हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 120 ☆ गीत – शस्य श्यामला माटी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 120 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 120 ☆

☆ गीत – शस्य श्यामला माटी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

अपनी संस्कृति को पहचानो

इसका मान करो।

शस्य श्यामला माटी पर

मित्रो अभिमान करो।।

 

गौरव से इतिहास भरा है भूल न जाना।

सबसे ही बेहतर है होता सरल बनाना।

करो समीक्षा जीवन की अनमोल रतन है,

जीवन का तो लक्ष्य नहीं भौतिक सुख पाना।

 

ग्राम-ग्राम का जनजीवन, हर्षित खलिहान करो।

शस्य श्यामला माटी पर मित्रो अभिमान करो।।

 

उठो आर्य सब आँखें खोलो वक़्त कह रहा।

झूठ मूठ का किला तुम्हारा स्वयं ढह रहा।

अनगिन आतताइयों ने ही जड़ें उखाड़ीं,

भेदभाव और ऊँच-नीच को राष्ट्र सह रहा।

 

उदयाचल की सविता देखो, उज्ज्वल गान करो।

शस्य श्यामला माटी पर मित्रो अभिमान करो।।

 

तकनीकी विज्ञान ,ज्ञान का मान बढ़ाओ।

सादा जीवन उच्च विचारों को अपनाओ।

दिनचर्या को बदलो तन-मन शुद्ध रहेगा,

पंचतत्व की करो हिफाजत उन्हें बचाओ।

 

भारत, भारत रहे इसे मत हिंदुस्तान करो।

शस्य श्यामला माटी पर मित्रो अभिमान करो।।

 

भोग-विलासों में मत अपना जीवन खोना।

आपाधापी वाले मत यूँ काँटे बोना।

करना प्यार प्रकृति से भी हँसना- मुस्काना,

याद सदा ईश्वर की रखना सुख से  सोना।

 

समझो खुद को तुम महान  श्वाशों में प्राण भरो।

शस्य श्यामला माटी पर मित्रो अभिमान करो।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

Rakeshchakra00@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ ॥ मार्गदर्शक चिंतन॥ -॥ आध्यात्मिक चेतना आवश्यक ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ मार्गदर्शक चिंतन

☆ ॥ आध्यात्मिक चेतना आवश्यक ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

‘मनुष्य’ शब्द सामान्यत: मनुष्य शरीर की आकृति का बोध कराता है, परन्तु साथ ही इसी संदर्भ में उसके सामाजिक व्यवहारों की भी छवि उभरती है। शरीर द्वारा संपादित होने वाले सभी वैयक्तिक तथा सामाजिक व्यवहारों का परिचालन मन और बुद्धि के माध्यम से वह अदृश्य चेतना शक्ति करती है जिसे आत्मा कहते हैं। सम्पूर्ण जीवन भर सोच-विचारों और क्रिया कलापों की उधेड़बुन इसी चेतना का खेल है। यह चेतना सभी छोटे-बड़े प्राणियों में विद्यमान है। बिना इस चेतना या आत्मा के शरीर को शरीर नहीं शव कहा जाता है। मनुष्य तभी तक सक्रिय है जब तक उसके शरीर में आत्मा है। इससे यह बहुत स्पष्ट है कि मनुष्य केवल शरीर नहीं है, शरीर में स्थित अदृश्य आत्मा ही प्रधान है। मृत्यु क्यों होती है? और तब आत्मा इस शरीर को पुराने वस्त्र की भांति छोडक़र कहां और क्यों चली जाती है? यह प्रश्न आदिकाल से अब तक अनुत्तरित है और शायद आगे भी रहे। विभिन्न धर्मावलंबियों, मनीषियों ने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार इस रहस्य के भिन्न-भिन्न उत्तर देने के प्रयास किये हैं, किन्तु गुत्थी सुलझ नहीं पाई है। इसी अनसुलझी गुत्थी को बहुतों ने परमात्मा की माया कहा है। माया ही संसार में जन्म-मरण, सृजन और ध्वंस का चक्र चालू है और प्रत्येक प्राणी इस चक्र में फंसा ऊपर-नीचे घूम रहा है। जीवन यात्रा में शरीर और आत्मा उसके साथ हैं जो एक दूसरे के पूरक हैं। आत्मा सक्षम शक्ति है जो जीवन पथ में आने वाली समस्याओं का निराकरण कर अभिनव मार्ग बना सकती है। शरीर उनका साधन है। जीवन में विविधता है। किन्हीं दो व्यक्तियों के जीवन में समानता से अधिक विभिन्नता है। एक सुखी है दूसरा दुखी, कोई बड़ा है कोई छोटा, एक विचारवान ज्ञानी है, दूसरा अज्ञानी तथा कोई सम्पन्न है तो कोई विपन्न। किन्तु अनेकों विरोधाभासों के बीच भी एक अनुपम समानता है कि संसार का प्रत्येक प्राणी आनंद व सुख की कामना करता है और निरंतर उसी की प्राप्ति के प्रयत्नों में रत दिखता है। सुख प्राप्ति के लिये सही प्रयत्न करने को स्वस्थ शरीर और स्वस्थ संतुलित आत्मा का होना आवश्यक है। शरीर के स्वास्थ्य के लिये तो जानकारी, चिकित्सक, चिकित्सालय और औषधियां उपलब्ध है, किन्तु आत्मा और उसकी रुग्णता की जानकारी बहुत कम को है। बारीकी से अवलोकन करने पर समझ में आता है कि बहुसंख्यक आत्मायें अस्वस्थ हैं। इसी का परिणाम समाज में बढ़ते अनाचार, अत्याचार, दुर्विचार और व्यभिचार हैं जो समाज के कष्टों को बढ़ा रहे हैं और मानवता के विकास में बाधक हैं। स्थिति में सुधार के लिये शरीर और आत्मा का उपचार साथ-साथ होना चाहिये। यही विकास के लिये शरीर को भौतिक स्वास्थ्य तथा सुख-सुविधायें जरूरी हैं, तो उसमें निवास करने वाली शक्ति सवरूपा आत्मा को आध्यात्मिक ज्ञान और पावनता की आवश्यकता है। आज इसी की कमी है। केवल भौतिक विकास के दृष्टिकोण ने आध्यात्मिक विज्ञान के क्षेत्र में आवश्यक रुझान में अवरोध उत्पन्न कर दिया है और जीवन को असंतुलित कर रखा है। भौतिक विचार वाले उदारमना, भ्रातत्वभाव रखने वाले नागरिक उपलब्ध हो सकेंगे तो अनाचारों पर रोक लगाने में सक्षम होंगे। इसलिये प्रत्येक घर परिवार में आध्यात्मिक चेतना का प्रकाश परम आवश्यक है।

 © प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, म.प्र. भारत पिन ४६२०२३ मो ७०००३७५७९८ apniabhivyakti@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २८ जुलै – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ २८ जुलै – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर,  ई–अभिव्यक्ती (मराठी) ?

बाबुराव गोखले

बाबुराव गोखले (15 सप्टेंबर 1916 – 28 जुलै 1981) हे ज्येष्ठ नाटककार  व गीतकार होते.

बाईंडिंग आणि वृत्तपत्र विक्री हा त्यांचा व्यवसाय.पण त्यांना खाण्याचा, चालण्याचा, पळण्याचा, व्यायामाचा, अघोरी वाटणाऱ्या गोष्टी करण्याचा छंद होता. ते रोज पहाटे साडेतीन ते नऊपर्यंत कात्रज – खेड -शिवापूर – सिंहगड -खडकवासला असे चालत. काही काळ ते पुणे – लोणावळा पायी जात. पुढे दर रविवारी सायकलवरून खोपोलीपर्यंत जात.

पुणे ते कराची सायकलवरून जाऊन त्यांनी जद्दनबाई, हुस्नबानू, बेगमपारोची गाणी मनमुराद ऐकली. ते स्वतः तबला वाजवत. नर्गिसची आई जद्दनबाई यांनी त्यांच्याकडून गंधर्वांची गाणी शिकून घेतली.

बडोद्याच्या सयाजीराव गायकवाडांच्या मदतीने ते 1936साली बर्लिन ऑलिम्पिकपर्यंत पोहोचले. अनवाणी पायांनी ते 40 मैल पळू शकतात, हे पाहून हिटलरने त्यांना जर्मनीत चार दिवस मुक्त भटकण्यासाठी व हवे ते खाण्यासाठी पास दिला.

बडोद्याच्या महाराजांमुळे ते लंडनलाही गेले. तिथे त्यांच्या स्वागताला 3-4 गव्हर्नर्स गाड्यांसह हजर होते. कारण दर पावसाळ्यात पुण्याला येणाऱ्या गव्हर्नरला ते मराठी – हिंदी भाषा व क्रॉसकन्ट्री शिकवायला जात असत.

हातावर शीर्षासन करत ते पायऱ्या चढत. बायकोला पाठुंगळीस घेऊन त्यांनी 43 वेळा पर्वती सर केली. क्रॉसकंट्री स्पर्धेचे 257 बिल्ले जिंकणाऱ्या गोखलेंना काका हलवाई 1 शेर दूध व 1 शेर पेढ्याचा खुराक देत. पैजेच्या जेवणात ते 90 जिलब्यांचे ताट सहज फस्त करीत. वय झाल्यावरही ते रोज 15 पोळ्या खात.

आपल्या डझनभर नाटकांनी गोखलेंनी प्रेक्षकांना खळखळून हसवले. त्यांची ‘करायला गेलो एक’, ‘रात्र थोडी सोंगे फार’, ‘नाटक झाले जन्माचे’, ‘संसार पाहावा मोडून’ वगैरे नाटके खूपच गाजली. थ्री स्टार्स ही कंपनी स्थापन करून त्यांनी अनेक उत्तम नाटकं दिली. दिग्दर्शक, निर्माता, प्रमुख भूमिका,पार्श्वसंगीत, म्युझिक सेट्स तयार करणे या सगळ्यांत ते अग्रेसर असत.

गोखलेंनी लिहिलेली ‘वारा फोफावला’, ‘ नाखवा वल्हव’ वगैरे  गीतेही खूप गाजली.

‘सौभाग्यकांक्षिणी’, ‘साधी माणसं’, ‘राजा गोसावीची गोष्ट’, ‘गंगेत घोडं न्हालं’ इत्यादी चित्रपटांत त्यांचा अभिनेता/ गीतकार /दिग्दर्शक/कथालेखक/ पटकथालेखक वगैरे (यापैकी काही)भूमिकांत सहभाग होता.

बाबुराव गोखले यांच्या स्मृतिदिनानिमित्त त्यांना सादर अभिवादन. 🙏

☆☆☆☆☆

सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ :साहित्य साधना, कऱ्हाड शताब्दी दैनंदिनी, विकीपीडिया, पोएम कट्टा.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भूतली वैकुंठ… ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆

सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ वनविहार… ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ 

(वृत्त – हरिभगिनी / स्वरगंगा)

मला आवडे स्वैरपणाने रानावनात हिंडावे

भीड सोडुनी खुशाल तेथे मुक्तपणाने बोलावे

 

कधी स्वतःशी बोलत बसणे गर्दी पेक्षा आवडते

विचारमंथन स्वतःचेच हे संवादाविण आवडते

 

ऐकत बसणे पक्षांचे स्वर आनंदाची खाण असे

संगितात या किती विविधता नादमधुरता  खूप असे

 

झाडांशी त्या हितगुज करता पान फूल ही मोहरते

थरथर त्यांची हलकीशी पण स्पर्शामधुनी जाणवते

 

निसर्ग आहे भावसखा जो प्रत्येकाला जोजवितो

उदारतेने करीत पोषण जीव जीव तो वाढवितो

 

वसुंधरेला जपुनी आपण कृतज्ञतेने वागावे

मायलेकरे या नात्याला मनापासुनी वंदावे

© सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

वारजे, पुणे.५८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #119 – इवलीशी पणती ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 119 – इवलीशी पणती ☆

इवलीशी पणती

वाइवलीशी पणती-यावर डुलते

अंधाराशी कशी

एकटीच भांडते…?

 

अंधाराशी तिचं

मुळीच पटत नाही

एकटीच असते

तरी घाबरत नाही..!

 

तिची ही धडपड

खूप काही शिकवते

उजेडाने तिच्या

अंधाराला पळवते…!

 

तिच्यासारखं मला

धीट व्हायला हवं

तिच्यासारखं जिद्दीने

जगता यायला हवं…!

 

© सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ नका सांगू कुणाला… ☆ प्रा. तुकाराम पाटील

श्री तुकाराम दादा पाटील

? विविधा ?

☆ नका सांगू कुणाला… ☆ श्री तुकाराम दादा पाटील ☆ 

गांधीबाबा कधीकाळी तुम्हाला ओरडून सांगत होते, ” खेड्याकडे चला ” पण ते आता पुन्हा आठवू नका आणि कोणालाही परत सांगू ही नका.

तुम्ही निघून आलात तरी खेडी तगून होती. रडत खडत स्वतःला जपत होती. अर्धपोटी राहून पोट बांधून जगत होती. आपल्या फाटक्या हाताने निसर्गाला अंजारात गोंजारत होती. पण त्यांचे हात तोकडे पडत होते, पूर्वीच त्यांचं संपन्न अवस्थेतल जितंजागत जगणं सावरायला. तुम्ही त्यांच्याकडे दुर्लक्ष केलं आणि अखेर देशोधडीला लावलं . त्यात जितका दोष तुमचा त्याहून अधिक होता शासनकर्त्यांचा. तुम्ही भौतिक सुखाला लाचावलात आणि आधिभौतिकाला  संपवायला कारणीभूत ठरलात. आता पुन्हा त्यांच्याकडे ढुंकूनही पाहू नका, आणि कृपया कोणाला खेड्याकडे चला असं मुळीच सांगू नका. खेडी जगतील कि मरतीत याचा विचार सुद्धा करू नका. दोलायमान झालेल्या भौतिक सुखाच्या डोलाऱ्यात झुलत बसा. पण पुढे जाऊन तुमचा भ्रमनिरास होणार आहे यावरून मात्र तुमचे लक्ष विचलित होऊ देऊ नका. सावरा स्वतःला आणि जगण्याच्या नव्या प्रबंधांची आखणी करा. विसरा ती माती तुम्हाला पोसणारी,‌ वाढवणारी. आई बापाची तमा न बाळगणाऱ्या तुमच्या पिढीला एक दिवस नक्कीच “दिवसा चांदण्य दिसतील ”  तो काळ आता झपाट्याने तुमच्याकडे झेपावतो आहे. म्हणूनच तुमचं पोट बाजूला ठेवून कसं जगता येईल याचाच विचार करत, आघाशा सारखी भौतिक सुखं लुटता येतीलतितकी लुटा. सोडा विचार खेड्यांचा, तिथल्या अजरामर मातीचा, कारण ती कधीच नाशिवंत ठरणार नाही. आपले गुणधर्म विसरणार नाही काळ नक्की बदलेल. आणि तिला नक्कीच सोन्याचे दिवस येतील. पुन्हा खेड्यांची नंदनवनं होतील. यात तीळमात्र शंका नाही. म्हणूनच सांगू नका कुणाला “खेड्याकडे चला” म्हणून.

© श्री तुकाराम दादा पाटील

मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली

सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३

दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ स्थळ…. भाग – 2 ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

? जीवनरंग ❤️

☆ स्थळ…. भाग – 2 ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

(अनुभव निघून जायचा आणि विषय तिथेच थांबायचा…आता पुढे)

गाडीत दीपा खूप बोलत होती. तिने मला मोबाईल वर, मुलीचा फोटो ही दाखवला. हसरा चेहरा.  सरळ नाक. चमकदार डोळे.

” चांगली वाटते ना काकू? शिवाय इंजिनियर आहे. अनुभव सारखीच आयटीमध्ये आहे.  तसं कुटुंब साधारणच आहे..वडील बँकेत आहेत. निवृत्तीला दोनेक वर्षे असतील. आई गृहिणी आहे. एक लहान भाऊ आहे. तो शिकतोय. फायनान्स मध्ये असावा घरची परिस्थिती सर्वसाधारण आहे पण त्यामुळे आम्हाला काहीच फरक पडत नाही. मुलगी  लग्नानंतर आपल्या सगळ्यांशी जुळवून घेणारी, घर आणि करिअर दोन्ही सांभाळणारी असली पाहिजे. मग झालं. मला जाणवत होतं, अनुभवचं ओलांडत चाललेलं वय, त्याचं अविवाहित असणं, मित्रांमध्ये त्याचेच फक्त हे स्टेटस. 

आणि आता त्यांने लवकरच चतुर्भुज व्हावं हा एकच विषय दीपाच्या मनावर स्वार करून होता. 

मी तिचा हात धरला. म्हटलं,” नको घेऊस इतका ताण. योग यावा लागतो. वेळ यावी लागते.”

” ते तर आहेच हो काकू!”

मग लोकेशन जुनी गाणी लावली. जरा विषय बदलण्याचा प्रयत्न केला. थोडं वातावरण हलकं झालं.

मला काहीतरी आठवलं मी थोडं बिचकतच पण सहज वाटेल अशा शब्दात दीपाला विचारलं,

” काय ग ? त्या गायत्रीचं काय झालं?”

” तिचं गेल्याच वर्षी लग्न झालं. आता ती कॅनडाला असते.”

मध्ये काही क्षण निशब्द, स्तब्ध रेंगाळले.

“मला आवडायची गायत्री. आमच्या घरीनेहमी यायची, फोनवर खूप गप्पा करायची. बारीक-सारीक गोष्टींसाठी ती अनुभवावर अवलंबून असायची. तिच्या सगळ्या समस्यांत अनुभव तिला मदत करायचा.  एक दिवस मी अनुभवला विचारलही, तुझ्यात आणि गायत्रीत काही आहे का? म्हणजे असेल तर चालेल आम्हाला. तेव्हा केवड्या मोठ्याने हसला होता तो! माझे खांदे धरून म्हणाला होता,

” तू कठीण आहेस मम्मी! प्रत्येक मुलीत तू तिला माझी जोडीदार बघतेस की काय? आणि गायत्री?… माय गॉड… आम्ही नुसते चांगले मित्र आहोत…”

” काकू या मुलांचं काही कळतच नाही. त्यांना आपल्या चिंता ही समजत नाहीत.”

क्रमश:…

© सौ. राधिका भांडारकर

पुणे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “सोन्याची गट्टी फू”… भाग-3 – सुश्री शीतल श्रीधर माडगूळकर ☆ सुश्री सुलू साबणे जोशी ☆

? मनमंजुषेतून ?

☆ “सोन्याची गट्टी फू”… भाग-3 – सुश्री शीतल श्रीधर माडगूळकर ☆ सुश्री सुलू साबणे जोशी ☆

(माझे अजाण नातवंडं..  अंगणात नागड्याने बागडते आहे…) इथून पुढे —-

सुमित्र किती भाग्यवान! त्याच्यावर त्याच्या अलौकिक आजोबांनी दोन बालकविता लिहिल्या आणि एका गाजलेल्या कवितेचा उगम त्याच्या निरागसपणे रांगण्याने झाला. पपा त्याच्याकडे बघून नेहमी म्हणत,  “हा माझा आजा बाबा बामण आहे. तोच पुढे माझे नाव चालवणार आहे.” खरंच पपा द्रष्टे होते…..

१९९८ साली सुमित्र उपकरणशास्त्रात द्विपदवीधर झाला. नंतर त्याने त्याच्या आवडीनुसार संगणकक्षेत्रात प्रवेश केला. आपल्या अलौकिक आजोबा गदिमांचे साहित्य नवीन तरुण पिढीपर्यंत पोहोचवायचे असेल तर ते त्यांच्या आवडीच्या संगणक इंटरनेट माध्यमात देणे आवश्यक आहे, हे त्याने ओळखले. १ ऑक्टोबर १९९८ रोजी गदिमांच्या जयंतीचे निमित्त साधून त्याने मराठी साहित्यातील लेखकाची पहिली मोठी वेबसाईट – गदिमा डॉट कॉम ही निर्माण केली. यासाठी त्याने रात्रंदिवस १८, १८ तास काम केले. काही दिवसातच महाराष्ट्रातील सर्व वृत्तपत्रातून बातमी झळकली…. “गीतरामायणाचे सूर आता इंटरनेटवर…..” जगभरातल्या मराठी रसिकांनी या वेबसाईटचे मनापासून, भरभरून स्वागत केले. जगभरात जिथे मराठी शब्द कानावरही पडत नव्हते, अशा परदेशस्थ मराठी बांधवांच्या घरा-घरातून गदिमा – बाबूजींचे गीतरामायण ऐकू येऊ लागले. ई मेल-वरूनही असंख्य प्रतिक्रिया सुमित्रला येऊ लागल्या. “आज तुमच्या साईटवर गीतरामायण ऐकले आणि मी इंग्रजी माध्यमातून शिकल्यामुळे काय गमावले हे लक्षात आले.” अशा असंख्य प्रतिक्रिया देशा परदेशातून नव्या पिढीकडून येऊ लागल्या.

या नंतर त्याने गीतरामायणावर स्वतंत्र वेबसाईटची निर्मिती, Sony Music च्या बरोबर ‘जोगीया’ हा music album केला व गदिमांच्या गीतरामायण, चित्रपट गीतांच्या संगणक सीडी/डीव्हीडी/पेन ड्राईव्हचीही निर्मितीही सुमित्रने केली. त्या वेळी आपल्या आजोबांची दुर्मिळ गाणीही मिळवून वेळप्रसंगी पैसे मोजूनही विकत घेतली. त्या वेळी जे पैसे त्याला मिळत, ते सर्व तो त्याच्या आजोबांच्या वेबसाईटसाठी खर्च करत असे.

अलीकडे आपल्या आजोबांच्या अनेक हृद्य आठवणी तो लिहून ‘ग.दि.माडगूळकर’ या फेसबुक पेजवर टाकतो. गदिमाप्रेमी रसिकांची त्याला छान दादही मिळते. गदिमा शताब्दीत त्याने महाराष्ट्र शासनाच्या मदतीने चार दिवसांचा स्वतंत्र गदिमा सांस्कृतिक महोत्सव, चित्रप्रदर्शन पुण्यात भरवले होते, ‘तो राजहंस एक’, ‘गदिमान्य’सारखे गदिमांच्या गाणी-आठवणींवर स्टेज शो त्याने केले, अलीकडेच मानाच्या समजल्या जाणाऱ्या ‘वसंत व्याख्यानमालेत’ त्याने गदिमांच्या आठवणी सांगून रसिकांना मुग्ध केले होते.

गीतरामायणाला ६० वर्षे पुरी झाल्यावर त्याने गीतरामायणाचे फेसबुक पेज निर्माण केले. तसेच आपल्या मोबाईलवर गीतरामायण ऐकता येईल, असे एक ऑडिओ ॲपही त्याने तयार केले होते. आपल्या अद्वितीय आजोबांची महती जाणून त्यांचे साहित्य तरुण पिढीपर्यंत पोहोचावे, यासाठी त्याची जी तळमळ आहे ती माझ्या मातृहृदयाला खूप सुखावते. गदिमांच्या स्मारकासाठी तो झटतो आहे, गेल्या वर्षी त्याने पुणे महानगरपालिकेकडून गदिमांचे स्मारक कोथरूड येथे मंजूरही करून घेतले, लवकरात लवकर ते आता मार्गी लागावे, राजकीय निष्क्रियतेमुळे फक्त सरकारी कागदावरच राहू नये, असे वाटते.

समृद्ध वारसा जतन करणे आणि तो परत आपल्या पुढच्या पिढीच्या हातात देणे आणि त्यांनी तो वसा आणखी पुढे नेणे, यासारखे दुसरे समाधान नाही.

पपा खूप वेळा खादी सिल्कचा झब्बा घालत असत. एकदा त्यांच्या झब्ब्यातले सिल्कचे कापड उरल्यावर ताईंनी मला दिले. मी त्यातून अगदी पपांसारखाच एक छोटासा सिल्कचा झब्बा सुमित्रला शिवून घेतला आणि छोटासा पांढरा पायजमा… तो ज्या दिवशी शिवून आला त्यादिवशी लगेच त्याने घातला.. अगदी आपल्या आजोबांसारखा झब्बा बघून तो आनंदाने नाचू लागला… पपांनाही त्याने त्याच्यासारखा झब्बा घालायला लावला.

मग त्या दिवशी संध्याकाळी पपांचे बोट धरून अंगणात त्याने त्यांच्यासह खूप फेऱ्या मारल्या. अजूनही सिल्कचा झब्बा घातलेले ते पाठमोरे पपा… आणि त्यांचे बोट धरून चालणारा, तसाच सिल्कचा झब्बा घातलेला सुमित्र… यांच्या पाठमोऱ्या आकृती मनावर ठसल्या आहेत….  

अजूनही त्याने धरलेली आपल्या आजोबांची करांगुली त्याच्या हातात मला माझ्या अश्रूभरल्या डोळ्यांपुढे दिसते आहे….. ती अजूनही तशीच त्याच्या हातात  आहे, असे मनोमन वाटते…. 

5 जून 2022!  सुमित्र, तुझा  वाढदिवस! खूप खूप मोठा हो, बाळा! आमच्या आशीर्वादाला काही शक्ती असतील तर त्या नेहमीच तुझ्या पाठीशी उभ्या राहतील. पपांच्या शब्दांत आशीर्वाद द्यायचा झाला तर…. “तव भाग्याला नुरोत कक्षा..”

तुझी आई,

— समाप्त — 

लेखिका – सुश्री शीतल श्रीधर माडगूळकर

संग्राहिका – सुश्री सुलू साबणे जोशी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ बिच्चारा वजन काटा — ☆ प्रस्तुती – सौ.बिल्वा शुभम् अकोलकर ☆

? वाचताना वेचलेले ?

☆ बिच्चारा वजन काटा — ☆ प्रस्तुती – सौ.बिल्वा शुभम् अकोलकर 

पायरीचा रस आणि हापूस थोडा कापून…

वजनकाटा २ महिन्यासाठी ठेवला आहे झाकून..

 

कैरीची डाळ आणि झकास पन्हं थंडगार

रात्री पण ice cream चा मारा चाललाय फार

व्यायाम करायचा निश्चय येणाऱ्या सोमवारचा करून

वजनकाटा २ महिन्यासाठी ठेवला आहे झाकून..

 

उन्हाळ्याच्या सुरवातीलाच खायची ती ओल्या काजूची उसळ

आणि चव बदलायला कधी तरी लागते मग मिसळ

रसरशीत बिट्ट्या चोखताना सगळं तोंड जातंय माखून

वजनकाटा २ महिन्यासाठी ठेवला आहे झाकून..

 

काहीही न करताच येतोय रोज इतका घाम

वजन कमी करण्यासाठी वेगळे नको काही काम

हाताची बोटं पायांच्या बोटाला टेकतात अजून वाकून..

वजनकाटा २ महिन्यासाठी ठेवला आहे झाकून..

संग्राहिका : बिल्वा अकोलकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – ☆ पुस्तकांवर बोलू काही ☆ “बॅरिस्टर नाथ पै : लोकशाही समाजवादाचा दीपस्तंभ” – संकल्पना – संजय रेंदाळकर ☆ परिचय – श्री गुरुनाथ चंद्रकांत ताम्हणकर ☆

श्री गुरुनाथ चंद्रकांत ताम्हणकर

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆ “बॅरिस्टर नाथ पै : लोकशाही समाजवादाचा दीपस्तंभ” – संकल्पना – संजय रेंदाळकर ☆ परिचय – श्री गुरुनाथ चंद्रकांत ताम्हणकर ☆ 

संकल्पना – संजय रेंदाळकर,

संकलन – सुनील कोकणी, संकेत जाधव.

सृजन प्रकाशन, इचलकरंजी. 

प्रथमावृत्ती – 1 मे 2022.

इचलकरंजी येथील राष्ट्र सेवा दलाचे कार्यकर्ते संजय रेंदाळकर यांच्या संकल्पनेतून सुनील कोकणी आणि संकेत जाधव यांनी खास मुलांसाठी बॅ. नाथ पै यांचे विचार आणि जीवनप्रवास उलगडणारे पुस्तक संकलित केले आहे. 

बॅ. नाथ पै यांना ‘वक्ता दशसहस्त्रेषु’ म्हटलं जातं. विरोधकांनाही मंत्रमुग्ध करणारे अलौकिक वक्तृत्व नाथांनी अंगभूत गुणांना प्रयत्नांची जोड देऊन कमावले होते. त्यांच्या वेगवेगळ्या ठिकाणच्या भाषणातील प्रमुख विचार या पुस्तकात संग्रहीत केलेले आहेत. नाथांचे देशभक्ती विषयक विचार, स्वातंत्र्य आणि लोकशाही बाबतची मते, जीवनाकडे पाहण्याचा दृष्टिकोन, कोकणावरील निस्सीम प्रेम, सीमाप्रश्नाबाबतची धडपड, विद्यार्थी व नागरीक यांना केलेले मार्गदर्शन, कलावंतांची केलेली कदर याविषयी त्यांचे विचार या पुस्तकात वाचायला मिळतात. 

“स्वातंत्र्य आणि लोकशाही ही आमची प्राणप्रिय मूल्ये आहेत. या मूल्यांचे जतन करायचे आहे. स्वातंत्र्याची पावन गंगा हिंदुस्तानच्या गावागावात जाईल; आणि मगच आमचे स्वातंत्र्य अजिंक्य होईल, अमर होईल. लोकशक्ती हाच लोकशाहीचा पाया असतो. ती राजशक्तीपेक्षा प्रभावी असते. मतदार हेच राष्ट्राचे खरे पालक आणि संरक्षक आहेत. गीतेप्रमाणेच राज्यघटना हाही माझा पवित्र ग्रंथ आहे,” असे ते म्हणत.

साहित्यिक, कलावंत यांच्याबद्दल त्यांना विशेष अभिमान होता. लेखक, कलावंत हे फार थोर असतात. त्यांचे विश्व हे अविनाशी आहे, असे ते मानत. कोकणातील दशावतार या कलेबद्दल त्यांचे प्रेम हे या ठिकाणी अधोरेखित केले आहे.

‘घटनादुरुस्ती विधेयक’ हा बॅरिस्टर नाथ पै यांच्या संसदीय कार्यकर्तृत्वाचा कळस म्हटला जातो. या विधेयकासाठी नाथांनी आपल्या बुद्धिचातुर्य, अभ्यास आणि तेजस्वी वाणीने जे योगदान दिले त्याबद्दल या पुस्तकात माहिती दिली आहे. बॅ. नाथ पै यांना पदोपदी सहकार्य करणारे राष्ट्र सेवा दलाचे कार्यकर्ते वासू देशपांडे सर यांनी नाथ आपणांस सोडून गेल्यानंतर त्यांना उद्देशून लिहिलेले पत्रही या पुस्तकात दिले आहे. नाथांना आपल्या सहका-यांविषयी असणारा जिव्हाळा, स्वतःपेक्षा देशसेवेसाठी झिजण्याची वृत्ती, कोकणावरील प्रेम याविषयी या पत्रात वाचायला मिळते.

“असिधारा व्रताने सेवादलाचे कार्य करूया ” हा नाथांचा संदेशही या पुस्तकात अधोरेखित केला आहे. यांच्याविषयीचे भाई वैद्य, पद्मश्री मधु मंगेश कर्णिक, जयानंद मठकर, बबन डिसोजा, पंडित जवाहरलाल नेहरू अशा अनेक विभूतींचे कौतुकोद्गार येथे संग्रहित केलेले आहेत. 

बॅ. नाथ पै यांच्या जीवनप्रवासातील महत्त्चाच्या घटना तारीखवार देण्यात आल्या आहेत. नाथांच्या जीवनातील दुर्मिळ क्षणचित्रांचाही या पुस्तकात संग्रह करण्यात आला आहे. पुस्तकाच्या मलपृष्ठावर कविवर्य मंगेश पाडगावकर यांची “ ज्यांची हृदये झाडांची ” ही कविता वाचायला मिळते.

या पुस्तकाचे प्रकाशन साने गुरुजी पुण्यतिथी दिवशी बॅ.नाथ पै सेवांगण कट्टा या ठिकाणी मान्यवरांच्या उपस्थितीत झाले.

पुस्तक परिचय – श्री गुरुनाथ चंद्रकांत ताम्हणकर

सदस्य, अखिल भारतीय साने गुरुजी कथामाला मालवण

पत्ता – मु. बागायत, पो. माळगाव, ता. मालवण, जि. सिंधुदुर्ग. 416606

संपर्क – 9420738375

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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