हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 173 ☆ शेष.. विशेष…अशेष! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 माँ सरस्वती साधना संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी से हम आपको शीघ्र ही अवगत कराएँगे। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

☆  संजय उवाच # 173 शेष.. विशेष…अशेष! ?

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

संत कबीर का यह दोहा अपने अर्थ में सरल और भावार्थ में असीम विस्तार लिए हुए है। जैसे वृक्ष से झड़ा पत्ता दोबारा डाल पर नहीं लगता, वैसे ही मनुष्य देह बार-बार नहीं मिलती। मनुष्य देह बार-बार नहीं मिलती अर्थात दुर्लभ है। जिसे पाना कठिन हो, स्वाभाविक है कि उसका जतन किया जाए। देह नश्वर है, अत: जतन का तात्पर्य सदुपयोग से है।

ऐसा भी नहीं कि मनुष्य इस सच को जानता नहीं पर जानते-बूझते भी अधिकांश का जीवन पल-पल रीत रहा है, निरर्थक-सा क्षण-क्षण  बीत रहा है।

कोई हमारे निर्रथक समय का बोध करा दे या आत्मबोध उत्पन्न हो जाए तो प्राय: हम अतीत का पश्चाताप करने लगते हैं। जीवन में जो समय व्यतीत हो चुका, उसके लिए दुख मनाने लगते हैं। पत्थर की लकीर तो यह है कि जब हम अतीत का पश्चाताप कर रहे होते हैं, उसी समय   तात्कालिक वर्तमान अतीत हो रहा होता है।

अतीतजीवी भूतकाल से बाहर नहीं आ पाता, वर्तमान तक आ नहीं पाता, भविष्य में पहुँचने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। अपनी एक कविता स्मरण हो आ रही है,

हमेशा वर्तमान में जिया,

इसलिए अतीत से लड़ पाया,

तुम जीते रहे अतीत में,

खोया वर्तमान,

हारा अतीत

और भविष्य तो

तुमसे नितांत अपरिचित है,

क्योंकि भविष्य के खाते में

केवल वर्तमान तक पहुँचे

लोगों की नाम दर्ज़ होते हैं..!

अपने आप से दुखी एक अतीतजीवी के मन में बार-बार आत्महत्या का विचार आने लगा था। अपनी समस्या लेकर वह महर्षि रमण के पास पहुँचा। आश्रम में आनेवाले अतिथियों के लिए पत्तल बनाने में महर्षि और उनके शिष्य व्यस्त थे। पत्तल बनाते-बनाते  महर्षि रमण ने उस व्यक्ति की समस्या सुनी और चुपचाप पत्तल बनाते रहे। उत्तर की प्रतीक्षा करते-करते व्यक्ति खीझ गया। मनुष्य की विशेषता है  जिन प्रश्नों का उत्तर स्वयं वर्षों नहीं खोज पाता, किसी अन्य से उनका उत्तर क्षण भर में पाने की अपेक्षा करता है।

वह  चिढ़कर महर्षि से बोला, ‘आप पत्तल बनाने में मग्न हैं।  एक बार इन पर भोजन परोस दिया गया, उसके बाद तो इन्हें फेंक ही दिया जाएगा न। फिर क्यों इन्हें इतनी बारीकी से बना रहे हैं, क्यों इसके लिए इतना समय दे रहे हैं?’

महर्षि मुस्कराकर शांत भाव से बोले, ‘यह सत्य है कि पत्तल उपयोग के बाद नष्ट हो जाएगी। मर्त्यलोक में नश्वरता अवश्यंभावी है तथापि मृत्यु से पहले जन्म का सदुपयोग करना ही जीवात्मा का लक्ष्य होना चाहिए। सदुपयोग क्षण-क्षण का। अतीत बीत चुका, भविष्य आया नहीं। वर्तमान को जीने से ही जीवन को जिया जा सकता है, जन्म को सार्थक किया जा सकता है, दुर्लभ मनुज जन्म को भवसागर पार करने का माध्यम बनाया जा सकता है। इसका एक ही तरीका है, हर पल जियो, हर पल वर्तमान जियो।’

स्मरण रहे, व्यतीत हो गया, सो अतीत हो गया। अब जो शेष है, वही विशेष है। विशेष पर ध्यान दिया जाए, जीवन को सार्थक जिया जाए तो देह के जाने के बाद भी मनुष्य रहता अशेष है।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 124 ☆ ~  कृति चर्चा ~ मधुर निनाद : गीत संग्रह ~गोपालकृष्ण चौरसिया “मधुर” ☆ चर्चाकार – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा  गोपालकृष्ण चौरसिया “मधुर” के गीत संग्रह “~ मधुर निनाद ~” पर चर्चा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 124 ☆ 

 कृति चर्चा ~ मधुर निनाद : गीत संग्रह ~गोपालकृष्ण चौरसिया “मधुर” ☆ चर्चाकार – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

पुस्तक विवरण –

मधुर निनाद, गीत संग्रह

गोपालकृष्ण चौरसिया “मधुर”

प्रथम संस्करण २०१७

पृष्ठ १३५

मूल्य २००/-

साहित्यागार प्रकाशन, जयपुर

गीतकार संपर्क चलभाष ८१२७७८९७१०, दूरभाष ०७६१ २६५५५९९)

(आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी सजिल्द जैकेट सहित)

समीक्षक – आचार्य संजीव वर्मा “सलिल”

छंद हीन कविता और तथाकथित नवगीतों के कृत्रिम आर्तनाद से ऊबे अंतर्मन को मधुर निनाद के रस-लय-भाव भरे गीतों का रसपान कर मरुथल की तप्त बालू में वर्षा की तरह सुखद प्रतीति होती है। विसंगतियों और विडम्बनाओं को साहित्य सृजन का लक्श्य मान लेने के वर्तमान दुष्काल में सनातन सलिला नर्मदा के अंचल में स्थित संस्कारधानी जबलपुर में निवास कर रहे अभियंता कवि गोपालकृष्ण चौरसिया “मधुर” का उपनाम ही मधुर नहीं है, उनके गीत भी कृष्ण-वेणु की तान की तरह सुमधुर हैं। कृति के आवरण चित्र में वेणु वादन के सुरों में लीन राधा-कृष्ण और मयूर की छवि ही नहीं, शीर्षक मधुर निनाद भी पाठक को गीतों में अंतर्निहित माधुर्य की प्रतीति करा देता है। प्रख्यात संस्कृत विद्वान आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी ने अपने अभिमत में ठीक ही लिखा है कि मधुर निनाद का अवतरण एक साहित्यिक और रसराज, ब्रजराज की आह्लादिनी शक्ति श्री राधा के अनुपम प्रेम से आप्लावित अत:करण के मधुरतम स्वर का उद्घोष है…..प्रत्येक गीत जहाँ मधुर निनाद शीर्षक को सार्थक करता हुआ नाद ब्रह्म की चिन्मय पीठिका पर विराजित है, वहीं शब्द-शिल्प उपमान चयन पारंपरिकता का आश्रय लेता हुआ चिन्मय श्रृंगार को प्रस्तुत करता है।

विवेच्य कृति में कवि के कैशोर्य से अब तक गत पाँच दशकों से अधिक कालावधि की प्रतिनिधि रचनाएँ हैं। स्वाभाविक है कि कैशोर्य और तारुण्य काल की गीति रचनाओं में रूमानी कल्पनाओं का प्रवेश हो।

इंसान को क्या दे सकोगे?, फूलों सा जग को महकाओ, रे माँझी! अभी न लेना ठाँव, कब से दर-दर भटक रहा है, रूठो नहीं यार आज, युग परिवर्तन चाह रहा, मैं काँटों में राह बनाता जाऊँगा आदि गीतों में अतीत की प्रतीति सहज ही की जा सकती है। इन गीतों का परिपक्व शिल्प, संतुलित भावाभिव्यक्ति, सटीक बिंबादि उस समय अभियांत्रिकी पढ़ रहे कवि की सामर्थ्य और संस्कार के परिचायक हैं।

इनमें व्याप्त गीतानुशासन और शाब्दिक सटीकता का मूल कवि के पारिवारिक संस्कारों में है। कवि के पिता स्वतंत्रता सत्याग्रही स्मृतिशेष माणिकलाल मुसाफिर तथा अग्रजद्वय स्मृतिशेष प्रो. जवाहर लाल चौरसिया “तरुण” व श्री कृष्ण कुमार चौरसिया “पथिक” समर्थ कवि रहे हैं किंतु प्राप्य को स्वीकार कर उसका संवर्धन करने का पूरा श्रेय कवि को है। इन गीतों के कथ्य में कैशोर्योचित रूमानियत के साथ ईश्वर के प्रति लगन के अंकुर भी दृष्टव्य हैं। कवि के भावी जीवन में आध्यात्मिकता के प्रवेश का संकेत इन गीतों में है।

समीक्षक – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-१२-२०२२, ७•३२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #153 ☆ आलेख – उधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 153 ☆

☆ ‌आलेख – उधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

अगर सच कहा जाय तो सूर दास जी द्वारा रचित कृष्ण-चरित पर आधारित सूर सागर में जितना सुंदर कथानक प्रेम में संयोग श्रृंगार का है, उससे भी कहीं अनंत गुना अधिक आत्मस्पर्शी वर्णन उन्होंने वियोग श्रृंगार का किया है। कृष्ण जी की ब्रजमंडल में की गई बाल लीलाएं जहां मन को मुदित करती है, एक एक रचना का सौंदर्य, बाल लीला की घटनाएं जहां आनंदातिरेक में प्रवाहित कर देती है, वहीं प्रेम के वियोग श्रृंगार श्रृंखला की रचनाएं बहाती नहीं बल्कि पाठक वर्ग को करूणा रस में डुबा देती है। कृष्ण की स्मृतियों ने जहां ब्रज मंडल की गोपिकाओं तथा राधा को विक्षिप्तता की स्थिति में ला खड़ा किया है, वो कृष्ण की स्मृतियों में खोई कृष्णमयी हो गई है, जिसे पढ़ते हुए समस्त पाठक वर्ग को आत्मविभोरता की स्थिति में ला के खड़ा कर देती है।

इसका जीवंत उदाहरण कृष्ण उधव तथा उधव गोपियों के संवाद में दिखाई देता है तो वहीं दूसरी ओर कृष्ण जी मात्र गोपियों को ही नहीं याद करते बल्कि उनके स्मृतियों में तो पूरा का पूरा ब्रजमंडल ही समाया हुआ है, जो ईश्वरीय चिंतन के असीमित विस्तार को दिखाता है। जब कृष्ण जी कहते हैं कि – “उधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं”।

तब- कालिंदी कुंज की यादें, यशोदा के साथ की गई बाल लीला प्रसंग ,गायों तथा गोपसमूहो के साथ बिताए गए दिन, तथा गोपियों और राधिका के साथ बिताए पलों को तथा ब्रज मंडल के महारास लीला को भूल नहीं पाते–

बिहारी जी के शब्दों में वे अनोखी घटनाएं –

बतरस लालच लाल की,

मुरली धरी लुकाय।

सौंह करै, भौंहन हँसे,

देन कहै नटि जाय॥

तथा छछिया भर छांछ पर नाचना आज भी नहीं भूला है कृष्ण को साथ ही याद है मइया यशोदा के हाथ का माखन याद है ब्रज की गलियां। तभी तो अपने हृदय की बात कहते हुए अपने सखा उधव से अपने मन की बात कह ही देते हैं- “उधव मोहि ब्रज बिसरत नाही”।

ऐसा भी नहीं है कि कृष्ण को ही मात्र ब्रज की यादें व्यथित किए हुए हो, बल्कि सारा ब्रजमंडल ही कृष्ण  वियोग की यादों में पगलाया हुआ है। जिसकी झांकी जब ऊधव ब्रज की गोपियों को निराकार ब्रह्म का उपदेश देने जाते हैं तब रास्ते के कांटे भी ऊधव जी को प्रेम का अर्थ समझाते हुए प्रतीत होते हैं जिसका यथार्थ चित्रण बिंदु जी की रचनाओं में दृष्टि गोचर होता है।

चले मथुरा से दूर कुछ जब दूर वृन्दावन नज़र आया,

वहीं से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया,

उलझकर वस्त्र में काँटें लगे उधौ को समझाने,

तुम्हारे ज्ञान का पर्दा फाड़ देंगे यहाँ दीवाने।

है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं॥

यह प्रेम की गहन अनुभूति ही नहीं कराता अपितु ऊधव को मजबूर कर प्रेम के सागर में डुबो देता है।   फिर तो एक हाथ यशोदा का माखन तथा दूसरे में राधा द्वारा दी गई मुरली लिए  राधे राधे गा उठते है। और लौट आते हैं अपने बाल सखा के पास। भला प्रेम के वियोग श्रृंगार का ऐसा उत्कृष्ट और अनूठा  चित्रण सूरसागर के अलावा कहां मिलेगा।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

(5–10–2022, दिन में 9–00बजे)

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ साहित्य की दुनिया ☆ प्रस्तुति – श्री कमलेश भारतीय ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्य की दुनिया – श्री कमलेश भारतीय  🌹

(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है । देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)

साहित्य सभा : साहित्य की अलख जलाये रखने में विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं का बड़ा योगदान है । हरियाणा के कैथल में पिछले पचास साल से साहित्य सभा काम कर रही है जिसके इस समय अध्यक्ष प्रसिद्ध रचनाकार डाॅ अमृतलाल मदान हैं । यह साहित्य सभा हर वर्ष सम्मान और पुरस्कार देने के साथ साथ नवप्रकाशित पुस्तकों का लोकार्पण भी करती है । पचास साल कम नहीं होते और यह अलख जलती ही जा रही है ।

हिसार का सर्वोदय भवन : इसी तरह हिसार के सर्वोदय भवन में साप्ताहिक गोष्ठियों के सिलसिले को भी पचास वर्ष से ऊपर हो गये । यहां भी अनेक विचारक व्याख्यान के लिए पधार चुके हैं । विनोबा भावे के साथ जुड़े इस गांधी विचारधारा से जुड़े सर्वोदय भवन को आजकल प्रसिद्ध अधिवक्ता पी के संधीर संभाल रहे हैं और यहां अच्छा पुस्तकालय भी है । अनेक संस्थायें यहां अपने आयोजन करती हैं । यहां गांधी व बिनोवा भावे  की पुस्तकों के अंशों का पाठ भी किया जाता है ।

हिसार का रंग आंगन नाट्य महोत्सव : हिसार के रंगकर्मी मनीष जोशी की ओर से प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले रंग आंगन नाट्योत्सव की बात अब हरियाणा से निकल कर देर दराज प्रदेशों तक पहुंच चुकी है । यह आठ दिवसीय नाट्योत्सव कितने ही नये से नये और अलग मिजाज के नाटक लेकर आता है और सचमुच अब यह ऐसा उत्सव बन गया जिसका साल भर इंतजार रहता है । इसमें रंगकर्मियों को सम्मानित कर उनका उत्साहवर्धन भी किया जाता है । मनीष जोशी और राखी जोशी को सैल्यूट। अभी संस्कार भारती की भी शाखा ने इनकी संस्था रेयाज में काव्य गोष्ठी की शुरूआत की है ।

युवक सदन, सिरसा : सिरसा के युवक सदन का काफी योगदान है और यह तीन चार मित्रों ने चंदा एकत्रित कर बनवाया था । आज यह युवक सदन साहित्यिक और सामाजिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बना हुआ है । आमतौर पर साहित्यिक आयोजन यहीं होते हैं ।

गुरुग्राम में साहित्य : हरियाणा के आईटी हब कहे जाने वाले गुरुग्राम में साहित्यिक गतिविधियां चलती रहती हैं । रचनाकार नरेंद्र गौड़ की संस्था शब्द शक्ति यहां कोई न कोई आयोजन करती रहती है । आजकल तो प्रसिद्ध व्यंग्यकार डाॅ प्रेम जनमेजय भी गुरुग्राम में व्यंग्य यात्रा की गोष्ठियों का आयोजन अपने घर की छत पर कर रहे हैं जो बहुत सफल हो रही हैं । मेरे कथा संग्रह यह आम रास्ता नहीं है पर गोष्ठी इसी छत पर करवाई थी जिसमें प्रसिद्ध पत्रकार राहुल देव, अनूप लाठर, रेणु हुसैन, अशोक जैन, मुकेश शर्मा, कृष्णा यादव, राकेश मलिक जैसे मित्र आये थे । डाॅ प्रेम जनमेजय के इस नये आइडिया ने साहित्य की दुनिया में नया प्रयोग किया । अशोक जैन यहीं से दृष्टि पत्रिका संपादित व प्रकाशित कर रहे हैं । गुरुग्राम में ही लक्ष्मी शंकर वाजपेयी और ममता किरण भी अपने आवास पर गोष्ठियां कर महफिल जमाये रहते हैं । सविता स्याल ने दोस्ती संकलन का संपादन और विमोचन करवाया था । शील मधुर यहां से पत्रिका प्रकाशित करते रहे हैं ।

करनाल में पाश पुस्तकालय की याद : करनाल में एक समय विभूति नारायण राय ने पाश पुस्तकालय बनवाया था और यह साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना रहा लेकिन फिर इसे अलविदा कह दिया गया और इसे बचाया न जा सका । इसके बावजूद इसकी यादें बनी हुई हैं । करनाल में ही हरियाणा लेखक मंच ने कमलेश भारतीय और डाॅ अशोक भाटिया के प्रयासों से एक साहित्यिक आयोजन किया जिसमें एक सौ लेखक शामिल हुए और इसमें ज्ञानप्रकाश विवेक ने कथा पर तो हरभगवान चावला ने कविता पर हरियाणा के योगदान पर व्याख्यान दिये ।

मित्रो ! इस बार के लिये इतना ही । अगली बार फिर मिलेंगे नयी गतिविधियों के साथ ।

साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क – 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत 🌹

(विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

🌹🌹

हिन्दी भवन  में पुस्तक  मेला  का आयोजन संपन्न हुआ। जिसके  अंतर्गत  बच्चों के लिए  निबन्ध  प्रतायोगिता भी रखी गई। इसमें बीस बच्चों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में उत्कृष्ट  लेखन वाले तीन बच्चों को पुरस्कृत  किया गया। मुख्य अतिथि हिन्दी भवन के प्रभारी संचालक डॉ. सुरेन्द्र  बिहारी गोस्वामी थे।

🌹🌹

भोपाल की प्रसिद्ध सांस्कृतिक संस्था अभिनव कला परिषद्,  द्वारा बुधवार दिनांक 25 जनवरी 2023 को मानस भवन श्यामला हिल्स पर अपनी गौरवशाली  60 वीं सालगिरह पर हीरक जयंती एव॔ कला-पर्व उत्सव गणंतत्र समारोह मनाया गया। इस परम्परा गत आयोजन मे गीत संगीत के साथ ही प्रदेश व देश की तीन पीढियों की आठ यशस्वी सर्जनात्मक चेतनाओं – सर्वश्री हरिवल्लभ शर्मा ‘हरि’, राम मोहन चौकसे, राजेन्द्र गट्टानी, शैलेन्द्र शरण, मीरा जैन, मलय जैन, डाॅ. विकास दवे एवं डाॅ. अरुण तिवारी को उनकी सुदीर्घ साहित्यिक सेवाओं के लिये “अभिनव शब्द शिल्पी” अलंकरण से विभूषित कर सम्मानित किया गया।

🌹🌹

वाल्मी संस्थान में लेखक प्रलय श्रीवास्तव   की ‘मप्र में चुनाव और नवाचार’ पुस्तक की लांचिंग छत्तीसगढ की राज्यपाल महामहिम अनुसूइया जी द्वारा की गई विशिष्ट अतिथि ओ पी रावत थे। अन्य विशिष्ट अतिथि थे, विजयदत्त श्रीधर, महेश श्रीवास्तव, एन के सिंह, उमेश त्रिवेदी,तथा रमेश शर्मा

🌹🌹

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय  में लोक रूचि व्याख्यान माला में मानव वैज्ञानिक  सुमिता चक्रवर्ती का व्याख्यान हुआ। विषय था ‘कल्चर एन्ड  ट्रेडिशन टेल्स आफ एक्सपीरियंस विथ द जरवा आफ अडंमान आइलैंड’

🌹🌹

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा निवास कार्यालय सभागार में रतलाम के नेचरोपेथी थेरेपिस्ट डाॅ संतोष गुप्ता की पुस्तक “माय नेचरल हीलर” का विमोचन किया।

🌹🌹

मध्य प्रदेश उर्दु अकादमी की ओर से आयोजित जश्न-ए-उर्दु  के तीसरे सत्र में “साहित्य और मीडिया का सह संबंध” विषय  पर चर्चा के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार एवं निदेशक  साहित्य अकादमी ने कहा – “नई पीढ़ी को भाषा और साहित्य के करीब लाना एक चुनौती है”

🌹🌹

भोपाल। गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र कवि श्रीकृष्ण ‘सरल’ को समर्पित मध्यप्रदेश लेखक संघ की प्रादेशिक वीर रस / राष्ट्रभक्ति काव्य गोष्ठी गीत गणतंत्र का आयोजन हिन्दी भवन में वरिष्ठ ओज कवि श्री पँवार राजस्थानी के मुख्य आतिथ्य, साहित्यकार डाॅ. धर्मेन्द्र शर्मा ‘सरल’ के सारस्वत आतिथ्य तथा संघ के प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. राम वल्लभ आचार्य की अध्यक्षता में किया गया। इस अवसर पर देश प्रदेश के चर्चित कवि सर्वश्री पँवार राजस्थानी, डाॅ. राम वल्लभ आचार्य, सुरेन्द्र जैन सरस,  डाॅ. मोहन तिवारी ‘आनन्द’, दिनेश मालवीय, डाॅ. अर्जुन दास खत्री, डाॅ. क्षमा पाण्डेय, कमल किशोर दुबे, विकास लोया, श्रीमती रूपाली सक्सेना, अभिषेक जैन ‘अबोध’ एवं डाॅ. सुशील ‘गुरु’ ने अपनी ओजस्वी  वाणी में कविताएं पढी।

🌹🌹

भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव का तीन दिनी महोत्सव 21 जनवरी को मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय  राज्य  मंत्री डाॅ.जितेन्द्रसिंह की उपस्थिति में हुआ। इसके मुख्य आकर्षण थे आर्टिसन्स टेक्नोलाजी  विलेज,इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल आफ इंडिया मेगा साइंस एन्ड टेक्नोलाॅजी एग्जिबिशन, न्यू एज टेकनालाॅजी शो, स्टार्ट अप कानक्लेव,स्टूडेन्ट साइंस विलेज, यंग साइंटिस्ट  विलेज, यंग साइंटिस्ट कान्फ्रेंस,साइंस थ्रू गेम्स एंड टाॅइज। एक सत्र साइंस लिटरेचर फेस्टिवल का भी था जिसमें बड़ी संख्या में विद्वानों, शिक्षाविद तथा विद्यार्थियो ने भाग लिया।

🌹🌹

मानस भवन में ‘महिला मानस मंच’  द्वारा बसंतोत्सव का आयोजन  किया गया जिसमें तात्कालिक  भाषण प्रतियोगिता, भजन, रांगोली तथा थाली सजाओ प्रतियोगिताएं की गई। आयोजन के अध्यक्ष प्रतिष्ठान के कार्याध्यक्ष श्री रघुनन्दन शर्मा थे।

🌹 🌹

साभार – सुश्री मनोरमा पंत, भोपाल (मध्यप्रदेश) 

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भीष्मविषाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? कवितेचा उत्सव ? 

☆ भीष्मविषाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

पडून पंजरी पार्थ शरांच्या प्रतीक्षा करी मृत्यूची

आंस लागली उत्तरायणी नसे वासना जन्माची ||ध्रु||

 

पांचालीच्या अब्रूसाठी फुरफुरले ना हे बाहू

किती विनविले चरणांपाशी किती काय मी साहू

एक वस्त्र ना पुरे पडावे होळी झाली लज्जेची

लाज राखली कृष्ण बांधवे वाण नसे मग चीरांची ||१||

 

हाच काय पुरुषार्थ आमुचा शिखंडी ही वाटतो भला

पुरुष नसोनी न्यायासाठी धाक दावितो किती मला

शौर्य आमुचे क्लैब्य जाहले शस्त्रे ही गाळायची

धनंजयाचे बाण झेलुनी काया मग अर्पायाची ||२||

 

पश्चात्ताप हा जाळुनिया आत्म्याला नी कायेला

देहासाठी शरपंजर परी ना आधार शीराला

मस्तकाचे क्लेश जाणुनी तीर धावले  पार्थाचे

परतफेड ही धनंजयाची उपकारे  अन्यायाची ||३||

© डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कर्म आणि मर्म ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

🖊️ कर्म आणि मर्म 🖊️ श्री प्रमोद वामन वर्तक ⭐ 

कर्म…

जे असते लिहिले यात

नाही कधीच चुकायचे,

याच जन्मी इथेच सारे

सर्वांनी बघा भोगायचे !

 

          आपले आपण करावे

          न धरीता फळाची आशा,

          मग कधी पडणार नाही

          पदरी तुमच्या निराशा !

 

… आणि मर्म !

अती जवळ येता कोणी

तो सारे आपले जाणतो,

मतलब साधण्या स्वतःचा

यावर नेमके बोट ठेवतो !

 

          यात बांधून कुणी ठेव

          ती आयुष्यभर जपतो,

          कोणी दुखवण्या कोणा

          यावर तो घाव घालतो !

© प्रमोद वामन वर्तक

दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086

ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – काव्यानंद ☆ या झोपडीत माझ्या… कवी राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ☆ रसग्रहण – सौ. सुचित्रा पवार ☆

सौ. सुचित्रा पवार

? काव्यानंद ?

☆ या झोपडीत माझ्या… कवी राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ☆ रसग्रहण – सौ. सुचित्रा पवार

☆ या झोपडीत माझ्या… कवी राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ☆

राजास जी महाली

   सौख्ये कधी मिळाली

   ती सर्व प्राप्त झाली

   या झोपडीत माझ्या….

 

भूमीवरी पडावे

ताऱ्यांकडे पहावे

प्रभूनाम नित्य गावे

या झोपडीत माझ्या..

 

पहारे आणि तिजोऱ्या

त्यातून होती चोऱ्या

दारास नाही दोऱ्या

या झोपडीत माझ्या

 

  जाता तया महाला

    ‘मज्जाव’शब्द आला

    भीती न यावयाला

     या झोपडीत माझ्या.

 

   महाली मऊ बिछाने

   कंदील श्यामदाने

    आम्हा जमीन माने

     या झोपडीत माझ्या..

 

   येता तरी सुखे या

    जाता तरी सुखे जा

    कोणावरी ना बोजा

     या झोपडीत माझ्या

 

  पाहून सौख्य माझे

       देवेन्द्र तो ही लाजे

        शांती सदा विराजे

         या झोपडीत माझ्या..

राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज

 – कवी राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज

☆ या झोपडीत माझ्या… कवी राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ☆ रसग्रहण – सौ. सुचित्रा पवार

झोपडी म्हणलं की आपल्या डोळ्यासमोर येते ती झोपडपट्टी,झोपड्यांची गळकी वस्ती,दुःख, दैन्य,दारिद्र्य,बकाल वस्ती आणि तिथली व्यसनाधीनता,अस्वच्छता,

गुन्हेगारी.थोडक्यात जिवंतपणी नरक.

मोठमोठ्या शहरात अशाच प्रकारचे चित्र असते.आणि बऱ्याचदा झोपड्या हटत नाहीत त्याला झोपडपट्टीचे एक राजकारण असते.बऱ्याचदा बेरकी माणसांच्या  परिस्थितीची ती एक ढाल असते.

राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराजांनी  त्यांच्या एका कवितेत वर्णन केलेली झोपडी मात्र खूपच आगळी वेगळी आहे.प्राप्त परिस्थितीत सुखी राहण्याचा जणू आनंदी मंत्र!

  राजास जी महाली

   सौख्ये कधी मिळाली

   ती सर्व प्राप्त झाली

   या झोपडीत माझ्या….

राजाचा महालसुद्धा माझ्या झोपडीपुढं फिका आहे कारण त्याला इतका खर्च करून बांधलेल्या महालात जी सुख समृद्धी लाभल्या ती माझ्या चंद्रमौळी झोपडीमध्ये काहीच खर्च न करता अनुभवतो आहे.कोणती सौख्ये कवी अनुभवत आहे?

भूमीवरी पडावे

ताऱ्यांकडे पहावे

प्रभूनाम नित्य गावे

या झोपडीत माझ्या..

साधी गोष्ट आहे!तुम्ही सहजच माझ्या झोपडीतल्या जमिनिवर झोपलात तर आकाशात नजर जाईल आणि असंख्य लुकलुकत्या चांदण्या तुमचं मन वेधून घेतील.ते चांदण्याचे आभाळ दिलासा देत असतानाच मुखात मात्र प्रभूचे नाव नित्य असते  कारण त्याचीच तर सर्व कृपा आहे.हे चांदण्यांचे आकाश,ही हवा, हा स्वच्छ सूर्यप्रकाश त्याचीच तर रूपे आहेत!त्याच्याच कृपेने आपण हे सारे अनुभवतो आणि श्वासदेखील घेतो.या माझ्या झोपडीत फक्त इतकेच करायचेआहे.

महालात हे काहीच तुम्हाला अनुभवता येणार नाही.

पहारे आणि तिजोऱ्या

त्यातून होती चोऱ्या

दारास नाही दोऱ्या

या झोपडीत माझ्या

महालात रात्रंदिवस पहारेकरी दाराशी असतात, गस्त घालतात.संपत्तीचे रक्षण करण्यासाठी मोठमोठ्या अवजड तिजोऱ्या असतात तरीही तिथं चोरी होतेच पण झोपडीत माझ्या ही भीती मुळीच नाही.माझ्या झोपडीला दरवाजा नाही,पहारेकरी नाहीत की लुटारूनी चोरून नेण्यासाठी ऐहिक संपत्तीदेखील ;त्यामुळं चोरी होऊच शकत नाही. अष्टौप्रहर माझी झोपडी कुणालाही सामावून घेण्यास सज्ज असते.असे असूनही चोर मात्र कधीच चोरी करत नाहीत.(कारण ऐहिक असते त्यालाच लोक मौल्यवान म्हणतात आणि आत्मिक अदृश्य चिरंतन असते त्याला मात्र सोडून देतात)

      जाता तया महाला

    ‘मज्जाव’शब्द आला

    भीती न यावयाला

     या झोपडीत माझ्या..

महालात तुम्ही सहज जावयाचे म्हणले तर पहारेकरी लगेच अडवतात,आत जायला मज्जाव अर्थात बंदी असते पण इकडं माझ्या झोपडीच्या शब्दकोशात मज्जाव हा शब्दच नाही.ती कुणालाही सहजच आत सामावून घेते.कुठलाही पहारेकरी तुम्हाला दरडावणार नाही की भीतीही घालणार नाही.सहजच कुणीही यावे न माझ्या झोपडीत विसावावे.

       महाली मऊ बिछाने

   कंदील श्यामदाने

    आम्हा जमीन माने

     या झोपडीत माझ्या..

महालात सर्वांना झोपायला मऊ मऊ बिछाने असतात.परांच्या गाद्या,मऊ उश्या डोक्याखाली, पांघरायला ऊबदार पांघरुण असतात.वर छताला छान छान ,आकर्षक झुंबरे,प्रकाशासाठी कंदील- शामदाने लटकवलेली असतात.छान,शांत झोपेसाठी सर्वप्रकारच्या सोयी सुविधा केलेल्या असतात पण तरीही सुखाच्या झोपेची शाश्वती नसते; मात्र आमच्या झोपडीत जमीन अंथरायला, आभाळ पांघरायला असते,जमिनीला पाठ लागताच शांत सुखाची झोप लागते.

      येता तरी सुखे या

    जाता तरी सुखे जा

    कोणावरी ना बोजा

     या झोपडीत माझ्या..

महालात जाताना सर्वसामान्य माणसाला एक अनामिक भीती,दडपण असते.तिथल्या भव्य -दिव्यपणाने उर दडपतो; पण झोपडीत तुम्हाला असे काही वाटणार नाही.माझ्या या झोपडीत प्रत्येकाने कधीही केंव्हाही आनंदाने यावे-जावे,इथं कुठलंच भय नाही की अवघडलेपण वाटणार नाही.

      पाहून सौख्य माझे

       देवेन्द्र तो ही लाजे

        शांती सदा विराजे

         या झोपडीत माझ्या..

असं हे झोपडीतलं वैभव आणि सौख्य पाहून प्रत्यक्षात इंद्राला सुद्धा लाज वाटते,इंद्रसुद्धा माझ्या झोपडीचा आणि तेथील सौख्याचा हेवा करतो,यापेक्षा झोपडीतली महानता मी काय वर्णावी?माझ्या या झोपडीत नेहमीच शांतता वसते.आणि जिथे शांती तिथेच सौख्य आणि समाधानही.

अगदी साध्या सोप्या शब्दात तुकडोजी आपल्या झोपडीचे वर्णन करतात.माणसाचे चित्त समाधानी असेल तर त्याला कोणत्याही भौतिक ऐश्वर्याची गरज नसते हेच यातून सूचित होते.माणूस भौतिक सुखांच्या मागे लागतो आणि चिरंतन,शाश्वत मनाची शांती हरवून बसतो.कितीही सुख मिळाले तरी त्याचे मन भरत नाही आणि हाव सुटत राहते.यातच त्याचे मानसिक स्वास्थ्य हरवते आणि सुखाची निद्रा देखील.

एखाद्या शेतकऱ्याच्या बांधावरील खोपसुद्धा अशीच असते ना?खोपीत सुद्धा हेच सुख असते.

काय नसते या झोपडीत?

समोरील शेत शिवार,नाना पाखरांचे नाना आवाज,भिरभिरता मोकळा वारा,काम करून भूक लागल्यावर खाल्लेली अमृताहून रुचकर खर्डा भाकरी महालातील पंच पक्वान्नाला मागे सारते.

सुखाचे परिमाण आपल्या मनातच असते.म्हणूनच महालात सर्व सुखे असून तिथली माणसे सुखी असतीलच असे नाही आणि झोपडीत काही नाही म्हणून तिथली माणसे दुःखी असतीलच असेही नाही.

© सौ.सुचित्रा पवार 

तासगाव, सांगली

8055690240

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ सहृदय— भाग 1 ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले ☆

डॉ. ज्योती गोडबोले

?जीवनरंग ?

☆ सहृदय— भाग 1 ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले ☆

हॉस्पिटल मध्ये तुडुंब गर्दी होती. ओ पी डी तर ओसंडून वहात होती. डॉ. विश्वासने नर्सला विचारले, “ किती आहेत अजून लोक ग?”

” सर,आज तुम्हाला उशीर होणार घरी जायला.  पुन्हा उद्याची चार मोतीबिंदूची ऑपरेशन्स ठरली आहेतच.”

“ बरं, ठीक आहे. वरचं वर्षाबाईंचं काम आवरलं का. संपली का तिची ओ पी डी.? त्यांना म्हणावं एकदमच जाऊ आता “

“हो, बघते जाऊन. विचारते.”

सगळे  पेशंट तपासून झाले आणि एक बाई बसल्या होत्या, पण त्यांना मात्र घाई दिसत नव्हती. सिस्टरने त्यांना आत बोलावले. डॉक्टरांनी त्यांचे डोळे तपासले आणि म्हणाले, “ बाई, तुमचा एक मोतीबिंदू पिकलाय, त्याचे ऑपरेशन करावे लागेल. दुसरा डोळा  चांगला आहे.” 

बाई म्हणाल्या, “ हो,मला कल्पना आहे. पण डॉक्टर,खर्च किती येईल?मी वृद्धाश्रमात राहते, पण पैसे देईन मी तुमचे.  सवलत दिलीत, तर थोडे थोडे करून नक्की देईन. निम्मे आधी भरेन मी. “

डॉक्टरांनी त्यांच्याकडे बघितले.वृद्धाश्रमात राहण्याइतक्या त्या वृद्ध दिसत नव्हत्या. असतील साठीच्या आसपास.

“ बिलाचे बघूया नंतर.”डॉक्टर म्हणाले, “ पण तुमच्या बरोबर कोणी येणार आहे ना,ऑपरेशनच्या दिवशी?”

“ हो. माझी मैत्रीण येईल माझ्या बरोबर. पण तुम्ही मला ठेवून नाही ना घेणार? चार तासात सोडतात ना “ त्यांनी घाईघाईने विचारले ..

डॉक्टर हसले,आणि म्हणाले,” हो हो! तुम्ही चार तासात घरी जाल.” 

बाई अतिशय सभ्य सुसंस्कृत दिसत होत्या. डॉक्टरांनी काय तपासण्या कराव्या लागतील त्याची यादी दिली आणि  रिपोर्ट्स घेऊन बोलावले. बाई दोन दिवसात रिपोर्ट्स घेऊन आल्या. ते तपासून डॉक्टर म्हणाले, “ परवा आपण तुमचे करून  टाकू ऑपरेशन. चालेल ना?” 

“ पण सर, तुम्ही अजून पैशाचे बोललाच नाहीत. मी हे आत्ता  वीस हजारच देऊ शकते. मग दरमहा हजार देऊ शकेन. खात्री बाळगा, मी तुमचे पैसे बुडवण्याचे पाप करणार नाही.” 

“ ठीक आहे हो, चालेल. पण अजून मी तुमचे नावच विचारले नाही की.” 

बाई म्हणाल्या,” मीही सांगितले नाही. मी श्रीमती सुधा निमकर.” 

डॉक्टरांनी चमकून बघितले, “ बाई, अभय निमकर तुमचा कोण ?” 

“मुलगा !  तो इंग्लंडला मोठा सर्जन आहे.”

“काय सांगता सुधाताई? अभय तुमचा मुलगा आहे ?अहो,आम्ही एकाच कॉलेजातून डॉक्टर झालो .

माझा वर्गमित्र आहे अभय. तरीच मला तुम्हाला खूप पाहिल्यासारखे वाटत होते. मी खूप वेळा आलोय तुमच्या घरी.

जेवलोय सुद्धा तुमच्या हातचे अनेक वेळा. माफ करा हं, पण खूप वर्षे झाली ना,म्हणून ओळखले नाही तुम्हाला.” 

“अहो,ठीक आहे, कितीतरी वर्षे  झाली ना. बदल होतात हो माणसात.परिस्थिती बदलते.”

— डॉक्टरांना जास्त विचारण्याचे धैर्य झाले नाही. ठरलेल्या दिवशी बाईंची शस्त्रक्रिया छान पार पडली. डॉक्टर सुधाताईंच्या खोलीत आले…..  

” ताई, अगदी छान झाले हं ऑपरेशन. मी एक विनंती करू का? तुम्हाला मी आज आणि उद्या इथेच ठेवून घेतोय. आम्ही वरच राहतो. मी आणि माझी पत्नी वर्षा, दोघेही डॉक्टर आहोत ना. तिचे दुसऱ्या मजल्यावर प्रसूतिगृह आहे. आम्ही तिसऱ्या मजल्यावर राहतो. तुम्हाला जेवण वगैरे सगळे आम्हीच देऊ, आणि मग दोन दिवसांनी तुम्हाला डिस्चार्ज देऊ. चालेल ना?” 

सुधाताई संकोचल्या. म्हणाल्या,””अहो उगीच कशाला तुम्हाला त्रास ! मी अगदी छान आहे की आता. पण तुम्ही म्हणताय तर राहीन मी इथे.” बोलतांना सुधाताईंच्या डोळ्यात पाणी चमकले.

डॉक्टर राऊंड संपवून निघून गेले. रात्री वर्षाशी बोलताना डॉक्टर विश्वास म्हणाले,” नक्की काय ग झाले असेल?

इतक्या सुसंस्कृत बाई, सभ्य, पुन्हा स्वतः शिक्षिका होत्या.का बरं अशी वेळ आली असेल त्यांच्यावर–वृद्धाश्रमात राहण्याची?”

” हो रे! किती  छान आहेत त्या ! पण आपण हळूहळू विचारू त्यांना.” वर्षा म्हणाली. 

दुसऱ्या दिवशी राऊंड घेताना,डॉक्टर सुधाताईंच्या रूममध्ये आले. “ कशा आहात ताई? बरे आहे ना सगळे?” 

“अहो ,बरे काय.. अगदी छान आहे सगळे. अगदी माहेरी आल्याचे सुख घेतेय हो मी. पण उद्या मात्र सोडा बरं का.”

 — डॉक्टर त्यांच्या शेजारी बसले, आणि म्हणाले,  “ताई,असं काय घडलंय की तुम्हाला घर सोडावे लागले? अभयचे बाबा  कशाने गेले? मला काहीच कल्पना नाही हो. पण रागावू नका. मला सांगितलेत तर आपण काहीतरी मार्ग काढू शकतो यातून.”

सुधाताईंनी सुस्कारा सोडला. “ काय सांगू तुम्हाला मी ! तुम्हाला माहीतच आहे, अभय किती हुशार होता ते. पण त्याचा स्वभाव मात्र एकलकोंडा, चमत्कारिकच जरा ! आम्ही मध्यमवर्गीय माणसे हो ! अभयच्या वडिलांची सामान्य नोकरी आणि मी प्राथमिक शिक्षिका. पण अभय सगळे स्कॉलरशिप मिळवत शिकला हो. आम्हाला जराही तसदी नाही पडली त्याच्या खर्चाची. तो एम एस झाला,आणि त्याला इंग्लंडला पुढचे शिकण्याची संधी चालून आली. आम्ही त्याला जमेल तेवढे पैसे दिले, पण उरलेल्या रकमेसाठी कर्ज काढावे लागलेच. त्यासाठी आमचा लहान फ्लॅट गहाण ठेवावा लागला. कर्जाचे हप्ते त्याने भरले, कर्जही फेडले. पुढे त्याने तिकडे गोऱ्या मुलीशी लग्नही केले. आम्ही कशालाच विरोध केला नाही. पण हळूहळू तो आमच्यापासून दूरच गेला. त्याचे बाबा अचानक गेले तेव्हाही उपऱ्यासारखा पंधरा दिवस आला,आणि निघून गेला. त्या मुलीशीही त्याने घटस्फोट घेतला,असे म्हणाला.

मला म्हणाला, मला असे सारखे यायला जमणार नाही. मी हा फ्लॅट विकून टाकणार आहे. तुझी सोय वृद्धाश्रमात करतो. नशीब तरी बघा माझं, तो फ्लॅट यांनी त्याच्याच नावावर केला होता. त्यांना काय हो कल्पना, की पोटचा मुलगा असा वागेल… मी मात्र एका क्षणात रस्त्यावर आले …

– क्रमशः भाग पहिला 

© डॉ. ज्योती गोडबोले

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ नातवंडांचे दादाजी… ☆ सुश्री सुनिता गद्रे ☆

सुश्री सुनिता गद्रे

??

 ☆ नातवंडांचे दादाजी… ☆ सुश्री सुनिता गद्रे ☆ 

बारा वर्षांपूर्वीची गोष्ट… त्यावेळी आम्ही मुलाकडे बेंगलोरला गेलो होतो. दीड एक वर्षाचा मोठा नातू  बोलायला लागला होता. समोर राहणाऱ्या सिंधी परिवारात तो खूप रमायचा. त्यांच्यात जे आजोबा (दादाजी) होते, त्यांना तो ‘दाद्दाजी’ म्हणायला लागला होता. मग काय त्याने ‘ह्यांना’ही दाद्दाजी म्हणायला सुरुवात केली. आबा,आजोबाऐवजी ह्यांचे दादाजी हेच संबोधन रुढ झाले.. आणि त्यांना ते आवडले ही !

२०१९ मध्ये आम्ही ऑक्टोबर महिन्यात बेंगलोरला गेलो होतो. परत यायची काही गडबड नव्हती. तिथे नेहमीप्रमाणेच आमचं छानपैकी  रुटीन सुरू झालं होतं. दादाजींचं मॉर्निंग वॉकला जाणं, कूक अम्मा घरात किती चांगला नाश्ता बनवत असली तरी बाहेरून इडली- वडे, उपीट, सेट डोसा असं काहीतरी खाऊन येणं, घरात कुठली भाजी आहे कुठली भाजी नाही हे न बघता खूप सगळी भाजी घेऊन येणं, वेळ मिळेल तेव्हा नातवंडांना शिस्त लावणं, त्यांच्याकडून योगाभ्यास करून घेणं  इत्यादी!

एक फरक मला यावेळी जाणवला तो म्हणजे आपल्या पाच आणि नऊ वर्षाच्या नातवंडांबरोबर ते त्यांच्या वयाचे होऊन खेळू लागले होते. आपलं  वय वर्षं 78 विसरून!

एक दिवशी मला ग्राउंड फ्लोअर मधूनच मुलांच्या आयाचा फोन आला, ” मॉंजी, दादाजी ध्रुव, मिहीर के साथ फुटबॉल खेल रहे है .” मी दचकले. ताबडतोब तिथे पोहोचले. एक बेंचवर दादाजी आपले दोन्ही गुडघे चोळत बसलेले दिसले. “आजी, दादाजीनं जोरात किक् मारली” ध्रुवनं माहिती पुरवली. ” ते ना पळत जाऊन फुटबॉल पण पकडत होते.” त्याचं गुडघ्याचे दुखणे, चालतानाही होणारा त्रास. याची सगळी आठवण मला करून द्यावी लागली. त्यानंतर त्यांचे फुटबॉल खेळणे थांबले. पण दिवसेंदिवस मी पाहत होते, त्यांचं मुलांच्या वयाचं होऊन खेळणं वाढतच होतं. कॅरम खेळताना, पत्ते खेळताना जरा मुलांना जिंकून द्यायचं…. जसं मी करते… हे माझं म्हणणं त्यांच्या कानापर्यंत पोहोचायचंच नाही. हळूहळू मी पण दुर्लक्ष करायला सुरुवात केली. ‘ चालू दे दादाजी आणि नातवंडांच्या दंगा ‘ असा विचार करून !

मग एक दिवस त्यांचं लहान मुलांबरोबर छोट्या सायकलवरून अपार्टमेंटला चकरा मारणं, ही तक्रार माझ्या कानावर पडली. ग्राउंड फ्लोअरवरून  शाळेतून आलेल्या नातवांबरोबर लिफ्ट सोडून जिन्यावरून सातव्या मजल्यापर्यंत जिने चढून येणं…. ही त्या तक्रारीत पडलेली भर. एकदा तर छोटा नातू सांगू लागला, “आजी आज तिकदे कोणीही बघायला नव्हतं ना तल दादाजी माझ्याबलोबल घसलगुंदीवल चधला. आणि अगं खूप जोलात खाली आपतला, पदला.. मी खलं सांगतोय.. विचाल त्याला बाऊ झालाय का ते.”

हे मोठ्या मजेत हसत उभे होते. मी कपाळाला हात लावला.. त्या क्षणी एकदमच माझ्या मनात विचार आला,

‘लहानपणी कधी घसरगुंडीवर बसायला मिळालेच नसेल. तेव्हा कुठे होते असले चिल्ड्रनपार्क.. घसरगुंडी… झोपाळे.. सिसॉ… आणखी काय काय! मनात खूप खोलवर दडलेल्या सुप्त इच्छेनेच त्यांना असं करायला भाग पाडलं असेल.

तीन महिने असेच दादाजींनी त्यांचे बालपण जपण्यात व्यतीत  केले. आम्हाला माधवनगरला परत यायला चार-पाच दिवसच उरले होते. एक दिवस दादाजींनी स्वतःबरोबरच ‘विटामिन सी’ ची एक एक टॅब्लेट मुलांच्या हातात ठेवलेली मी पाहिली.” अरे मिहीर, ते औषध आहे .नका खाऊ. कडू कडू आहे.” मी जरा जोरातच ओरडत तिथे जाऊन पोहोचले. तोपर्यंत दोघांनी गोळ्या चोखायला सुरुवात केली होती. ” नाही आजी, गोली कदू नाहीय.. गोली आंबत गोद आंबत गोद.. छान छान आहे, ए दादाजी आजीला पण दे एक गोली ” धाकटं मापटं खूप खुशीत येऊन बोललं.” ‘विटामिन सी’ ची गोळी खाऊन नातवंडं खूप खुश झाली होती.

काही बोलायला मला जागाच राहिली नव्हती. नेहमीच एक गोष्ट मी मार्क केली होती की हल्ली जे  सुना-मुलींचे नवऱ्याला नावाने हाक मारणे, किंवा मुलांचे वडिलांना” ए बाबा,ए डॅडी”म्हणणे हे ह्यांना अजिबात पसंत नव्हते. पण नातवंडे पहिल्यापासून ए दादाजी म्हणायची. त्यावर त्यांचा अजिबात आक्षेप नव्हता. उलट खूप समाधान त्यांच्या चेहऱ्यावर पसरलेले असायचे.

मुलगा डॉक्टर… मी लगेच विटामिन सी बाबतची गोष्ट त्याला सांगितली .”जाऊ दे आता, चार-पाच दिवसांचा प्रश्न आहे ना? ते काही ऐकणार नाहीत. तू काळजी करू नको. पाहिल्यात मी त्यांच्याकडच्या टॅब्लेट्स. जास्त स्ट्राँग नाहीत.” मुलाने मला समजावले.

माधव नगरला परत जाण्यासाठी आम्ही स्टेशनवर पोहोचलो.तेव्हा माझ्या लक्षात आलं की बेंगलोरला येताना दादाजींच्या हातात काठी होती. गुडघेदुखीमुळे चालताना सपोर्ट म्हणून ते हातात नेहमी काठी बाळगायचे .पण या तीन महिन्याच्या मुदतीत त्यांच्या हातून काठी कधी सुटून गेली कळलेच नाही. नातवंडांबरोबर खेळून एक वेगळीच शक्ती त्यांच्यात आली होती. त्यांना एक छान टॉनिक मिळालं होतं.

यथावकाश फेब्रुवारी 20 मधे आम्ही माधवनगरला येऊन पोहोचलो .करोनाची थोडीशी सुगबुगाहट सुरू झाली होती. नंतर पुढे 2020 साल आणि अर्धे 21साल करोनामय झाले.  आम्हीही बेंगलोरला जाऊ शकलो नाही …आणि ते लोकही इकडे येऊ शकले नाहीत. दादाजी आणि नातवंडांची गाठ भेटही झाली नाही.

कधी कधी माझ्या मनात यायचं की खरेच सत्तरी पार केलेले आम्ही सगळेजण आणि ऐशी गाठलेले ते …. सर्वजणच आपापल्या घसरगुंड्यांवर बसलो आहोत. काही घसरगुंड्या कमी उताराच्या… काही जास्त उताराच्या… काही खूप उंच.. काही घुमावदार, प्रत्येक जणाला उतारावरुन घसरत जायचेच आहे. पण कोणी मुंगीच्या वेगाने,कोणी रखडत रखडत ,कोणी वेग आला की रडतडत, तर कोणी क्षणार्धात घसरून जाणार आहे.      

दादाजींनी जोरात घसरत जाण्याचा मार्ग स्वीकारला. 14 सप्टेंबर 2021 ला हसत बोलत चहा पिता पिता ते क्षणार्धात त्या अदृश्य घसरगुंडी वरून सरकन् घसरत आमच्यापासून दूर गेले.. पुन्हा परत न येण्यासाठी ! आम्हा सर्वांसाठी तो अविश्वासनीय असा खूप मोठा धक्का होता. पण काय करणार…. रिवाजाप्रमाणे सगळे धार्मिक क्रियाकर्मं पार पडले. आणि मुलांबरोबर मी ही बेंगलोरला गेले.     

एके दिवशी संध्याकाळची वेळ… अंधार पडू लागला होता. हळवं मन कावरं बावरं झालं होतं .”आजी ही बघ दादाजीची काठी”. नातवंडे मला म्हणाली .वस्तुस्थिती समजून ती दोघेपण आता नॉर्मल झाली होती .”आजी लोकं डाईड झाली की ती स्काय मध्ये जातात नां.  आणि मग देवबाप्पा त्यांना स्टार बनवतो नां!…मी नकळत मान हलवली. “आजी आम्ही दादाजीची काठी खेळायला घेऊ शकतो?” ते दोघं विचारत होते……. आणि काहीच न बोलता बधिर मनाने मी एकदा त्या काठीकडे आणि एकदा आकाशातल्या एका.. इतरांपासून दूर एकट्याच मंदपणे चमकणाऱ्या ताऱ्याकडे विमनस्कपणे पाहत राहिले होते.

संग्राहिका – सुश्री सुनीता गद्रे

माधवनगर सांगली, मो 960 47 25 805.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares