हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ बाल साहित्य – ‘गुलाबी कमीज़’ रहस्य रोमांच से भरपूर उपन्यास– सुश्री कामना सिंह ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है सुश्री कामना सिंह जी  की पुस्तक  “गुलाबी कमीज़” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘गुलाबी कमीज़’ रहस्य रोमांच से भरपूर उपन्यास– सुश्री कामना सिंह ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

उपन्यास – गुलाबी कमीज़ 

उपन्यासकार – कामना सिंह 

प्रकाशक – भारतीय ज्ञानपीठ, 18- इंस्टीट्यूशनल एरिया, लोधी रोड, नई दिल्ली- 110033 मोबाइल नंबर 93505 36020

पृष्ठ संख्या – 135 

मूल्य – ₹270

समीक्षक – ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

☆ गुलाबी कमीज़ रहस्य रोमांच से भरपूर उपन्यास – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

बच्चों के लिए उपन्यास लिखना टेढ़ी खीर है। इसको लिखते समय बहुतसी बातों का ध्यान में रखना पड़ता है। उसका कथानक बड़ों से अलग होता है। उसकी कहानी सीधी, सरल व सहज हो। भाषा शैली सरल हो। इसमें प्रवाह और रोचकता का ध्यान रखा गया हो।

बच्चों में लिखे उपन्यास का आरंभ रोचक प्रसंग से किया गया हो। ताकि उपन्यास का आरंभ पढ़कर बच्चा उसे उपन्यास को पूरा पढ़ने को लालयित हो जाए। यह बात दीगर है कि यह शर्त बड़ों के उपन्यास पर भी लागू होती है। मगर उनके उपन्यास में यह नियम शिथिल हो जाए तो भी चल सकता है।

दूसरी बात, बच्चों उपन्यास तभी निरंतर आगे पढ़ते हैं जब उनको उसमें एक के बाद एक नई रोचक कहानी मिले। उसी के साथ उपन्यास की मूल कहानी आगे बढ़ती रहे। यानी हरेक भाग में रहस्य के साथ अंत में उसका समाधान होने के साथ एक नया रहस्य का सृजन हो। तभी बच्चे उपन्यास पढ़ते हैं।

इस परिपेक्ष में देखे तो उपन्यासकार कामना सिंह का समीक्ष्य उपन्यास- गुलाबी कमीज़, इस कसौटी पर कितना खरा बैठता है? उपन्यासकार ने यह उपन्यास वैश्विक महामारी कोरोनाकाल के दौरान लिखा था। जब लॉकडाउन के दौरान अनेक मजदूरों का काम छिन गया था। वे रोजी रोटी से मोहताज हो गए थे।

इसी पृष्ठभूमि पर इसके कथानक का निर्माण किया गया था। इसका कथानक इतना भर है कि इसका नायक हीरा 11 साल का मासूम बच्चा है जो कोरोना के भयंकर संत्रास से रूबरू होकर दिल्ली से अपने गांव की यात्रा करता है पुनः दिल्ली लौट आता है।

इसी भयंकर त्रासदी को झेलते हुए में पैदल ही निकल पड़ते हैं। इस कथानक पर उपन्यास की कथावस्तु का सृजन किया गया है। 

उपन्यासकार कामनासिंह ने 14 भाग के इस उपन्यास का आरंभ रोचक ढंग से किया है। उपन्यास के आरंभ में वे लिखती हैं- 24 मार्च 2020। पूर्वी दिल्ली की कमला बस्ती। रात के 10:00 बज रहे हैं। इसी रोचक पंक्ति से उपन्यास में उत्सुकता जगाती उपन्यास का आरंभ करती है।

उपन्यास की कहानी इतनी है। हीरा के अपने कुछ सपने हैं। वह उसे देखते हुए पैदल ही माता-पिता के साथ चल देता है। यह उन सपनों को रास्ते में पूरा करते हुए मंजिल पर पहुंचता है। आखिर उसे अपने सपनों की मंजिल मिल ही जाती है या नहीं? यह उपन्यास के अंत में पता चलता है।

उपन्यास की भाषा, सरल, सहज व रोचक है। उपन्यासकार ने छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग किया है। वाक्य सरल व रोचक हैं। भाषा में प्रवाह बना हुआ है। कहानी रोचकता से आगे बढ़ती है।

उपन्यास की मूल कहानी के साथ-साथ कई सहायक कहानियां भी चलती है। रास्ते में कई कठिनाइयां आती है। उसका समाधान होता है तो दूसरी समस्या आ जाती है।

कहने का तात्पर्य है कि बच्चों के उपन्यास की कसौटी पर यह उपन्यास खरा उतरता है। इसकी पृष्ठ सज्जा अच्छी है। त्रुटि रहित मुद्रण ने उपन्यास की गुणवत्ता में श्रीवृद्धि की है। उपन्यास का आवरण आकर्षक है। उपन्यास का मूल्य ₹270 बच्चों के मान से अधिक है। मगर बढ़ते मुद्रा मूल्य के कारण इसे वाजिब कह सकते हैं।

इस समीक्षक को आशा है कि बाल साहित्य में इस उपन्यास का जोरदार स्वागत किया जाएगा।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

19-02-2023

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – opkshatriya@gmail.com

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 148 ☆ बाल कविता – आर्यन और नाना… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 148 ☆

☆ बाल कविता – आर्यन और नाना… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

याद बहुत करते हैं आर्यन

     मीठी – मीठी बात हैं करते।

नाना भी कम याद न करते

      फूलों की बरसात हैं करते।।

 

वीडियो कॉल मिलाएं नाना

    आर्यन मीठी बात बताए।

नाना के फोटो से पूँछें

     नाना जल्दी क्यों न आए।।

 

काम क्या ऐसा लगा आपको

     खेल खिलौने हमें न लाए।

खेलें – कूदें साथ – साथ हम

       बार – बार है याद सताए।।

 

 जो फोटो से मैंने पूछा

     सब बातें आप तक पहुँची थीं।

मुझे आज बतलाओ सच – सच

     क्या सपनों से भी ऊँची थीं।।

 

नाना ने कहा प्यारे आर्यन

  प्यारा संदेशा मुझे मिला है।

रोम – रोम मेरा हर्षित है

     कोमल मन से ह्रदय खिला है।।

 

 लाएँगे हम बहुत खिलौने

       याद मुझे भी बहुत सताती।

खेल करेंगे मिलकर दोनों

     छुक – छुक हमको रेल घुमाती।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

Rakeshchakra00@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे कविते… ☆ सुश्री पार्वती नागमोती ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ हे कविते… ☆ सुश्री पार्वती नागमोती ☆

अवेळी तुझं येणं नसतंच कधी

दस्तक देतेस तू तुझ्या आर्ततेचे

 

झंजावत असतेस तू …

घुसमटलेल्या हल्लकल्लोळांचा

 

घोंगावणारा वारा असतेस तू…

पिंगा घालणाऱ्या भावभावनांचा

 

कोसळणारा धबधबा असतेस तू…

उचंबळून येणाऱ्या आर्त हुंदक्यांचा

 

झेपावणारा झोत असतेस तू…

उत्तुंग भरारी घेणाऱ्या अग्नीपंखांचा

 

खळखळणारा झरा असतेस तू…

हर्षोल्लासाने चिंब झालेल्या सुखांचा

 

प्रज्वलित करणारा किरण असतेस तू..

पथ चुकलेल्यासाठी उचित मार्गदर्शकांचा

 

धगधगणाऱ्या ज्वाळा असतेस तू…

अन्यायांविरुद्ध बंड पुकारणाऱ्या सत्यतेचा

 

भळभळणारा जखमी प्रवाह असतेस तू…

 अस्तित्वासाठी झगडलेल्या तीव्र वेदनांचा

 

ओघळणारा अश्रू-प्रवाह असतेस तू…

मनतळ्यातील थिजलेल्या यातनांचा

 

हे कविते, तुझ्या अनेक रूपांनी

तू समोर येऊन अवेळी उभी ठाकतेस.

अगदी अचानक…

 

© सुश्री पार्वती नागमोती

सांगली

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #149 ☆ संत रोहिदास महाराज… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 149 ☆ संत रोहिदास महाराज… ☆ श्री सुजित कदम ☆

 रोहिदास महाराज

सुधारक संत कवी.

भक्ती गीते चळवळ

अध्यात्मिक दिशा नवी…! १

 

वाराणसी सीर गावी

गोवर्धन पुरामध्ये

जन्मा आले रोहिदास

चर्मकार कुलामध्ये… ! २

 

रविदास रोहिदास

अन्या सोळा उपनावे

महाराष्ट्र राजस्थान

पंजाबात नांव गाजे…! ३

 

देशहित जपणारे

रोहिदास संत कवी

दिली रहस्य वादाची

वैचारिक शक्ती नवी..! ४

 

कवी संत रोहिदास

अध्यात्मिक व्यक्तीमत्व

सुफी संत सहवास

सामाजिक ज्ञान तत्व…! ५

 

लक्षणीय योगदान

गुरू ग्रंथ साहिबात

रोहिदास साहित्याचा

समावेश जगतात…! ६

 

भेदाभेद टाळुनीया

दिला समता संदेश

कष्टकरी समाजात

मेहनत परमेश…! ७

 

भगवंत अंतरात

नको मग दुजे काही

सामाजिक सलोख्यात

सुख माणसांचे राही…! ८

 

मनुष्यास धर्म केंद्र

 दिशा वैचारिक मना

सर्व सुख प्राप्ती साठी

केला उपदेश जना…! ९

 

एकजूट समाजाची

समानता अधिकार

संत रोहिदास सांगे

श्रमशक्ती  मुलाधार…! १०

 

मन निर्मळ ठेवावे

ज्ञान गंगा अंतरात

केला निर्भय समाज

बोली भाषा अभंगात..! ११

 

संत मानवतावादी

देश आणि देव भक्ती

केले समाज कल्याण

दिली बंधुभाव शक्ती…! १२

 

पायवाट जीवनाची

नको असत्याचा संग

संत रोहिदास वाणी

ईश सेवेमध्ये दंग…! १३

 

चैत्र वैद्य चतुर्दशी

रोहिदास पुण्यतिथी

आहे चितोड गडात

पादत्राणे आजमिती…! १४

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “काम छोटं, महत्व मोठं…” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सौ कल्याणी केळकर बापट

? विविधा ?

☆ “काम छोटं, महत्व मोठं…”  ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सरासरी बघता  माणूस आपापल्या क्षेत्रात दिवसभर काबाडकष्ट करीत असतो, मग कधी तो आपल्या दैनंदिन गरजा भागेल इतपत कमावतो तर कधी थोडंफार पुरुन उरेल इतकं. अगदी बोटावर मोजण्याइतक्या व्यक्ती ह्या भरघोस कमावतात अगदी पोटभर पुरुन त्याहूनही कितीतरी पट जास्त उरेल इतकं.

वेगवेगळ्या व्यक्तींच्या कमाईत फरक असला तरी एक गोष्ट मात्र काँमन असते,ती म्हणजे हे कमवायला माणसाला भरपूर कष्ट मात्र घ्यावेच लागतात. कष्ट, मेहनत ह्या गोष्टी म्हणजे जसं अन्नामध्ये मिठाचं महत्त्व असतं तसं जीवनात ह्याचं महत्त्व. आणि ह्याच अपार कष्टानंतर खायला कोंडा आणि उशाला धोंडा असेल तरी निद्रादेवी मात्र कायम प्रसन्न असते.

प्रत्येक व्यक्ती ही भरपूर कामं करीत असली तरी प्रत्येक व्यक्तीच्या कामाकामांत फरक हा असतोच.त्याच्या काम करण्याच्या पद्धती, काम करण्याचा कालावधी, कामाचा दर्जा ह्यामध्ये विवीधता ही आढळतेच. काही व्यक्ती प्रचंड कष्ट, कामे करतात पण त्यांच्या कामात निगुती नसते तर काहींच कामं हे अतिशय मोजकं असतं पण त्यांनी केलं की दुसऱ्या ला परत त्या कामाकडे वळून बघावं लागतं नाही इतकं ते परिपूर्ण असतं. काही व्यक्ती ह्या घरातील कामांमध्ये तरबेज तर काही घराबाहेरील कक्षेत असलेल्या कामांमध्ये पटाईत.

ह्या कामाबद्दलची एक छोटीशी पण मस्त पोस्ट वाचनात आली. कालनिर्णय ह्या दिनदर्शिकेच्या मागील पानावर छापलेली आहे. “छोट्या कामांच मोठ महत्त्व” असं शिर्षक असलेली . एक मस्त वाचनीय पोस्ट.

काम हे सुद्धा आपण बघूनबघून अनुभवातून शिकतो.चांगल,उत्कृष्ट कामाची नोंद आपला प्रत्येकाचा मेंदू ताबडतोब घेत असतोच,प्रश्न असतो तो आपल्या स्वतः च्या आळसामुळे त्यावर अंमलबजावणी न करण्याचा. असो

कामाचा उरकं, शाळेत एकही लेटमार्क न होऊ देता सातत्याने कितीतरी वर्षे चारीठाव स्वयंपाक माझी आई सकाळी चारला उठून रांधायची.हे.सगळं आठवून खरंच आता समज आल्यावर आईच खूप कौतुक वाटतं. आमच्या अहो आईंकडुन कुठलही काम कस शेवटापर्यंत व्यवस्थित करता येतं हे बघतं आलेयं. बहीणी कडून ,नणंदे कडून कामाचा झपाटा बघत आलेयं.माझी बहीण तर आताची कमलाबाई ओगलेच जणू.कुठलाही पदार्थ चवीला तसेच दिसायला आणि आरोग्यासाठी सर्वोत्तम ह्यात तिचा हातखंडा. बरेचदा आपण आपल्या कामाच्या ठिकाणी वा आजुबाजुला वावरणाऱ्या व्यवस्थित काम करणाऱ्या लोकांना आपोआप आपल्या निरीक्षणशक्तीने नजरेत टिपतो आणि मनोमन त्यांचं कौतुक ही वाटतं.

त्या कालनिर्णय मधील एक गोष्ट खूप भावली आणि पटली सुद्धा. त्यात सांगितलयं आपण सकाळी प्रथम उठल्याबरोबर जे पहिलं काम करतो,ते म्हणजे बिछान्यातून उठून तो आवरणे ,हे काम जर सर्वोत्तम निगुतीने जमलं तर दिवसभरातील सगळी कामं आपल्याकडून सकारात्मक भावाने सर्वोत्कृष्टच केल्या जातात. त्यामुळे उठल्याबरोबर प्रत्येकाने आपला बिछाना खूप छान,निटनेटका आवरून हा ठेवलाच पाहिजे. अर्थातच हा नियम काही व्यक्ती ह्या पाळतच असतील म्हणा. पण जे पाळत नसतील त्यांनी हा नियम तयार करुन त्याची काटेकोर अंमलबजावणी केल्यास खूप चांगला सकारात्मक फरक आपल्या आयुष्यात पडेल.

©  सौ.कल्याणी केळकर बापट

9604947256

बडनेरा, अमरावती

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ “एक लगीनगाठ…” भाग 2 – लेखक – श्री आनंद बावणे ☆ सुश्री हेमा फाटक ☆

? जीवनरंग ?

☆ “एक लगीनगाठ…” भाग 2 – लेखक – श्री आनंद बावणे ☆ सुश्री हेमा फाटक ☆ 

(मागील भागात आपण पाहिले –  यशवंत काकांची तब्येत सोडली तर घरातील वातावरण व सर्वांचे वागणे श्रीकांतला भावून गेले. त्या रात्री श्रीकांत रमेशच्या खोलीत लौकरच झोपी गेला. मात्र आप्पा, माई, काका आणि काकू बराच वेळपर्यंत गप्पा मारीत होते. आता इथून पुढे –

दुसऱ्या दिवशी सकाळचा नाश्ता झाल्यावर दहाच्या दरम्यान तिथला लक्ष्मी-विलास पॅलेस पाहायला जायचे होते. आप्पाना त्यात फार औत्सुक्य नव्हते, मात्र श्रीकांतला तो पहाण्यात खूप उत्सुकता होती. रमेश आणि सुजाता दोघेही बरोबर होते. काकांमुळे या दोघांनाही इथले कांही कर्मचारी ओळखत होते. काकांच्या त्या घरापासून अर्धा कि. मी. आत अंदाजे चारशे-पाचशे एकरातील निसर्गरम्य परिसरातील तो लांबीला अंदाजे पाचशे फूट , रुंदीला दोनशे फूट आणि तितकाच उंचीला असलेला प्रशस्त महाल म्हणजे जाणत्याना पडणारे एक स्वप्न असावे इतका तो देखणा होता. कांही कांही वास्तूंचे शब्दात वर्णन अशक्य असते, बस्स …पाहायचं आणि जेवढं डोळ्यात सामावेल तेवढं स्मृती पटलावर कोरून ठेवण्याचा प्रयत्न करायचा , एवढं करणं शक्य होतं. आप्पा तटस्थपणे पहात होते, माई विस्मयाने पहात होत्या व श्रीकांत जे दिसतंय त्याचा आस्वाद घ्यायचा प्रयत्न करीत होता. भारतीय, पर्शियन आणि इटालियन वास्तुकलेचा अद्भुत संगम असा तो महाल होता. आतून त्यांच्या नियोजित वापराप्रमाणे शैली व बाहेरून बव्हंशी इटालियन शैली असावी असे श्रीकांतला वाटले. सुजाता व रमेश त्यांना जे माहीत होते ते सांगत होते , पण त्या ऐकीव इतिहासाच्या पलीकडील ती बांधलेली, ठेवलेली, तासलेली, रंगविलेली कलाकृती होती. तिथल्या दर्शनीय वस्तू श्रीकांतने केवळ पुस्तकातून वाचलेल्या होत्या. नाही म्हणायला राजा रविवर्मा यांनी पुरुष आकारात साकारलेली व भिंतीवर माउंट केलेली धार्मिक चित्रे सर्वांच्या मनाचा ठाव गाठून गेली. धावत धावत सगळ्या तलवारी, भाले, स्टेच्यु, मूर्ती, वॉल हँगिंग, चित्रे, दगड, धोंडे, खडे, पुस्तके, राजांच्या वंशावळींचे माउंटिंग, सादर केलेली मांडणी, तिथली अनेक दालने, सगळे सगळे  पाहायला अडीच ते तीन तास लागले. जेंव्हा सर्वजण बाहेर आले, तेंव्हा  एखाद्या जादूनगरीतून आल्यासारखे त्या सर्वांना झाले. घरापर्यंतचे जाणे आणि दुपारचे भोजनदेखील लक्ष्मी-विलास च्या चर्चेत संपले.

सायंकाळी पाच वाजता चहा झाल्यानंतर आप्पानी एका गंभीर विषयाला तोंड फोडले. श्रीकांतच्या ध्यानी मनी नसलेला तो विषय होता. आप्पा बोलले ,

“श्रीकांत, आपण फक्त यशवंतला भेटायला आणि बडोदा पाहायला आलेलो नाही, तर आठ वर्षांपूर्वी तुझ्या आक्काच्या लग्नात ठरविलेले एक महत्वाचे वचन निभावायचे आहे व ते तुझ्या आयुष्याशी संबंधित आहे. खरे म्हणजे त्यासाठी आपण आलोय .”

श्रीकांतच्या कांहीच लक्षात नाही आले. तो थोडा सावरून बसला. यशवंत काकांनी सुजाताला व रमेशला  तिच्या खोलीत जायला सांगितले. त्यानंतर माई बोलली, ” श्रीकांत, त्यावेळी आम्ही खूपच अडचणीत होतो. यशवंत भाऊजी पुढे आले नसते तर आक्काचे लग्न मोडल्यात जमा होते. त्यांनी मदत केली हे खरेच, पण त्यावेळी ते सहज बोलून गेले की माझे पैसे मला परत मिळणार याची खात्री आहे. पण मला व्याज नको आहे. योग्य वेळी श्री साठी माझी मुलगी तुम्ही सून म्हणून पदरात घ्या. आम्ही यावर कांहीच बोललो नाही. मात्र  ‘ज्या त्या वेळी बघू ‘ असे तुझे बाबा मोघम बोलले होते. आता भाऊजी आजारी आहेत व त्यांना चिंता सुजाताच्या लग्नाची आहे. ही गोष्ट आम्हाला भाऊजीनी आधीच पत्रामध्ये कळविली होती. ‘आम्ही बडोद्याला येतो व तेंव्हा मुलांच्या इच्छेने ठरवू’ असे मोघम उत्तर तुझ्या बाबांनी दिले होते. तू दिवाळीला घरी येणार व त्यानंतर बडोद्याला यायचे त्यांनी आधीच ठरविले होते. मात्र मागील आठ वर्षात आम्हीही सुजाताला पाहिले नव्हते. आता दोन दिवस आपण एकत्र आहोत . आम्हा दोघांनाही सुजाता सून म्हणून पसंत आहे. भाऊजींचे म्हणणे आहे की श्री वर कोणताही दबाव नको. म्हणून ही बाब केवळ आपल्या पाचजणांत असेल. तू तुझे स्पष्ट मत द्यायला मोकळा आहेस. मात्र तू सर्व बाजूनी विचार करून निर्णय घ्यावास. तुझे शिक्षणाचे एक वर्ष अजून शिल्लक आहे व भाऊजीना त्यांच्या डोळ्यासमोर हे लग्न व्हावे असे वाटतेय. कारण त्यांचे हे अनिश्चित असलेले आजारपण. त्यांना स्वतःबद्दल भरोसा नाही आणि तुझ्या बाबांपुढे त्यांनी त्यांची व्यथा सांगितली आहे. तुझ्या आक्काच्या लग्नात जी आपली स्थिती होती, त्याच आर्थिक विवंचनेतून ते आज वाटचाल करताहेत. त्यांना तुझ्या बाबांकडून खूप आशा आहेत.”

सकाळच्या लक्ष्मीविलास पॅलेस च्या सुखस्वप्नातून श्रीकांतचे विमान अलगद त्याच्या संसाराच्या धावपट्टीवर उतरले. त्याच्यासाठी पटकन कांही उत्तर देणं शक्य नव्हतं. खरं म्हणजे तो त्याच्या आप्पांवर मनातून भडकला होता. पण ही गोष्ट आप्पानी किंवा माईने आधी सांगितली असती तर तो बडोद्याला आलाच नसता ! ही म्हातारी माणसे ‘आतल्या गाठीची असतात’ हेच खरे , तो मनोमन उसळला. त्याने सांगितले की ‘आप्पा, मी जरा बाहेर जाऊन येतो. आणि हो…. रमेशला घेऊन जातो.’ आणि तो बाहेर पडला. पाच मिनिटांनी रमेश बाहेर आला व तो त्याला बोलला, “अरे चल … आपण पिक्चरला जाऊ.” रमेश ‘होय’ म्हणून पुन्हा घरात गेला व बाहेर आला. आणि दोघे निघाले. श्रीकांत थोडा विमनस्क होता, पण हे रमेशला दाखवणे जरुरीचे नव्हते. भटकताना रस्ता चुकू नये म्हणून केवळ त्याने रमेशला बरोबर घेतले होते. पाच-दहा मिनिटे दोघे चालले असतील. मध्येच तो बोलला , ” रमेश, जवळपास एखादे मंदिर आहे का रे. आपण तिथे जाऊन बसू थोडा वेळ “

रमेशने रिक्षा थांबवली व बोलला , ” काका, सुर्यमंदिर ला जायचंय .” आणि रिक्षा धावू लागली. रिक्षावाले काका रमेशच्या ओळखीचे असावेत. साधारण वीस मिनिटांनी रिक्षा थांबली. पैसे न घेताच रिक्षावाले काका निघून गेले. श्रीकांतला आश्चर्य वाटले. त्याने म्हटले , “अहो…. पैसे घ्या ना ….” काका हसले व निघून गेले होते.

“दादा, काका पैसे नाहीत घेणार. बाबांनी त्यांना मागे कधी चार वर्षांपूर्वी खूप मदत केली आहे. आता बाबांना दवाखान्यात नेताना, आणताना व रात्रीही हे काका आमच्यासाठी खूप वेळ देतात.” रमेश बोलून गेला.

सूर्य मंदिर खरंच खूप छान बांधलं होतं. कोणाही नवीन व्यक्तीने खुश व्हावं. पण श्रीकांतचं मन थाऱ्यावर असेल तर ना? अजून तिसऱ्या सेमिस्टर ची लास्ट टर्म आणि बी. इ च्या शेवटच्या वर्षाच्या दोन टर्म, खिशात स्वतःची कमाई शून्य, ‘बायको’ या विषयाबाबत मित्र-मंडळींमध्ये फक्त जोक आणि जोक्स केलेले दिवस आणि आप्पा म्हणताहेत ,” लग्न कर. तेही त्यांनी आधीच ठरविलेल्या मुलीशी . साला…. हे माझे आयुष्य आहे की आप्पांची मालमत्ता …. वाटेल ते ठरवायला ? साला…. ही सुजाता , हिच्या काय मनात आहे कुणास ठाऊक ? तिलाही अद्याप खूप शिकायचे असू शकते ना ? साला …. ही मोठी माणसे समजतात कोण स्वतःला? ” श्रीकांतच्या मनात असलेच असंबंध विचार येत होते व जात होते. रमेशबरोबर तो फक्त शरीराने होता. तो कुठेकुठे नेत होता व हा ‘देखल्या देवा दंडवत’  घालीत होता. पण सुर्यमंदिरा बाबत जे कांही रमेशने ऐकवले ते सगळे ‘नळी फुंकली सोनारे … इकडून तिकडे गेले वारे ‘  अशी श्रीची स्थिती होती . त्याने अचानक रमेशला विचारले , ” का रे , तुझ्या दीदीचे लग्न करणार आहेत हे तुला माहिती आहे काय? “

“बाबा आजारी पडल्यापासून सारखे हेच म्हणताहेत व त्यामुळे दीदी खूप गंभीर असते. बाबा आजारी पडल्यापासून तिने हसायचेच थांबवले आहे. तुम्ही घरात आल्यापासून बाबांच्या चेहऱ्यावर आम्हाला ‘हासू’ दिसले. नाहीतर ते गप्प गप्प असतात. त्यांना दिदीच्या लग्नाची चिंता असावी व त्यामुळे त्याना दिलेली औषधे देखील काम करीत नाहीत असे मला वाटतेय. पण सध्या तरी याबाबत कोणता उपाय नाही. कारण त्यासाठी आम्हाला तिकडे महाराष्ट्रात गावी जावे लागणार आणि स्थळे पहावी लागणार. मी एवढा लहान आहे की मला यातले कांही म्हणजे कांहीच समजत नाही .”

क्रमश: भाग २

मूळ लेखक – आनंद बावणे

संग्रहिका – सुश्री हेमा फाटक

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ नातं रिचार्ज करू… अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ.स्मिता पंडित ☆

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☆ नातं रिचार्ज करू… अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ.स्मिता पंडित ☆

मोबाईलचा बॅलन्स संपायच्या आधीच त्याची किती काळजी घेतो आपणं. बॅटरी लो झाली की चार्जर शोधतो.  पण तेवढीच काळजी नात्यांच्या बॅलन्सला जपण्यासाठी, नात्यांची बॅटरी लो होण्याआधी जर आपण घेतली तर किती सुखद होईल हे जीवन…

आपल्यातलं बोलणं संपलं असेल तर 

पुन्हा एकदा टॉक टाईम भरु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…

 

मनामध्ये काही अडलं असेल तर

त्या वाईट गोष्टींना फॉरमॅट मारु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…

 

नवा घेवुन पुन्हा कॅनव्हास

नव्या चित्रात नवे रंग भरु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…

 

प्रेमाचा नेट पॅक, समजुतीचा बॅलन्स

हृदयाच्या व्हाउचरवर पुन्हा स्क्रॅच करु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…

 

उतार-चढाव ते विसरुन सारे

उद्यासाठी नात्यांवर पुन्हा टॉर्च मारु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…

 

माणूस म्हंटलं तर चुकणारच ना

चुका तेव्हढ्या बाजूला सारु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…

 

आयुष्याची बॅटरी रोज लो होते ग

जवळचे नाते तेवढे आवळून धरु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…

 

व्यक्ती तितक्या प्रकृतीचा नियम

पटलं तेवढे ठेवुन बाकी इग्नोर मारु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…

 

कांद्याचे कापसुद्धा डोळे भिजवतात

नात्यांचेही खाचे तसेच स्विकारु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…

 

नव्या ताकदीने नव्या उमेदीने

निसटणारे हात पुन्हा घट्ट धरु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…

 

सुसंवादाची सेल्फी आठवत

रिलेशनमध्ये अंडरस्टँडिंग भरु…

चला ना, पुन्हा एकदा नातं रिचार्ज करु…   

 

लेखक : अज्ञात

प्रस्तुती : स्मिता पंडित

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ वीर मारुती… – श्री मंदार लवाटे ☆ प्रस्तुती – सुश्री प्रभा हर्षे ☆

सुश्री प्रभा हर्षे

? इंद्रधनुष्य ?

☆ वीर मारुती… – श्री मंदार लवाटे ☆ प्रस्तुती – सुश्री प्रभा हर्षे ☆

‘बुद्धिमताम् वरिष्ठम्’ अशा देवता म्हणविल्या जाणाऱ्या शनिवार पेठेतल्या वीर मारुतीचा गेली दोनशे वर्षे अखंड उत्सव सुरू आहे. पंचवीस वर्षांपूर्वी मूर्तीचे शेंदूराचे कवच निसटले आणि मारुतीरायाची विलोभनीय मूर्ती समोर आली. विशेष म्हणजे, चैत्र पौर्णिमा म्हणजेच, हनुमान जयंती ते अक्षयतृतीया असा इथे चालणारा उत्सव पानिपतच्या युद्धात बळी पडलेल्या वीरांच्या स्मृतिनिमित्त होतो, याची आजही अनेकांना कल्पना नाही. 

अशी होती परंपरा…

परंपरेनुसार, जी घराणी पानिपतच्या युद्धात लढली त्या घराण्यातला ज्येष्ठ पुत्र वीराची वेशभूषा करून मारुतीरायाच्या भेटीला येतो. ही भेट होळीच्या दुसऱ्या दिवशी म्हणजेच, धूलिवंदनाला होते. देवाला भेटण्यासाठीची जय्यत तयारी करून पूजेचे तबक हाती घेऊन तो मारुतीच्या भेटीला येतो. इथे येऊन देवाला मिठी मारली, की त्या घराण्यातला वीर देवापर्यंत पोहोचतो, अशी त्यामागची श्रद्धा आहे. पूर्वी या ठिकाणी बारा गाडे असत आणि ते गाडे ओढण्याचा मानही वीराला मिळत असे. ही परंपरा होती तेव्हा जोरदार यात्राही व्हायची. काळानुरूप यातल्या अनेक गोष्टी आता बदलल्या आहेत. ‘हे स्थान पुरातन असल्याचा उल्लेख पेशवेकालीन कागदपत्रांमध्ये आढळतो. या ठिकाणी युद्धापूर्वी नवस बोलला जायचा. युद्धातून माणूस परतल्यास त्याला तुझ्या दर्शनाला आणू. जो युद्धावरून येतो तो वीर. दास, प्रताप आणि वीर अशी मारुती दैवताची तीन रूपे आहेत. धूलिवंदनाला अजूनही अनेक घराण्यांतले लोक इथे येतात. मारुतीरायाच्या भेटीला येताना घरातले टाक घेऊन येण्याची परंपरा आहे. काहीजण शस्त्रही आणतात. जुना मारुती आहे, एवढाच उल्लेख आढळतो. त्यामुळे पुण्यातल्या जुन्या देवस्थानांपैकी तो एक आहे. हा मारुती पिंपळाच्या वृक्षाखाली आहे.’

पूर्वी गांगल कुटुंबीय अनेक वर्षे उत्सव पाहायचे. आता त्या घराण्यातले कुणी नसल्याने उत्सवाची परंपरा पुढे राम दहाड, सचिन दाते, महेश पानसे, मयुरेश जोशी, प्रवीण जोशी ही कार्यकर्ते मंडळी चालवत आहेत. ही परंपरा अखंड सुरू ठेवण्याची परंपरा कार्यकर्ते सांभाळत असून, लोकवर्गणीतूनच हा उत्सव चालतो. आपापल्या इच्छेनुसार त्यासाठी मंडळी योगदान देतात.

वीर मारुतीच्या भेटीसाठी वाजतगाजत येण्याची परंपरा आजही सुरू आहे. त्या निमित्ताने वीरांचे हार घालून; तसेच प्रसाद देऊन स्वागत केले जाते. वर्षानुवर्षे हनुमान जयंती ते अक्षयतृतीया असा १८ दिवसांचा कीर्तन महोत्सव इथे होतो. अनेक कीर्तनकार आपली सेवा रुजू करतात. 

वीर मारुतीबाबत पेशवे दफ्तरात अनेक कागदपत्रे धुंडाळली; मात्र मारुतीची स्थापना कशी आणि केव्हा झाली, याचा उल्लेख मिळत नाही. मारुतीरायाच्या या मूर्तीचे वैशिष्ट्य म्हणजे त्याला मिशा आहेत. आवेशपूर्ण अशी ही मूर्ती वीर मारुती या प्रकारातली आहे.

लेखक : श्री मंदार लवाटे

इतिहास संशोधक

संग्राहिका : सुश्री प्रभा हर्षे 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ मंत्रजागर… ☆ प्रस्तुती – सौ. शशी नाईक-नाडकर्णी ☆

सौ.शशी.नाडकर्णी-नाईक

? वाचताना वेचलेले ?

⭐ मंत्रजागर ☆ प्रस्तुती – सौ. शशी नाईक-नाडकर्णी⭐

केळीचे लोंगर बागेत दिसायला लागल्यावर वानरांनी बागेत येऊन धुडगूस घालायला सुरुवात केली. केळी, पपई …..  एकही फळ हाताशी लागेना. आमच्या जमिनीत वडाच्या झाडाखाली अक्कलकोट स्वामींचे मंदिर बांधलेय. देवळात वीज आल्यावर एक दिवस जपयंत्र आणलं. सूर्यास्ताला जपयंत्रावर गायत्री मंत्राचा जप सुरू करायचा, तो चांगलं उजाडल्यावर बंद करायचा. आठ पंधरा दिवसातच एक गोष्ट अनुभवाला आली. जपयंत्र जरी रात्री सुरू असलं तरी दिवसभर बागेत होणारा वानरांचा धुडगूस आपोआप बंद झाला. वानर बागेच्या कुंपणापर्यंत यायचे. पण बागेत यायचे नाहीत. नुकसान करायचे नाहीत. रात्रीच्या वेळी मात्र तोच कळप तळ्याकाठच्या त्याच झाडावर वस्तीला असायचा. आज घराभोवती पाच फळबागा उभ्या राहिल्या असून वानरांमुळे होणारं नुकसान पूर्णपणे थांबलं. गायत्री मंत्र आणि वानर यांचा नेमका काय संबंध –  हे मात्र अनाकलनीय आहे. आज अनेक शेतकरी हा अनुभव प्रत्यक्ष घेत आहेत.

‘रानगोष्टी’  या डॉ. राजा दांडेकर यांच्या पुस्तकातील हा उतारा. गायत्री मंत्राचा महिमा सांगणारा. आजच त्याची आठवण होण्याचे कारण काय ? कारण कोकणातील एक फेसबुक मित्र श्री.अविनाश काळे यांची पोस्ट. ‘कोकणचे दुःख कोणी दूर करेल ?’  ह्या मथळ्याच्या पोस्टचा मथितार्थ असा की कोकणातील शेतकऱ्यांचे लाखो रुपयाचे नुकसान माकडे आणि वानरे यांच्यामुळे होत आहे. त्यांचा बंदोबस्त न झाल्यास कोकणातील शेतकऱ्यांवर आत्महत्या करण्याची वेळ ओढवणार आहे. हिमाचल प्रदेशमध्ये वानर आणि माकड यांना उपद्रवी पशू जाहीर करून मारायला सुरुवात केली. महाराष्ट्रातसुद्धा असे करण्याची गरज आहे.

हे वाचताना गायत्री मंत्राचा प्रभाव आठवला. वानरे, माकडे यांना जीवनिशी मारण्यापेक्षा शेतकरी मित्रांनी हा साधा, निरुपद्रवी उपाय करून पहायला काय हरकत आहे ?

‘एखाद्या मंत्राचा प्रभाव मान्य करणे ही श्रद्धा की अंधश्रद्धा?’ चा वाद जुनाच आहे. अशीही शक्यता आहे की एखादी विज्ञानाधिष्ठीत गोष्ट देवाधर्माच्या नावे सांगितली की लोकांना पटते, ते ऐकतात हे लक्षात आल्याने आपल्या पूर्वजांनी काही गोष्टी हुशारीने लोकांच्या गळी उतरवल्या असतील. आपल्याला त्यामागचे विज्ञान माहित नसल्याने आपण त्याला अंधश्रद्धेचे लेबल लावून मोकळे होतो !

भारतीय मानसिकतेला मंत्राचा प्रभाव, त्यामुळे होणारे चमत्कार हा मुद्दा नवीन नाही. मूल अक्षरओळख शिकण्याच्या आधीपासून घरच्यांकडून रामायण, महाभारतातील गोष्टी ऐकू लागते. अक्षरे ओळखता येऊ लागली की पौराणिक कथा वाचू लागते. (आताच्या नवीन पिढीत बहुधा हे होत नसावे.) बालवयातच ‘कुमारी माता’ कुंतीची कथा सामोरी येते. कुंतीने मनापासून दुर्वास ऋषींची सेवा केल्याने त्यांनी संतुष्ट होऊन अपत्यप्राप्तीसाठी देवांना वश करण्याचा मंत्र तिला दिला. तिने कुतूहलापोटी मंत्रजप करून सूर्याला आवाहन केले. सूर्य प्रगट होताच भयभीत होऊन त्याला परत जाण्यास सांगितले. मात्र ‘मंत्र व्यर्थ होऊ शकत नाही,’ असे सूर्य म्हणाला आणि सूर्यपुत्र कर्णाचा जन्म झाला.

भयकथा, गूढकथा यातही अघोरी विद्यांमध्ये विशिष्ट मंत्रांचे सामर्थ्य किती अचाट आहे हे वाचायला मिळते. ‘वशीकरण मंत्र साक्षात मनुष्यरुपात प्रगट झाला,’  वगैरे वाचताना मला भयंकर कुतूहल वाटत असे. जर खरेच असे काही प्रत्यक्षात घडत असेल तर ते आपल्याला निदान एकदा तरी बघायला मिळावे, असेही वाटून जाई.

विशिष्ट शब्द विशिष्ट पद्धतीने उच्चारणे म्हणजे मंत्र. या मंत्रोच्चारणाचा विधायक वापर आपण आपल्या दैनंदिन आयुष्यात करू शकलो तर आपले कितीतरी प्रॉब्लेम्स सुटतील!  खरंच मंत्रात शक्ती असते का ?  अलीकडेच व्हाॅट्स अप वर एक पोस्ट वाचायला मिळाली. त्यात या प्रश्नाचे उत्तर देण्याचा प्रयत्न केला होता. पोस्टचा मथितार्थ असा की एखाद्या माणसाने आपल्याला उद्देशून अपशब्द उच्चारले, शिव्या दिल्या तर आपल्याला संताप येतो. म्हणजेच त्या शब्दांमध्ये ताकद आहे. त्यामुळे निगेटिव्ह एनर्जी तयार होते. ह्याउलट कुणी आपले कौतुक केले, प्रेमाने बोलले तर आपल्याला प्रसन्न, आनंदी वाटतं. म्हणजेच पॉझिटिव्ह ऊर्जा निर्माण होते अगदी ह्याच प्रकारे मंत्रातील शब्दांतदेखील ऊर्जा, सामर्थ्य असते. हे मंत्र आपल्या ऋषीमुनींनी, जे वैज्ञानिक होते, संशोधनातून सिद्ध केले आहेत.

सचिन तेंडुलकर, राहुल द्रविड,विश्वविख्यात नेमबाज अंजली भागवत यांच्यासारखे अनेक खेळाडू ज्यांच्याकडे सल्ला घेण्यासाठी जात होते ते क्रीडामानसशास्त्रज्ञ व माजी इंटेलिजन्स ऑफिसर भीष्मराज बाम यांनी हा मुद्दा अगदी सोप्या भाषेत समजावून सांगितला आहे. ते म्हणतात,’ मंत्र म्हणजे काही शब्दांच्या किंवा वाक्यांच्या आधारे प्रगट होणारा एखादा प्रभावी विचार असतो. काही वेळा एखादा शब्द किंवा ओंकारासारखे अक्षर मंत्रजपासाठी वापरले जाते. तर कधी कधी काही ओळींचाही मंत्र असू शकतो. मंत्रजप हा एकाग्रतेसाठी अत्यंत प्रभावी उपाय आहे. आपल्या विचारांवर आपला ताबा नसेल तर विचार भरकटतातच. पण त्यासोबत आपलीसुद्धा अत्यंत त्रासदायक अशी फरफट होते. विचारांवर प्रभावी नियंत्रण ठेवण्यासाठी मंत्र उपयुक्त ! मंत्रातले शब्द ज्या अर्थाने वापरले असतील त्यावर तुमची पक्की श्रद्धा असायला हवी. म्हणून तर मंत्र हा तुमची ज्या गुरुवर श्रद्धा असेल, त्याच्याकडून मिळवायचा असतो. किंवा तो मंत्र तुमच्या स्वतःच्या अनुभवातून सिद्ध झालेला हवा. मग आपोआप तुमची त्याच्यावर श्रद्धा बसते.’

प्रभावी स्वसंवाद ( स्वतःसाठी सूचना)  लिहून काढून त्याचा मंत्रासारखा वापर करण्याबाबतही बाम सरांनी लिहिले आहे. Winning Habits या त्यांच्या मूळ इंग्लिश पुस्तकाचा ‘विजयाचे मानसशास्त्र’ या नावाने वंदना अत्रे यांच्या सहाय्याने मराठी अनुवाद केला आहे.

दैनंदिन जीवनात मारुती स्तोत्र, रामरक्षा (किंवा आपले आवडते स्तोत्र / मंत्र) म्हटले की प्रसन्न वाटतं, नकारात्मक विचार पळून जातात हा अनुभव तर सर्वांनीच घेतला असेल. ‘अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य’  अशीच रामरक्षेची सुरुवात आहे. बुधकौशिक ऋषींना स्वप्नात रामरक्षा स्फुरली. कुरवपूर (कर्नाटक) येथे श्री वासुदेवानंद सरस्वती (टेंबे स्वामी) यांना ‘दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा’  या अठरा अक्षरी प्रभावी मंत्राचा साक्षात्कार झाला.

अखंड नामस्मरण, मंत्रजप यामुळे आपल्या दैनंदिन जीवनात सकारात्मकता येत असेल, फायदा होत असेल तर ‘श्रद्धा – अंधश्रद्धा’ चा काथ्याकूट कशाला ? नियमितपणे, श्रद्धेने मंत्र जपावा हे उत्तम.

संग्राहिका: सौ. शशी नाडकर्णी-नाईक

फोन  नं. 8425933533

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – फुल किंवा पक्षी – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?फुल किंवा पक्षी ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

कळीचे हळुवार 

झाले फुल

फुल  इवले

झाडाचे मुल

पक्षापरी हे

फुल पाहूनी

आपसूक मना

पडते भुल

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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