीच्या बाबांनी त्यांना ‘तुम्ही लवकरात लवकर इकडे या, सावनीची तब्येत खूप बिघडली आहे. बाकी इकडे आल्यावर सांगतो. ‘ असं म्हणून फोन ठेवला. तात्काळद्वारे  रिझर्वेशन करून सौमित्रचे आई-बाबा दुसर्‍या दिवशी सकाळी रतलामला पोचले.

काय आहे ते बघून मग सौमित्रला  कळवू, असं त्यांना वाटलं पण ते तिथे पोचले तेव्हा सावनी घरी नव्हतीच. तिचे आई-वडील डोक्याला हात लावून बसले होते. काही न बोलता त्यांनी सौमित्रच्या बाबांच्या हातात एक चिठ्ठी दिली. ती सावनीची होती. ‘ मला डान्समध्येच करिअर करायचं आहे. त्यासाठी मी घर सोडून सुमंतकडे चालले आहे.’ चिठ्ठी वाचून सौमित्रचे बाबा एकदम खालीच कोसळले. सौमित्रच्या आईदेखील हतबुद्ध झाली. डाॅक्टरना बोलावलं, त्यांनी हार्ट अ‍ॅटॅकचं निदान करून सौमित्रच्या बाबांना हॉस्पिटलमध्ये दाखल करायला सांगितलं. सौमित्रला हे कळवणं भागच होतं. रजा घेऊन आणि तिकिट मिळवून दोन दिवसांनी तो रतलामला पोचला. त्याचा मित्र सलील त्याच्याबरोबर आला होता.तोच या सगळ्यांना मुंबईला परत घेऊन आला.

बाळाच्या अंघोळीसाठी बाई येणारच होती. थोडी खटपट करून स्वैपाकालाही बाई मिळाली. या धक्क्यातून सावरून नुपुरकडे दिवसभर बघणं, शिवाय बाबांचं पथ्य-पाणी, औषध हे सर्व सांभाळणं सौमित्रच्या आईसाठी खूपच अवघड काम होतं. पण या परिस्थितीत ते निभावणं भागच होतं. सौमित्रलाही हा आघात पचवणं सोपं नव्हतं. त्याची मनःस्थिती पार बिघडून गेली होती. त्यानं कंपनीकडे महिनाभर रजेसाठी अर्ज केला. कंपनीला कॅनडात त्याच्या जागी दुसर्‍या माणसाची नेमणूक करावी लागली. त्यामुळे कंपनीने त्याची रजा मंजूर केली पण प्रमोशन रद्द केलं.  नुपुरसाठी वेळ देता यावा म्हणून सौमित्रने इतरत्र नोकरी शोधायला सुरुवात केली. सात-आठ महिन्यांनंतर त्याला तशी नोकरी मिळाली. आठवड्यातून एक दिवस ऑफिस आणि बाकी घरून काम. त्यामुळे आईलाही थोडी स्वस्थता मिळाली.

पण दैव माणसाची सत्त्वपरीक्षाच घेत असतं. सौमित्रच्या आईला ब्रेस्ट कॅन्सर झाला. त्यांची ट्रिटमेंट सुरू झाली. नुपुरला पाळणाघरात ठेवायची वेळ आली. पण तिची तब्येत खूप नाजूक होती. ती वारंवार आजारी पडायची.मग तिच्यासाठी काही दिवस घरी बाई ठेवली.

सौमित्रची खूपच ओढाताण होत होती. मित्रांनी, नातेवाईकांनी दुसर्‍या लग्नाचा सल्ला दिला. पण आधीच्या कटू अनुभवामुळे त्याचं मन या गोष्टीला तयारच होत नव्हतं. शिवाय नुपुरला तो तळहाताच्या फोडासारखं जपत होता. तिला सावत्रपणाचा त्रास झाला, तर त्याला ते अजिबात सहन झालं नसतं.

सौमित्र आत्ताशी बत्तीस वर्षांचा होता. त्यानं एकट्यानं उभं आयुष्य काढावं हे त्याच्या आई-बाबांना देखील पटत नव्हतं.

‘सगळीच माणसं वाईट नसतात रे! शिवाय आम्ही थोडेच तुझ्या आयुष्याला पुरणार? आमच्या तब्येती या अशा! नुपुरलाही आईची गरज आहेच.’ असं हरप्रकारे समजावून त्यांनी त्याला परत लग्न करायला तयार केलं.

मिथिलाचं स्थळ सलीलनं, त्याच्या मित्रानं सुचवलं.

मिथिला त्यांच्याच एका मित्राची चुलत बहीण. बी. कॉम. झाली आणि लग्न ठरलं. एकुलता एक मुलगा इंजिनिअर, अमेरिकेत नोकरीला. आई-वडील पुण्यात. एका मध्यस्थामार्फत माहिती कळली, नाव ठेवण्यासारखं काही नव्हतंच. पण लग्नानंतर सहा महिन्यांनी अमेरिकेला पोचल्यावर खरी परिस्थिती उघड झाली. तो आपल्या मैत्रिणीबरोबर रहात होता आणि त्यांना एक मुलगाही होता. मिथिला भारतात परतली आणि दोन वर्षांपूर्वी तिचा घटस्फोट झाला. सध्या ती घरीच ट्यूशन्स घेत होती. तिचे आई – वडीलही तिनं दुसरं लग्न करावं म्हणून प्रयत्नशील होते.

सलीलकडून एकमेकांची पूर्ण हकिकत दोघांना कळली होती. त्यानंतर अनेकदा फोनवर बोलून आणि प्रत्यक्ष भेटून सौमित्र आणि मिथिलानं लग्न करण्याचा निर्णय घेतला. मिथिलानं नुपुरला पोटच्या पोरीसारखंच वाढवलं. आईशिवाय तिचं पानच हलत नव्हतं. ती नुपुरची सख्खी आई नाही हे सांगूनही कोणाला पटलं नसतं. आई-बाबांचंसुद्धा ती प्रेमानं करत होती. सौमित्र आणि ती एकमेकांना समजून वागत होते.

आणि आता हा बाॅम्ब येऊन आदळला होता. 

सावनी सुमंतकडे पुण्यात निघून गेली. त्यानं मुंबईतून आपलं बस्तान पुण्यात हलवलं होतं. मुंबईत कार्यक्रमाच्या आणि  सरावाच्या निमित्ताने त्यांना एकमेकांचा सहवास घडला होता आणि जवळीक निर्माण झाली होती. तिचं नृत्यातलं आणि शिकवण्याचं कौशल्य त्यानं जवळून पाहिलं होतं. त्याच्या क्लासमध्ये मुलींना शिकवायला घरचीच आणि नृत्यनिपुण शिक्षिका मिळणार होती. सौमित्रशी घटस्फोट झाल्यावर त्यांनी लग्न केलं. पण आपल्या या व्यवसायात अडथळा नको, म्हणून काही वर्ष मूल होऊ द्यायचं नाही, यासाठी त्यांनी खबरदारी घेतली.

सहा-सात वर्षांत त्यांनी पुण्यात चांगलाच जम बसवला. पण सततच्या गर्भनिरोधक औषधांचा सावनीच्या गर्भाशयावर अनिष्ट परिणाम झाला होता. उपाय चालू होते, पण तिला मूल होणं अवघड होतं. काळ पुढे सरकत राहिला. नंतर आलेल्या कोरोनानं सगळं चित्रच पालटून टाकलं. दोन वर्षांत होत्याचं नव्हतं झालं. क्लास बंद ठेवावा लागला. ऑनलाईन क्लासमधून जेमतेमच पैसा मिळत होता. अशात कोविडनं सुमंतचा बळी घेतला. त्याच्या उपचारासाठी होती-नव्हती ती सर्व शिल्लक खर्च झाली. सुमंतच्या घरच्यांना हे लग्न फारसं पटलं नव्हतंच. त्यांनी सावनीशी असलेले जुजबी  संबंधही तोडून टाकले. मधल्या काळात सावनीचे वडीलही वारले होते. आई भावाकडे राहात होती. सावनी घर सोडून निघून गेल्यामुळे माहेरच्यांशीही संबंध दुरावले होते. सावनी एकटी पडली होती.

करोनाचं सावट ओसरल्यावर तिनं परत डान्स क्लास सुरू केला होता. तिच्या नृत्य नैपुण्यात काही उणेपणा नव्हता. म्हणूनच ती ‘नृत्य-मयूरी या मानाच्या पुरस्कारास पात्र ठरली होती. पण आता पहिली उमेद राहिली नव्हती. एकटेपणाची जाणीव प्रकर्षाने व्हायला लागली होती. म्हणून नुपुरच्या आधारासाठी तिनं चाचपणी सुरू केली होती.

नुपुरवर दुसर्‍या कोणी हक्क सांगणं ही कल्पनाच मिथिलाला सहन होत नव्हती. ती म्हणूनच अस्वस्थ होती. सौमित्रही गोंधळून गेला होता. नुपुरला हे सगळं कसं सांगायचं, हा तर खूपच मोठा पेच होता. पण सांगावं तर लागणारच होतं. त्यानं आपल्या मनाची तयारी केली होती.

नऊ वाजता नुपुर उठली. आवडता नाश्ता बघून तिची कळी खुलली. पण आईला बरं नाही हे कळताच, नाश्त्याची प्लेट हातात घेऊन, ती तशीच तिच्यापाशी गेली. मिथिलानं तिला घट्ट मिठी मारली आणि तिच्या डोळयांना धार लागली. गोंधळलेल्या नुपुरला जवळ घेऊन सौमित्रनी तिला आधी नाश्ता करायला लावला. मग हळूवारपणे  त्यानं तिला सगळं काही सांगितलं. काही वेळ नुपुर स्तब्ध बसून राहिली. मग तिचे डोळे अश्रूंनी डबडबले, तिनं उठून सौमित्रचे हात घट्ट पकडले. त्याने तिला प्रेमाने कवेत घेतले. मग मुसमुसतच तिने मिथिलालाही मिठी मारली.

मग अचानक आपलं रडं आवरून ती सौमित्रला म्हणाली, ‘ बाबा, मी तयार आहे तिला भेटायला. असं कर ना तिचा मोबाईल नंबर आहे का? आपण इथूनच व्हिडिओ कॉल करूया. बघ ना नंबर मिळतोय का? तोवर मी आजी-आजोबांना पण इकडे घेऊन येते.  सौमित्र संभ्रमात पडला. तिचे वकिल फोनवर डायरेक्ट बोलायला देतील की नाही याची त्याला शंका होती.   

तेवढ्यात नुपुर आजी-आजोबांना तिथे घेऊन आली देखील आणि सौमित्रकडे नंबरची विचारणा करू लागली. मिथिलानं हळूच सौमित्रला आजच्या पेपरमध्ये आलेली बातमी सांगितली होती. त्याला एकदम शशिकांतची आठवण झाली. त्याचा हा आतेभाऊ प्रेस रिपोर्टर होता. सौमित्रनी त्याला फोन करून, सावनीचा नंबर मिळवायला सांगितला. पाच मिनिटात त्याचा मेसेज आला आणि सौमित्रनी फोन लावला. नुपुर तुला व्हिडिओ कॉल करतेय, एवढं सांगून त्यानं फोन नुपुर कडे सोपवला. नुपुर काय बोलणार याकडेच सगळ्यांचे कान लागले होते.

नुपुरचा व्हिडिओ कॉल सुरू झाला होता.

‘ सावनीमॅडम तुमचं अभिनंदन ! आपल्या तीन महिन्याच्या मुलीची पर्वा न करता, तिला सोडून जाणाऱ्या बाईला,’ हिरकणी’च्या भूमिकेसाठी पुरस्कार मिळावा हे गौरवास्पदच आहे नाही का? मला तुम्हाला एवढंच सांगायचं आहे की मिथिलाच माझी आई आहे आणि मी तिची मुलगी. इतर कोणीही केवळ जन्म दिला म्हणून माझ्यावर हक्क दाखवू शकत नाही. आमच्या या कुटुंबात तुम्हाला कोणतंही स्थान नाही आणि यापुढेही मिळणार नाही. मला तुम्हाला भेटण्याची अजिबात इच्छा नाही. ‘

सावनीच्या हातून फोन गळून पडला होता. मिथिलानं अश्रू भरल्या डोळ्यांनी नुपुरला कवेत घेतलं होतं. सौमित्रही त्यांना सामील झाला. आजी-आजोबांचा आनंद डोळ्यांतून पाझरत होता. भरून आलेलं आभाळ मोकळं झालं होतं.

 – समाप्त –

© सुश्री प्रणिता खंडकर

संपर्क – प्रणिता प्रशांत खंडकर.

Mob. 98334 79845    Email.. [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ अशक्य ते शक्य करिता सायास… श्री सुहास कुलकर्णी ☆ प्रस्तुती – सौ.बिल्वा शुभम् अकोलकर ☆

? मनमंजुषेतून ?

☆ अशक्य ते शक्य करिता सायास… श्री सुहास कुलकर्णी ☆ प्रस्तुती – सौ.बिल्वा शुभम् अकोलकर 

शिवथरघळची ट्रिप एकंदरीत छान झाली असे म्हणत घरी आलो आणि वेगळीच गोष्ट लक्षात आली. घरी आल्यावर चेहरा धुताना माझ्या पत्नीला ( सौ. मीना ला) जाणवले कि, गळ्यातील लहान मंगळसूत्र गायब आहे. दिवसभरात अनेक ठिकाणी गेलो होतो. कुठे पडले असेल अंदाज बांधणे कठीण. अनेक शक्यतांपैकी एक शक्यता म्हणजे आम्ही वापरलेल्या रेंटल कार मध्ये असू शकते. ड्रायवरशी लगेच संपर्क साधला पण काहीही मिळाले नाही.

निदान कुठे पडले समजले तर काहीतरी करता येईल या विचाराने आमच्यातील डिटेक्टिव्ह जागृत झाला. ट्रिप चे सर्व फोटो झूम करून पाहिले तेव्हा असे लक्षात आले कि शिवथरघळ च्या अलिकडे एका टपरीवर आम्ही चहा भजी खाल्ली तेव्हा मंगळसूत्र होते आणि त्या नंतरच्या फोटोत म्हणजे शिवथरघळ च्या पायर्‍या चढण्यापूर्वी पायथ्याशी काढलेल्या फोटोत मंगळसूत्र नव्हते. याचाच अर्थ एकतर ते गाडीत पडले किंवा पायथ्याशी असलेल्या पार्किंग एरियात पडले. ट्रिप ला बरोबर आलेला मित्र प्रकाश महाजन याच्या कानावर सदर घटना घातली. त्यांनी पण ड्रायवरला पुन्हा शोध घेण्यासाठी सांगितले तसेच दुसर्‍या दिवशी शिवथरघळ च्या ट्रस्टींना फोन करून घटना कानावर घातली.   

दोन चार दिवस फोनाफोनी व पाठपुरावा केल्यानंतर सत्य स्विकारून जीवन चालू होते. त्यानंतर सुमारे तीन महिन्यांनी अचानक फोन आला. सौ. मीनाने तो घेतला.

” हॅलो, आपण मीना कुलकर्णी ना?”

”  हो, आपण कोण ” 

“. मी PNG मधून स्मिता घाटपांडे बोलतीय. आपले मंगळसूत्र हरवले आहे का?” 

” हो ” 

” कुठे हरवले होते? “

” शिवथरघळला” 

” आमच्या सरांबरोबर बोलता का प्लिज?” 

” ओके” 

” नमस्कार मी प्रफुल्ल वाघ. 

आपले मंगळसूत्र कधी हरवले? 

गळसूत्राचा एखादा फोटो आहे का? 

मंगळसूत्राची पावती आहे का?

महाडच्या एका कुटुंबाला आपले मंगळसूत्र सापडले आहे. ते त्यांना द्यायचे आहे. त्यांची फक्त एकच विनंती आहे. आपण त्या मंगळसूत्राचे मालक असल्याची खात्री पटवावी. मग आम्ही तुम्हाला त्यांचा फोन नंबर देऊ. “

तर, हे  कुटुंब कोणते व या स्टोरीत PNG कुठून आले? हा किस्सा जाणून घेणे रोचक आहे.

शिवथरघळहून तीस किलोमीटर अंतरावर महाड येथे पाथरे कुटुंब राहते. त्यांच्याकडे आलेल्या पाहुण्यांसह ते सर्वजण त्याच दिवशी शिवथरघळला आले होते. त्या कुटुंबातील आजींना ते मंगळसूत्र सापडले. त्याचवेळी तेथे असलेल्या माकडांनी  आजींची पर्स ओढण्याचा प्रयत्न केला. त्या गडबडीत मंगळसूत्राबद्दल कोणाला सांगायचे राहून गेले. त्या नंतर आजींचे आजारपण झाले. त्यानंतर मात्र आजींनी याबद्दल चर्चा केली. आजींचा आणि कुटुंबाचा मानस पक्का होता. मूळ मालक शोधायचा व मंगळसूत्र त्यालाच द्यायचे. 

काम थोडे अवघड होते. शिवाय मंगळसूत्र खोटे असेल तर खटाटोप कशाला असा विचार करून त्यांनी ते मंगळसूत्र ‘ रत्नदीप ज्युवेलर्स ‘ या स्थानिक सोनारास दाखवले. त्यांनी ते खरे असल्याची ग्वाही दिली आणि ते PNG ( पुणे ) यांचेकडून केलेले असल्याचे निदर्शनास आणले. तसेच प्रत्येक दागिन्यावर एक नंबर असतो ज्या आधारे पावती व मालक शोधणे शक्य असते असेही सांगितले. इतकेच नाही तर PNG च्या काही ब्रांचेसला दागिन्यावरील नंबर सांगून माहिती मिळवण्याचा  प्रयत्नही केला पण उपयोग झाला नाही. मग रत्नदीप ज्युवेलर्सने असा सल्ला दिला की पुण्यात सिंहगड रोडवर अभिरुची माॅलमध्ये PNG चे कार्पोरेट आॅफिस आहे तेथे सर्व ब्रांचेसचा एकत्र डेटा असतो त्यामुळे मंगळसूत्राच्या मालकाचा शोध लागू शकतो. 

या घटनेनंतर सुमारे महिनाभराने पाथरे कुटुंबियांस पुण्यातील आजारी नातेवाईकांस भेटावयाचे होते. त्याचवेळी ते PNG च्या कॉर्पोरेट आॅफिसमध्ये मंगळसूत्र घेऊन गेले. मंगळसूत्राची पावती संगणकावर सापडली. मालकाचे नाव कळले  पण त्यावर पत्ता अपूर्ण होता व मोबाईल नंबर चा एक अंक चुकला होता. शोधकार्याच्या अगदी जवळ जाऊन सुद्धा काही साध्य झाले नाही. पाथरे कुटुंबीय नाईलाजाने मंगळसूत्र घेऊन घरी गेले. PNG ने शोधकार्य चालूच ठेवले.  नावावरून जुन्या पावत्या शोधल्या त्यात त्यांना मोबाईल नंबरचा अंदाज आला आणि अखेर 14 फेब्रुवारीला आम्ही त्यांना सापडलो.

आम्ही what’s app वर मंगळसूत्राची पावती पाठवली. मंगळसूत्राचा फोटो नव्हता म्हणून ज्या फोटोत मंगळसूत्र गळ्यात आहे असे ट्रिपचे. ग्रुप फोटो त्यांना पाठवले. पावतीमुळे गाडगीळांची खात्री पटली आणि ग्रुप फोटो पाहून पाथरे कुटुंबियांची. त्यांनी आम्हाला लगेच ओळखले कारण ते आणि आम्ही एकाच दिवशी एकाच वेळी शिवथरघळला होतो.

हे सर्व घडण्यासाठी कष्ट घेणार्‍या पाथरे कुटुंबातील व्यक्ती म्हणजे श्रीयुत महेश व सौ. श्रुती पाथरे. आमचा शोध लागावा म्हणून पाथरे आजी रोज देवाला साकडे घालत होत्या. जर आमची त्यांची भेट झाली नसती तर मंगळसूत्र गंगार्पण करायचे आजींनी ठरवले होते. प्रामाणिकपणाच्या जोडीला प्रामाणिक प्रयत्न केले तर काय घडू शकते याचा हा प्रसंग वस्तुपाठ आहे.

खरंतर पाथरे कुटुंबियांच्या नावाला कुठेही प्रसिद्धी देऊ नये अशी श्रुती पाथरे यांनी विनंती केली होती पण अशी माणसं आजही असतात हे नव्या पिढीला कळणे आवश्यक आहे.

पाथरे कुटुंबियांची प्रामाणिक तळमळ गाडगीळांच्या लक्षात आली असावी. रविवर्मा यांच्या चित्राची एक फ्रेम पाथरे यांना देण्यासाठी आमच्या घरी आणून दिली. आम्ही पण त्यांना अल्प भेटवस्तू दिल्या. यावर त्यांनी आम्हाला प्रत्येकाला काही ना काही रिटर्न गिफ्ट म्हणून दिले. महाडच्या ज्या रत्नदीप ज्युवेलर्सने या विषयात मदत केली त्यांची आमची भेट पाथरे यांनी घालून दिली.

आज आम्हाला मंगळसूत्राच्या जोडीला बरेच काही मिळाले. 

मनाने श्रीमंत माणसांचा लाभलेला सहवास

निर्मळ प्रामाणिकपणा

मनापासुन केलेले आदरातिथ्य

प्रसिद्धीपासून दूर स्वभाव

भरभरून देण्याची वृत्ती 

PNG च्या माणसांनी सचोटीने केलेला पाठपुरावा

रत्नदीप सोनारांनी out of the way जाऊन केलेली मदत. 

सर्वच विचारापलिकडचे .

खरोखर हा प्रसंग धन्यतेचा अनुभव देणारा होता.

मंगळसूत्र मिळाल्यावर आम्ही पुन्हा शिवथरघळला गेलो. दर्शन घेतले. समर्थ कृपेनेच हा अद्भुत चमत्कार घडून आला असेच म्हणावे लागेल.

अशी ही साठा उत्तरी कहाणी पाचा उत्तरी सुफल संपूर्ण.

लेखक : श्री सुहास कुलकर्णी

कोथरूड पुणे.

प्रस्तुती : बिल्वा अकोलकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ रामदासांची पत्नी ☆ प्रस्तुती – सौ.स्मिता पंडित ☆

? इंद्रधनुष्य ?

☆ रामदासांची पत्नी ☆ प्रस्तुती – सौ.स्मिता पंडित ☆

समर्थ रामदासांना  आठवताना  त्यांच्याशी संबंधित अजून एका व्यक्तीला आठवणं ही क्रमप्राप्त ठरते, ती व्यक्ती म्हणजे त्यांची पत्नी ! होय मी समर्थांनी ज्या मुलीला लग्नमंडपात अर्धवट सोडलं होतं त्या मुलीला , त्यांची पत्नीच म्हणेन मी . आज तिला आठवणं हे संयुक्तिक ठरेल, कारण त्या स्त्रीने  समर्थांची आठवण आपल्या हृदयात शेवटपर्यंत जागृत ठेवली. त्या मुलीची बरीच लोक कीव  करतात. काही लोक तर समर्थांना हे शोभलं नाही असाही  समर्थांना उपदेश  करतात. आपल्या भारतीय लोकांना स्वत: पेक्षा इतरांच्या घरात काय चाललंय याचीच जास्त चिंता असते. एकाने आचार्य अत्रेंना हाच प्रश्न विचारला होता, “त्या मुलीचं पुढे काय झालं हो समर्थांनी लग्नमंडपात सोडलेल्या ?” – तेव्हा आचार्य अत्रेंनी मार्मिकपणे उत्तर दिलं, ” मला माहीत नाही, कारण मी त्यावेळी त्या लग्नाला हजर नव्हताे.” पण  पुढे जाऊन त्या मुलीचं काय झालं याचा शोध घेणे  हे खूपच कमी लोक करतात.  इतिहासाने काही व्यक्तींवर खूप अन्याय केला आहे, त्यातीलच रामदासस्वामींच्या पत्नी या एक होत. आज त्यांना आठवणं त्यामुळेच क्रमप्राप्त ठरते. 

रामदासस्वामी निघून गेल्यावर मुलीचे वडील मुलीला म्हणाले,” बाळ घरी चल.” तर ती मुलगी बाणेदारपणे म्हणाली,” बाबा तुम्ही कन्यादान केले आहे, आता मी त्या घरात येणार नाही.” गंगाधरपंत, समर्थांचे वडीलबंधू, मुलीला म्हणाले,” मुली तू आपल्या घरी चल, मुलीप्रमाणे तुला सांभाळेन.” त्या वेळी ती मुलगी म्हणाली, ” दादा पाणिग्रहण झालेले नाही, मी तुमच्याकडे येऊ शकत नाही.” 

मग त्या मुलीने  काय केले? ती चालत राहिली. गावे मागे पडली, नगरं मागे पडली, आणि तिला एक जंगल  लागले. तिथे तिला झुडूपात एक मंदिर दिसलं. त्या मंदिरातच राहण्याचा तिने निश्चय केला. तिने आजूबाजूची झुडपं साफ केली. एक अंगण त्या मंदिराभोवती बनवलं आणि ती तिथेच राहू लागली. त्या अंगणात मुले खेळायला येत, त्यांच्यावर तिने संस्कार करायला सुरूवात केली. त्यांना तलवारबाजीचे, भालाफेकीचे, दांडपट्ट्याचे शिक्षण दिले आणि ती  फौजच्या फौज शिवाजी महाराजांच्या  सैन्याकडे पाठवू लागली… सैन्यात भरती होण्यासाठी. आणि शिवाजी महाराजांच्या सेनापतीलाही प्रश्न पडला की आपलीही  फौज इतकी निष्णात नाही, या लायकीची नाही…. कोण पाठवतंय ही फौज? त्याने ही गोष्ट शिवाजी महाराजांच्या कानी घातली आणि शिवाजी महाराजांना चिंता वाटली. त्यांना वाटलं गनीम तर करत नसावा असं काही? आपल्या फौजेची गुपिते हस्तगत करण्यासाठी! त्यांनी आपल्या हेरखात्याला शोध घ्यायला सांगितलं.

हेरखात्याने बातमी आणली की इथून खूप लांब राहणारी एक बाई हे काम करते  आहे.  शिवाजी महाराज मग वेष पालटून त्या माऊलीस भेटायला गेले. त्या माऊलीने शिवाजी महाराजांना सतरंजी दिली बसायला , गुळपाणी दिलं. तेव्हा तशी रीत होती.आजकालसारखे लोक कुणी आलं की तोंड वेडेवाकडे करत नसत.  शिवाजी महाराजांनी मुद्दामच तिची परीक्षा घ्यायला, शिवाजी महाराजांना नावं ठेवण्यास सुरुवात केली…  “काय तुमचा तो राजा ! का करता त्याच्यासाठी  हे सगळं? ” असं खूप भलतेसलते शिवाजी महाराज बोलू लागले स्वत :विरुद्धच ! ते ऐकलं मात्र आणि  त्या माऊलीने एकदम तलवार काढली  आणि शिवाजी महाराजांच्या गळ्यावर टेकवली ,”खबरदार” ती गरजली, ” शिवाजी महाराज आमचे राजे आहेत, त्यांच्याबद्दल काही भलतंसलतं बोललात तर.” शिवाजी महाराजांनी ओळखलं ,काय पाणी आहे ते !आणि ते निघून गेले. दुसर्‍या दिवशी शिवाजी महाराज  पूर्ण इतमामात  त्या स्त्रीला भेटायला आले आणि आपला जिरेटोप काढून त्यांनी त्या माऊलीच्या पायावर ठेवला….  म्हणजे काय माहितीय का? तुम्ही गादीवर बसा मी तुमचा प्रतिनिधी म्हणून राज्य चालवतो असेच जणू  शिवरायांना सांगायचं होतं . पण त्या माऊलीने तो जिरेटोप परत एकदा शिवाजी महाराजांच्या डोक्यावर ठेवला आणि ती म्हणाली,” हा तुम्हालाच शोभतो.”   

समर्थांचे दर्शन तिला त्यानंतर फक्त एकदाच आणि तेही फक्त पाचच मिनिटं झालं. तिला खबर लागली की समर्थ कृष्णेच्या काठी येताहेत. ती बघायला गेली त्यांना. समर्थ कृष्णा नदीच्या एका काठावरून चालत गेले आणि ती त्यांना समांतर अशी दुसर्‍या काठावरून चालत गेली. एवढ्या लांबून फक्त पाच मिनिटं  तिने समर्थांचा चेहरा बघितला. काय पातिव्रत्य  होतं तिचं ! म्हणतो ना इतिहासाने  काही लोकांवर खूप अन्याय केले..  त्यातीलच ही एक ! 

आजकालच्या युगात जेव्हा मुलींच्या खूप  अपेक्षा वाढल्या आहेत आपल्या जोडीदाराबद्दल, मुंबईला तर चाळीत राहणार्‍या मुलांची लग्नच होत नाहीत कारण मुलींना फ्लॅट हवा असतो. कशाला फ्लॅट हवा असतो कुणास  ठावूक?   जीवनात फ्लॅट व्हायला ? मुंबई कोर्टात रोज शंभर विवाह रजिस्टर होतात, पण त्याच वेळी पन्नास अर्जही घटस्फोटासाठी आलेले असतात. म्हणजे कुटुंबव्यवस्था आपल्याकडेही पन्नास टक्के तुटत आहे.  अशावेळी असे आदर्श समाजात प्रस्तुत करणे उचित ठरेल.  रशिया तुटला, झेकोस्लोवाकिया तुटला. इतरही खूप  देशांचे तुकडे झाले. पण भारताला तोडणं शक्य नाही हे अमेरिकेला माहिती आहे. कारण  इथली कुटुंबव्यवस्था ! इथला शेजारपाजार !! माणसामाणसात असलेले संबंध. बघा एखाद्या शेजार्‍याची बायको गावी गेली असेल तर त्याचा शेजारी त्याचं सगळं बघतो ,त्याला जेवण देतो ,सगळं काही पुरवतो. हे  अजूनही आपल्याकडे अस्तित्वात आहे म्हणून भारताला तोडणे शक्य नाही हे अमेरिकेला माहिती आहे.  हल्ली स्त्रीमुक्तीच्या वादळात जेव्हा अनेक घरे वाहून चालली आहेत तेव्हा असे आदर्श प्रस्तुत करणे हे उचितच ठरेल. विद्यावाचस्पती शंकर अभ्यंकर म्हणतात त्याप्रमाणे, त्या काळात स्त्रीमुक्तीवादी संस्था नव्हत्या हे एका अर्थी बरं आहे . नाहीतर त्या….  त्या उर्मिलाला भेटल्या असत्या आणि नक्की सांगितलं असतं,’ घटस्फोट घे.’ लक्ष्मण आणि ऊर्मिलेचा चौदा वर्षांचा  वियोग आहे .चेहरासुद्धा पाहिला नाही चौदा वर्षात ! म्हणून त्यांनी नक्की सांगितलं असतं,” तुला त्यांनी टाकली चौदा वर्ष, घटस्फोट घे .” पातिव्रत्य ज्यांना कळत नाही, आदर्श जीवनमूल्यं काय आहेत हे ज्यांना कळत नाहीत ते असं काहीतरी बोलत असतात. पण असं झालं नाही . म्हणून तर रामायण, महाभारत अजूनही सगळीकडे वाचली जातात. तोच आदर्श आपल्याला रामदासस्वामींच्या पत्नीतही दिसतो.  त्यामुळे आज  रामदास स्वामींना आठवताना  त्या माऊलीला आठवणं ही उचित ठरेल.

संग्राहिका :  स्मिता पंडित

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ ‘क’ची कुरकुरीत करामत… ☆ प्रस्तुती – सौ. प्रज्ञा गाडेकर ☆

? वाचताना वेचलेले ?

⭐ ‘क’ची कुरकुरीत करामत… ☆ प्रस्तुती – सौ. प्रज्ञा गाडेकर ⭐

केव्हातरी कोल्हापूरच्या कर्तव्यतत्पर केळकर काकांबद्दल काकांच्याच कचेरीतल्या केशवने काकूंसमोर कागाळी केली. काकू कावल्या. काकूंनी कपाटातून कात्री काढून काकांच्या कामाचे कोरे करकरीत कागद कचाकचा कापले. काकांचे कापलेले कागद केशवानेच कचऱ्यात कोंबून काकांच्याच किचनमध्ये ‘कजरारे-कजरारे’ कवितेवर कोळीनृत्य केले.

काकूंनी कागद कापल्याचे कळताच काका कळवळले. काकांनीही कमालच केली. काकांनी काकूंचे काळे कुळकुळीत केस कात्रीने कराकरा कापले. काका काय  रताहेत, काकूंना कळेनाच! काकूंनी कर्कश्श किंचाळून कलकलाट केला.

काका काकूंची कसली काळजी करणार! काकांना कामाची काळजी. काकूंच्या कर्णकर्कश्श कोलाहलातही, केशवाने कचऱ्यात कोंबलेल्या कागदांचे कपटेन कपटे काढून काकांनी कचेरीकडे कूच केले.

कचेरीच्या कामासाठी काकांनी कंबर कसली. कागदाच्या कापलेल्या कपट्यांचे काकांनी ‘कोलाज’ करून कामकाज कार्यान्वयित केले. केशवाचे कारनामे कळताच  काकांनी काट्यानेच काटा काढला.

काकांनी केशवालाच कोलाजचे काम करण्यासाठी कुथवला. कपटी केशवने काकांवरच कामचुकारपणाचा कांगावा करून कामाचा कंटाळा केला. काकांनी कठोरपणे केशवाला कामावरून काढले.

कासावीस काकूंनी कालच्या कडू कारल्याची कोशिंबीर कटाप करून काकांसाठी कच्च्या कैरीचे कोय काढून कालवण केले. काकांनीही करुणेने काकूंचे कृत्रिम केस कुरवाळले.

केळकरांच्या कोकणस्थ कुटुंबात कर्तव्यापुढे कर्मकांड केव्हाही कनिष्ठच. कर्तव्यदक्ष काकांच्या कार्यकाळात कचेरीने कर्मरूपी किल्ल्याचे कीर्तिशिखर काबीज केले.

कामावरून काढलेल्या केशवाने कितीतरी काबाडकष्ट काढल्यावर कोल्हापूरच्या कॉम्रेड कणेकर कॉलेजने केशवाला कबड्डीचा कर्णधार केला. क्रिडापटू केशवाने कबड्डीतच करियर केले . कालच्या कागाळीखोर केशवाला काळानेच केला ‘कबड्डीतल्या किचकट कसरतपटू.’

संग्राहिका :सौ. प्रज्ञा गाडेकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ मी घर बांधतो घरासारखं… कवि- अज्ञात ☆ प्रस्तुती सुश्री मीनल केळकर ☆

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?  मी घर बांधतो घरासारखं… कवि- अज्ञात ? ☆ प्रस्तुती सुश्री मीनल केळकर

मी घर बांधतो घरासारखं

आणि

हा पक्षी माझ्याच घरात घर बांधतोय त्याच्या मनासारखं

 

मी विचारलं त्याला , “बाबारे, ना तुझ्या नावाचा सातबारा,

ना तुझ्या नावाचं मुखत्यारपत्र!”

तर म्हणतो कसा,

 

“अरे सोपं असतं का कुणाच्या घरात जागा करणं 

आणि कुणाच्या मनात घर करणं”

 

माझं घर तर काड्यांचं आहे.

तुझं घर माडीचं आहे!

 

नात्यांची घट्ट वीण, विणत गेली नाही, तर

माडीचं घर सुद्धा काडीमोलाचं असतं!

 

मला नेहमी वाटायचं माझ्यामुळेच त्या पक्ष्यांचं घर झालं.

आता वाटतंय.

त्याच्यामुळेच माझं विचारांचं प्लास्टर पक्क झालं.

 

आता त्याचा चिवचिवाट माझ्यासाठी पसायदान असते.

तो डोळे झाकून घरट्यात बसला, की समाधिस्त आणि समृद्ध वाटतो.

 

त्या पक्षाने शिकवलं मला…

 

एका घराची दोन घरं होण्यापेक्षा घरात घर करुन राहाणं

 

आणि

 

दुसऱ्याच्या मनात घर करुन राहणं कधीही चांगलं….. 

 

कवि – अज्ञात 

प्रस्तुती – सुश्री मीनल केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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